
Flipkart Monopoly Case: भारत की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी Flipkart एक बार फिर न्यायिक जांच के घेरे में है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि Flipkart एकाधिकार (Monopoly) बनाने के लिए जानी जाती है और इससे छोटे कारोबारियों (Small Vendors) का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मुद्दे को लेकर न्याय मित्र (Amicus Curiae) नियुक्त किया है, जो कोर्ट को यह तय करने में मदद करेगा कि क्या वाकई Flipkart ने बाजार में अपनी प्रभुत्वशाली स्थिति (Dominant Position) का दुरुपयोग किया।
दिलचस्प बात यह रही कि शिकायतकर्ता संस्था AIOVA (All India Online Vendors Association) का कोई भी प्रतिनिधि अदालत में मौजूद नहीं था। वकील उदयादित्य बनर्जी ने बताया कि संभवतः यह संस्था अब अस्तित्व में नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने साफ कहा कि शिकायतकर्ता संस्था की अनुपस्थिति से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मुद्दा खुद बेहद अहम और सार्वजनिक हित से जुड़ा है।
Flipkart की ओर से कहा गया कि उसकी वजह से कई छोटे विक्रेता राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच पाए हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा: कभी-कभी Flipkart इतनी छूट देता है कि बाजार में संतुलन बिगड़ जाता है और छोटे व्यापारी खत्म हो जाते हैं। हमें निवेश भी चाहिए लेकिन ड्रैगन के मुंह जैसी ताकत से बचाव भी जरूरी है।
सुनवाई के दौरान Competition Commission of India (CCI) की मौजूदगी पर भी अदालत ने सवाल खड़े किए। कहा कि जब CCI ने आदेश दे दिया, तो उसका काम खत्म हो गया। वह खुद एक क्वासी-ज्यूडिशियल बॉडी है, हर केस में उसकी मौजूदगी क्यों जरूरी होनी चाहिए? कोर्ट ने कहा कि भविष्य में अगर ऐसा चलन बना तो हर मामले में उच्च न्यायालय या अन्य आयोगों को भी खींचना पड़ेगा, जो उचित नहीं है।
यह मामला 4 मार्च 2020 के NCLAT आदेश से जुड़ा है जिसमें Flipkart के खिलाफ CCI को जांच के निर्देश दिए गए थे। यह आदेश CCI द्वारा 2018 में Flipkart को क्लीन चिट देने को खारिज करता है।
Flipkart के खिलाफ सबसे पहले शिकायत AIOVA ने नवंबर 2018 में की थी। आरोप लगाया गया था कि Flipkart India Pvt Ltd और Flipkart Internet Pvt Ltd ने अपनी प्रभुत्वशाली स्थिति का दुरुपयोग करते हुए छोटे विक्रेताओं को नुकसान पहुंचाया है।