आजादी के 75 साल बाद कितना बदल गया देश का एजुकेशन सिस्टम, 10 पॉइंट में समझिए हिंदुस्तान की शिक्षा का हाल

Published : Aug 15, 2022, 06:00 AM IST
आजादी के 75 साल बाद कितना बदल गया देश का एजुकेशन सिस्टम, 10 पॉइंट में समझिए हिंदुस्तान की शिक्षा का हाल

सार

आज देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। देश हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत के नाम इस वक्त अनगिनत उपलब्धियां हैं। वह दुनिया की बड़ी ताकतों में से एक है। ऐसा ही एक क्षेत्र है शिक्षा। स्वतंत्रता दिवस पर जानिए शिक्षा में कहां खड़ा है हिंदुस्तान...

करियर डेस्क : आज हिंदुस्तान के लिए गर्व का दिन है। देश में स्वतंत्रता दिवस का जश्न चल रहा है। आजादी के 75 साल (75 Years of Independence) पूरे हो गए हैं। देश आज हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। एजुकेशन सिस्टम को लगातार मजबूत किया जा रहा है। इसी का नतीजा है कि दुनिया में आज भारत का परचम लहरा रहा है। विश्व एक आशा की नजर से हमारी ओर देख रहा है। जब 15 अगस्त, 1947 में देश आजाद हुआ था, तभी सरकार ने समझ लिया था कि शिक्षा, समृद्धि का एकमात्र रास्ता है। यही कारण रहा कि इस ओर हर सरकार ने फोकस किया। आजादी के वक्त देश की आबादी 36 करोड़ थी, लेकिन साक्षरता दर (Literacy Rate) सिर्फ 18 प्रतिशत...जिसकी प्रगति आज गवाह है मजबूत होते हिंदुस्तान की। 10 पॉइंट में समझिए आजादी से अब तक देश की शिक्षा में कितना बदलाव हुआ...

  1. साल 1951 में भारत में साक्षरता दर सिर्फ 18.3 प्रतिशत थी। जो 2018 में बढ़कर 74.4 प्रतिशत हो गई। 2021 के एक आंकड़े के मुताबिक देश में साक्षरता दर 77.7 परसेंट है। इस अवधि में महिला साक्षरता दर में भी काफी बदलाव देखने को मिला है। आजादी के वक्त सिर्फ सिर्फ 8.9 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थीं, जो साल 2021 तक बढ़कर  70.3 प्रतिशत हो गई हैं।
  2. जब देश आजाद हुआ था तब 9 प्रतिशत से भी कम महिलाएं पढ़ी-लिखी थीं। यानी उस वक्त की जनसंख्या के हिसाब से 11 में से सिर्फ 1 महिला ही पढ़-लिख सकती थी। लेकिन आज स्थिति बदल गई है। प्रेस सूचना ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, स्कूली शिक्षा में लड़कियां अब लड़कों से आगे निकल गई हैं। पहली से आठवीं तक में जेंडर इक्वैलिटी में सुधार है। प्राइमरी एजुकेशन यानी पहली से पांचवी तक हर लड़के के अनुपात में 1.02 लड़कियां हैं, जबकि 1950-51 में यह अनुपात सिर्फ 0.41 का था। वहीं, 6वीं से 8वीं तक प्रति लड़के पर 1.01 लड़कियां हैं।
  3. स्वतंत्र भारत में एजुकेशन सिस्टम को सुधारने पर हर सरकार का फोकस रहा है। गांव-गांव तक शिक्षा का स्तर बढ़ाने पर जोर दिया गया है। इसी का नतीजा है कि आजादी के वक्त स्कूलों की संख्या 1.4 लाख थी, जो 2020-21 में बढ़कर 15 लाख हो गई है।
  4. आजादी के 75 सालों में कॉलेजों की संख्या में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। 1950-51 में देश में सिर्फ 578 कॉलेजों थे, जिनकी संख्या अब 42,343 हो गई है। वहीं, विश्वविद्यालयों की संख्या भी 27 से बढ़कर 1,043 हो गई है।
  5. भारत में आजादी के 75 सालों में चिकित्सा शिक्षा को लेकर भी गजब का बदलाव देखने को मिला है। पिछले सात दशक में देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या में 21 गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 1951 में जहां हिंदुस्तान में सिर्फ 28 मेडिकल कॉलेजों थे, अब इनकी संख्या बढ़कर 612 हो गई है।
  6. 1968 में, शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति पेश की गई थी। इसी दौरान शिक्षा का स्तर बेहतर बनाने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान (National Education Research) और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के साथ-साथ राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (SCERT) की स्थापना की गई थी।
  7. 1995 में बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्कूलों में मिड-डे-मील (Mid Day Meal) की शुरुआत की गई। इस योजना के पीछे सरकार का उद्देश्य था कि समाज के वंचित वर्गों के बच्चों को स्कूल तक लाना। 
  8. इसके बाद केंद्र सरकार ने स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए एक और कदम उठाया। देश में प्राथमिक शिक्षा को निशुल्क और अनिवार्य कर दिया गया। 2009 में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act) के तहत देश में 6 से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा की गारंटी दी गई।
  9. 22 जनवरी, 2015 को लड़कियों की शिक्षा के स्तर को और भी ज्यादा सुधारने पर जोर दिया गया। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' योजना शुरू की गई थी। साल 2018 में, आरटीई अधिनियम में संशोधन किया गया। आरटीई एक्ट (2009) के अनुसार, 8वीं तक किसी भी स्टूडेंट को अगली क्लास में जाने से नहीं रोका जा सकता।
  10. साल 2020 में वर्तमान केंद्र सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में नई क्रांति लाते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (New Education Policy 2022)  पेश की। इससे देश की शिक्षा में कई सुधार हुए। 10+2 मॉडल को बदलकर 5+3+3+4 मॉडल कर दिया गया। मातृभाषा पर जोर दिया गया। 5वीं तक अंग्रेजी और हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं (Regional Languages) को शिक्षा के माध्यम के रूप में बनाने पर जोर दिया गया।

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