
Mehli Mistry Tata Trusts: टाटा संस में 66% हिस्सेदारी रखने वाला टाटा ट्रस्ट्स (Tata Trusts) देश के सबसे प्रभावशाली चैरिटेबल संस्थानों में से एक है। लेकिन अब अंदरूनी असहमति ने इसकी यूनिटी पर सवाल खड़ा कर दिया है। CNBC-TV18 और इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट्स के मुताबिक, कम से कम तीन ट्रस्टीज नोएल टाटा (चेयरमैन), वेंणु श्रीनिवासन (वाइस चेयरमैन) और विजय सिंह ने मेहली मिस्त्री के तीन साल के कार्यकाल के रिन्यूअल के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी। टाटा ट्रस्ट्स के गवर्नेंस फ्रेमवर्क के तहत किसी भी ट्रस्टी की री-अपॉइंटमेंट के लिए सर्वसम्मति (Unanimous Approval) जरूरी होती है। एक भी असहमति वोट उस प्रस्ताव को रोकने के लिए पर्याप्त है।
मेहली मिस्त्री रतन टाटा के पुराने भरोसेमंद सहयोगी माने जाते हैं। उन्हें 2022 में टाटा ट्रस्ट्स बोर्ड में शामिल किया गया था, जब ट्रस्ट्स ने गवर्नेंस स्ट्रक्चर को मजबूत करने और टाटा ग्रुप के रणनीतिक और सामाजिक उद्देश्यों के साथ तालमेल बैठाने के लिए बदलाव किए थे। हालांकि, उनकी शापूरजी पालोनजी (SP) फैमिली से पुरानी करीबी हमेशा चर्चा में रही है, वही परिवार जिसके सदस्य सायरस मिस्त्री को 2016 में टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाया गया था। यही विवाद टाटा और शापूरजी पालोनजी ग्रुप के बीच लंबे समय तक चला।
मेहली मिस्त्री का एम पलोनजी ग्रुप कई सेक्टर में सक्रिय हैं। इंडस्ट्रियल पेंटिंग, शिपिंग, ड्रेजिंग और ऑटोमोबाइल डीलरशिप तक, उनकी कंपनी स्टर्लिंग मोटर्स, टाटा मोटर्सकी डीलर है और टाटा स्टील, टाटा पावर और टाटा NYK शिपिंग के साथ उनके बिजनेस रिलेशनशिप हैं। इसके अलावा वे ब्रीच कैंडी अस्पताल ट्रस्ट (Breach Candy Hospital Trust) के भी ट्रस्टी हैं, जिसे टाटा ग्रुप ने 500 करोड़ रुपए की मदद दी थी।
सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT): नोएल टाटा, वेंणु श्रीनिवासन, विजय सिंह, मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी, डेरियस खंबाटा
सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT): नोएल टाटा, वेंणु श्रीनिवासन, विजय सिंह, जिमी टाटा, जहांगीर जेएचसी, मेहली मिस्त्री, डेरियस खंबाटा
रतन टाटा के निधन के बाद का यह सबसे बड़ा प्रशासनिक बदलाव माना जा रहा है। मेहली मिस्त्री का यह एग्जिट मोमेंट अक्टूबर में ही आया है। यह वही महीना जब सायरस मिस्त्री को हटाया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रस्ट्स के सीईओ सिद्धार्थ शर्मा ने पिछले हफ्ते मिस्त्री के कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन तीन ट्रस्टीज के विरोध के चलते यह प्रस्ताव खारिज हो गया।
रतन टाटा के जाने के बाद टाटा ट्रस्ट्स में यह दूसरा बड़ा मौका है, जब एकमत (Unanimity) की परंपरा टूटी है। पहली बार यह तब हुआ जब विजय सिंह को टाटा संस बोर्ड से हटाने का निर्णय बहुमत वोट से लिया गया था। यह दिखाता है कि टाटा ट्रस्ट्स का पारंपरिक संतुलन बदल रहा है, जहां सर्वसम्मति की जगह अब बहुमत की ताकत सामने आ रही है।
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