2022 जाते-जाते न सिर्फ आम जनता बल्कि सरकार के लिए भी राहतभरी खबर है। दरअसल, थोक महंगाई दर (WPI) में गिरावट देखने को मिली है। नवंबर में थोक महंगाई दर (Wholesale Price Index Inflation) 5.85% पर आ गई है। इससे पहले फरवरी, 2021 में महंगाई दर इससे कम 4.83% पर थी।
Wholesale Price Index Inflation: 2022 जाते-जाते न सिर्फ आम जनता बल्कि सरकार के लिए भी राहतभरी खबर है। दरअसल, थोक महंगाई दर (WPI) में गिरावट देखने को मिली है। नवंबर में थोक महंगाई दर (Wholesale Price Index Inflation) 5.85% पर आ गई है। इससे पहले फरवरी, 2021 में महंगाई दर इससे कम 4.83% पर थी। यानी यह पिछले 21 महीने में इसका सबसे निचला स्तर है। बता दें कि इससे पहले खुदरा महंगाई दर में भी गिरावट देखने को मिली थी और उपभोक्ता सूचकांक पर आधारित (CPI) महंगाई दर 11 महीने के निचले स्तर पर आ गई थी।
वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) की ओर से थोक महंगाई को लेकर जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में यह 8.39% थी। जबकि सितंबर, 2022 में थोक महंगाई 10.70% के लेवल पर थी। अगस्त में 12.41% और जुलाई में 13.93% पर थी। पिछले साल नवंबर 2021 में WPI 14.87% रही थी। वहीं, अक्टूबर से पहले लंबे समय तक थोक महंगाई दर का आंकड़ा दहाई में था। इस महंगाई को काबू करने के लिए रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में भी इजाफा किया था।
11 महीने के निचले स्तर पर आई खुदरा महंगाई :
खुदरा महंगाई (CPI) की बात करें तो नवंबर महीने में यह घटकर 5.88% पर आ गई है। ये 11 महीने का निचला स्तर है। दिसंबर, 2021 में महंगाई 5.59% पर थी। इसके बाद से ये लगातार 6% के ऊपर बनी हुई थी। अक्टूबर 2022 में रिटेल महंगाई 6.77% थी। वहीं सितंबर में ये 7.41% पर थी। एक साल पहले यानी नवंबर 2021 में ये 4.91% थी। ये लगातार दूसरे महीने CPI में गिरावट देखने को मिली है।
महंगाई घटने की ये बड़ी वजहें :
1- खाने-पीने का सामान खास तौर पर सब्जियों की कीमतों के घटने की वजह से महंगाई घटी है। नवंबर महीने में खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर अक्टूबर के 7.01% से घटकर 4.67% पर आ गई।
2- थोक महंगाई दर में गिरावट की असली वजह खाने-पीने की चीजों में गिरावट है जो 22 महीने के निचले लेवल 2.17% पर आ चुका है। जबकि अक्टूबर 2022 में खाद्य महंगाई दर 6.48% पर थी। वहीं फूड इंडेक्स महीने दर महीने 1.8% पर आ चुकी है।
3- इसके अलावा मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट्स की महंगाई भी घटकर 3.59% पर आ गई है, जो पहले 4.42% पर थी। ईंधन और बिजली (फ्यूल एंड पावर इंडेक्स) की महंगाई दर भी अक्टूबर के 23.17% से घटकर नवंबर में 17.35% पर पहुंच गई है।
4- RBI को खुदरा और थोक दोनों महंगाई दरों को कम करने में कामयाबी पाई है। इस गिरावट की प्रमुख वजह खाद्य, धातु, कपड़ा और रासायनिक उत्पादों की कीमतों में कमी आना है।
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रिजर्व बैंक कैसे कसता है महंगाई पर लगाम?
महंगाई कम करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) बाजार से अतिरिक्त पैसा (Liquidity) को खींच लेता है। इसके लिए रिजर्व बैंक के पास कई टूल्स होते हैं। रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ा देता है, जिससे बाजार में जरूरत से ज्यादा पैसे खींचने में मदद मिलती है। इससे सभी तरह के लोन महंगे हो जाते हैं, जिससे लोग खरीदारी कम कर देते हैं और महंगाई कंट्रोल में आने लगती है। हालांकि, इसका असर तुरंत नहीं होता बल्कि इसमें कुछ वक्त लगता है। बता दें कि RBI ने हाल ही में रेपो रेट में 0.35 बेसिस प्वाइंट का इजाफा किया है। इसके बाद रेपो रेट 5.90% से बढ़कर 6.25% हो गई है। रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को लोन देता है।
क्या होता है CPI और WPI?
महंगाई को मापने के लिए कई देशों में WPI (Wholesale Price Index) को आधार बनाया गया है। हालांकि, भारत में WPI के साथ ही CPI को भी महंगाई मापने का प्रमुख जरिया माना जाता है। दरअसल, रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति तय करने के लिए थोक मूल्यों की जगह खुदरा महंगाई दर को मानक (स्टैंडर्ड) मानता है। यही वजह है कि भारत में महंगाई मापने का सटीक पैमाना (Consumer Price Index) है।
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