
बैंगलोर में एक ऊँची सैलरी पाने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी नौकरी गँवाने की कहानी शेयर की है। भारत में काम करने वाले मध्यम वर्ग के लिए सामाजिक सुरक्षा कहाँ है, यह सवाल उठ खड़ा हुआ है। आजकल कॉस्ट कटिंग और ऑफिस पॉलिटिक्स के नाम पर लोगों की नौकरियाँ जा रही हैं। सबसे ज़्यादा कमाई करने वाले लोग सबसे पहले निशाने पर होते हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियों ने भी हज़ारों कर्मचारियों को निकाल दिया है।
कंपनी से छँटनी!
सलीम नाम के एक टेक NIT से टॉप रैंक के साथ ग्रेजुएट थे। हाल ही तक, बैंगलोर में उनका ₹43.5 लाख का सालाना पैकेज था। यह कहानी वेंकटेश अला ने सोशल मीडिया पर शेयर की है। सलीम को पिछले महीने कंपनी से निकाल दिया गया। उन्हें सिर्फ़ तीन महीने की सैलरी देकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
डिप्रेशन में चले गए टेक!
पिछले पाँच सालों में, सलीम ने ₹30 लाख से ज़्यादा इनकम टैक्स दिया है। पिछले साल ही उन्होंने ₹11.22 लाख टैक्स भरा था। अब उनके पास नौकरी नहीं है, घर का लोन है, और बच्चों की पढ़ाई के लिए हर बच्चे पर ₹1.95 लाख सालाना खर्च करने के लिए वह नौकरी पर ही निर्भर थे। इसलिए वह भावनात्मक रूप से टूट गए हैं और डिप्रेशन में चले गए हैं।
सरकार ने साथ छोड़ दिया!
सलीम का मानना है, "मैंने सरकार को लाखों रुपये टैक्स दिए, लेकिन ज़रूरत के समय इसी सरकार ने मुझे अकेला छोड़ दिया।" हालाँकि, सलीम का असली नाम अभी तक सामने नहीं आया है। कहा जा रहा है कि देश में इस व्यवस्था को बदलना होगा, वरना देश का आगे बढ़ना मुश्किल है।
क्या वाकई सरकार से किसी मदद की उम्मीद करनी चाहिए या नहीं, इस पर सोशल मीडिया पर बड़ी बहस छिड़ी हुई है।