नूंह की 11 बहनें बनीं मिसाल, मुस्लिम समाज में बालिका शिक्षा के लिए जगा रहीं शिक्षा की अलख

Published : May 05, 2023, 12:17 PM ISTUpdated : May 05, 2023, 01:31 PM IST
11 sisiters of Nuh

सार

नूंह की 11 बहनों ने कठिनाइयों के बीच मुसलिम समाज में शिक्षा की अलख जगाने के साथ शिक्षा के प्रसार को आगे बढ़ा रही हैं। पिता रियाज खान की तालीम ने उन्हें समाज में बदलाव लाने को प्रेरित किया। शबनम और नफीसा और उनकी नौ बहनें नूह के लिए मिसाल बन गई हैं। 

एजुकेशन डेस्क. हरियाणा का नूंह डिस्ट्रिक्ट प्रदेश के सबसे पिछड़े शहरों में से एक है, लेकिन यहां की 11 बहनें अपने आप में किसी मिसाल से कम नहीं है। छोटे से डिस्ट्रिक्ट में रहकर लाख परेशानियां झेल कर उन्होंने शिक्षा प्राप्त की और आज वे मुस्लिम समाज में बालिका शिक्षा को लेकर विशेष तौर पर काम कर रही हैं। इनमें 8 शिक्षक बन गई हैं और इनका प्रयास रहता  है कि मुस्लिम समाज की बालिकाएं भी शिक्षित हों।  

पंजाब वक्फ बोर्ड के पूर्व राजस्व अधिकारी नियाज खान की ये बेटियां मुसलिम मानसिकता में शिक्षा को लेकर जो सोच है उसमें बदलाव लाने के लिए प्रयासरत हैं। आज नियाज खान इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी बेटियों की बदौलत नूंह में आए बदलाव के लिए उन्हें उनकी बेटियों के कारण याद किया जाता है। क्योंकि उन्होंने अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा दी थी और वे यहां की बेटियों को शिक्षित कर उन्हें योग्य बना रही हैं। 

बालिकाओं की शिक्षा पर जोर
दिवंगत नियाज खान की बेटी शबाना पेशे से शिक्षक हैं। उन्होंने बताया कि वह और उनकी बहनें हमेशा यह प्रयास करती हैं कि स्कूल में अधिक से अधिक छात्राएं आएं और बीच में पढ़ाई न छोड़ें। इसके लिए समय-समय पर अभिभावकों से मिलकर भी उन्हें शिक्षा को लेकर जागरूक करते हैं। शबाना की माने तो वह पहले एनजीओ में भी काम कर चुकी हैं जिस कारण उन्हें स्कूल में काम को लेकर थोड़ा कम परेशानी हुई।  शबाना अब टीजीटी (Trained Graduate Teacher) हो चुकी हैं। वह बताती हैं कि वैसे तो नूंह में कई स्कूल-कॉलेज खुल गए हैं लेकिन अभी भी यहां पर एक भी यूनिवर्सिटी नहीं है जिस कारण महिलाओं की पढ़ाई रुक जाती है।

मेवात विकास मंच के जनरल सेक्रेटरी आसिफ अली चंदानी बताते हैं कि यहां ज्यादातर परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं या फिर छोटे मोटे कारोबार कर रहे हैं। इस वजह से वह बेटियों को पढ़ाई करने के लिए दूर भेजने के खर्च आदि को लेकर भी चिंतित रहते हैं और फिर उन्हें आगे पढ़ाने से बचते हैं। 

पिता ने विरोध के बाद भी दी शिक्षा
शबाना की बहन नफीसा ने बताया कि पिता की ट्रांसफरेबल जॉब थी लेकिन उन्होंने इसके बाद भी बेटियों की पढ़ाई को लेकर कभी भी समझौता नहीं किया। बाद में एक एक्सीडेंट के बाद उन्होंने वॉलेंट्री रिटायरमेंट ले लिया और यहीं आ गए। इस दौरान बेटियों पढ़ाई के लिए कॉलेज और विश्विविद्यालय  भेजने प उन्हें लोगों का विरोध भी झेलना पड़ा लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हमें पढ़ाया और यही वजह है कि हम भी बालिकाओं की शिक्षा पर जोर दे रहे हैं। 

content source: Awaz-The Voice

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