भारत के इस गांव में पैदा होना ही IIT में सेलेक्ट होने की गारंटी ! हर घर से निकलते हैं IITians

हर साल लाखों की संख्या में छात्र आईआईटी में एडमिशन पाने जेईई मेंस और एडवांस की परीक्षा में शामिल होते हैं। इनमें से कुछ को उनका सपना पूरा करने का मौका मिलता है। लेकिन एक गांव ऐसा भी है, जहां करीब-करीब हर घर में एक आईआईटीयंस मौजूद है।

करियर न्यूज : IIT में पढ़ने का हर स्टूडेंट्स का सपना होता है। लेकिन हर साल कुछ ही छात्रों का यह सपना पूरा हो पाता है। हर साल बड़ी संख्या में छात्र जेईई मेंस और एडवांस की परीक्षा में शामिल होते हैं। जेईई मेंस (JEE Mains) में ढाई लाख रैंक तक के स्टूडेंट्स को जेईई एडवांस (JEE Advance) में शामिल होने का मौका मिलता है और फिर इस एग्जाम को क्वॉलिफाई करने वाले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एडमिशन पाते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं देश के उस गांव की कहानी, जहां हर घर में एक आईआईटीयंस (IITians) मौजूद है। लोग करते हैं कि यहां पैदा होना ही आईआईटी में सेलेक्ट होने की गारंटी है! आइए जानते हैं इस गांव के बारें में विस्तार से..

इस गांव में पैदा होते हैं IITians
बिहार (Bihar) के गया (Gaya) का एक गांव है पटवा टोली (Patwa Toli)..यहां जाते ही आपको बुनाई की आवाजें सुनाई देंगी लेकिन इस गांव को लोग आईआईटीयन की फैक्ट्री कहकर बुलाते हैं। हर साल इस गांव से दर्जनों छात्र आईआईटी में सेलेक्ट होते हैं। वृक्ष (Vriksh) नाम की एक संस्था यहां के गरीब बच्चों को मुफ्त में तैयारी करवाती है और उनके सपने को साकार करती है। यह संस्था साल 2013 से चल रही है। आईआईटी ग्रेजुएट्स इसके लिए फंडिंग करते हैं। देश के कई फेमस टीचर ऑनलाइन बच्चों की क्लास लेते हैं। 

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25 साल और इतने आईआईटीयंस
वृक्ष संस्था के संस्थापक हैं चंद्रकांत पाटेकर। उन्होंने बताया कि उनके गरीब दोस्त तो पैसों की कमी के चलते पढ़ाई नहीं पूरी कर पाए, उन्हें देखकर ही इस संस्था को खोलने का मन बनाया। संस्था का लक्ष्य सिर्फ इतना है कि पैसों की कमी के चलते किसी भी बच्चे की पढ़ाई न रुकने पाए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 25 सालों में इस गांव से 300 के करीब इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स निकले हैं। 31 साल पहले 1991 में इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब गांव के बुनकर के बेटे जितेंद्र पटवा ने आईआईटी में सेलेक्शन पाया। उस वक्त गांव गरीब हुआ करता था। जितेंद्र को देख बाकी बच्चों ने भी उसी की तरह बनने की ठानी और जितेंद्र पटवा ने भी उनकी खूब मदद की। गांव में एक ग्रुप बनाया गया, जिसका नाम दिया गया 'नव स्किल प्रयास'. इसी के जरिए बच्चों की मदद की गई।

और आईआईटी हब बन गया पटवा टोला
शुरू-शुरू में गांव के तीन छात्रों का आईआईटी में सेलेक्शन हुआ। फिर 1999 में एक साथ सात छात्रों ने इस लिस्ट में अपना नाम दर्ज करवा लिया। पढ़ाई के बाद जब इनकी जॉब लगी तो इन्होंने गांव का आर्थिक तौर पर विकास किया और यहां के छात्रों को आर्थिक मदद करते रहे। यहीं ये सिलसिला चल निकला और आज इस गांव की पहचान आईआईटी हब,, आईआईटीयंस फैक्ट्री के तौर पर होती है।

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