बिटिया को अफसर बनाने पिता ने किराने की दुकान में किया काम, IAS बनकर बेटी ने ऊंचा किया नाम

यूपीएससी द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सर्विसेस परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में एक है। इसमें सफल होने वाले उम्मीदवार ब्यूरोक्रेसी में उच्च पदों पर बहाल होते हैं। इस परीक्षा में सफल होने के लिए मेरिट के साथ ही साथ गहरी लगन और दृढ़ इच्छा शक्ति होनी चाहिए। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 4, 2020 9:42 AM IST / Updated: Jan 04 2020, 03:29 PM IST

करियर डेस्क। यूपीएससी द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सर्विसेस परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में एक है। इसमें सफल होने वाले उम्मीदवार ब्यूरोक्रेसी में उच्च पदों पर बहाल होते हैं। इस परीक्षा में सफल होने के लिए मेरिट के साथ ही साथ गहरी लगन और दृढ़ इच्छा शक्ति होनी चाहिए। लाखों की संख्या में उम्मीदवार इस परीक्षा में शामिल होते हैं, लेकिन महज कुछ सौ कैंडिडेट ही सफल हो पाते हैं और उनमें आईएएस कैडर पाने वालों की संख्या तो और भी कम होती है। आज हम आपको एक ऐसी लड़की की कहानी बताने जा रहे हैं, जो कठिन परिस्थितियों के बावजूद इस परीक्षा में मेहनत और संकल्प शक्ति की बदौलत सफलता हासिल कर आईएएस अधिकारी बनी। खास बात यह है कि उसकी इस सफलता में उसके पिता का बहुत बड़ा योगदान रहा, जिन्होंने अपनी बेटी की आर्थिक मदद के लिए किराने की एक दुकान में सेल्समैन का काम तक किया। 

लगातार जारी रखा प्रयास
श्वेता अग्रवाल नाम की इस लड़की ने 2016 में हुई यूपीएससी की परीक्षा में 19वीं रैंक हासिल कर आईएएस अधिकारी बनने का अपना सपना पूरा किया। इसके पहले उन्होंने 2013 में भी यूपीएससी की परीक्षा दी थी। उन्हें इस परीक्षा में 497वीं रैंक मिली। उन्हें इंडियन रेवेन्यू सर्विस का कैडर मिला, लेकिन श्वेता अग्रवाल तो आईएएस अधिकारी बनना चाहती थीं। इसे किस्मत का ही खेल कहेंगे कि साल 2014 में वे प्रिलिम्स में भी पास नहीं कर सकीं। लेकिन इससे श्वेता जरा भी हतोत्साहित नहीं हुईं और 2015 में एक बार फिर यूपीएससी की परीक्षा में शामिल हुईं। इस बार उन्हें 141वीं रैंक मिली। यह रैंक मिलने के बावजूद उन्हें आईएएस कैडर नहीं मिल पाया। लेकिन श्वेता ने हार नहीं मानी और अगले साल फिर से परीक्षा दिया। इस बार उन्हें 19वीं रैंक मिली और उनका सिलेक्शन आईएएस में हो गया। 

पिता ने निभाई बड़ी भूमिका
श्वेता अग्रवाल का कहना है कि उनकी सफलता में उनकी फैमिली, खासकर उनके पिता की बहुत बड़ी भूमिका रही, जिन्होंने हमेशा उन्हें प्रोत्साहित किया। यह अलग बात है कि ग्रैजुएशन करने के बाद वे एक जॉब करने लगी थीं, लेकिन शुरुआती दौर में उन्हें सपोर्ट करने के लिए उनके पिता ने किराने के दुकान में सेल्समैन की जॉब भी की। वे बताती हैं कि कैसे गरीबी से लड़ते हुए उनके माता-पिता ने उन्हें अच्छी शिक्षा दिलवाई। श्वेता अपने माता-पिता को अपना आदर्श मानती हैं और उनका कहना है कि उन्हें जो सफलता मिली, उसके पीछे उनके पिता की भूमिका है।

था शादी का दबाव
श्वेता का जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था। उनका परिवार बहुत बड़ा था। परिवार में कुल 28 सदस्य थे और माली हालत अच्छी नहीं थी। फिर भी उनके पिता ने बहुत संघर्ष कर उनका एडमिशन कोलकाता के सेंट जोसेफ स्कूल में करा दिया। वहां की फीस भरने और बेटी की पढ़ाई का बढ़िया इंतजाम करने के लिए श्वेता के पिता को छोटे-मोटे कई तरह के काम करने पड़े। श्वेता बताती हैं कि उन दिनों उन्हें काफी गरीबी झेलनी पड़ी, लेकिन उन्होंने अपना मनोबल ऊंचा बनाए रखा। हाईस्कूल पास करने के बाद जब कॉलेज में एडमिशन कराने का बात आई तो घर के लोगों ने कहा कि ज्यादा पढ़ा कर क्या करना, आखिर शादी ही तो करनी है। श्वेता अग्रवाल बताती हैं कि तब तक परिवार में उनसे कम उम्र की लड़कियों की भी शादी हो चुकी थी और उन पर भी शादी का दबाव बनाया जा रहा था। 

देखा था बड़ा सपना
श्वेता अग्रवाल ने बड़ा सपना देखा था और उनके मां-पिता भी उनके साथ थे। उनके पहले परिवार में किसी ने ग्रैजुएशन नहीं किया था। आखिर किसी तरह से पैसों का इंतजाम कर उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज में एडमिशन लिया। वहां वे अच्छे नंबरों से पास होती रहीं और कॉलेज के टॉप स्टूडेंट्स में उनका नाम शुमार रहा। ग्रैजुएशन करने के बाद एक अच्छी कंपनी में उन्हें जॉब भी मिल गई, लेकिन श्वेता अग्रवाल तो यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करना चाहती थीं। नौकरी करने के साथ-साथ वे इस परीक्षा की तैयारी में जुट गईं। बाद में उन्होंने सिर्फ तैयारी पर ही ध्यान केंद्रित करने के लिए नौकरी भी छोड़ दी और लगातार प्रयास के बाद अपना लक्ष्य हासिल करने में कामयाब रहीं।

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