शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी की घोषणा हो गई है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ और स्वामी सदानंद द्वारका शारदा पीठ के प्रमुख बनाए गए हैं। उत्तराधिकारी के नाम शंकरचार्य के पार्थिव देह के सामने तय हुआ। शंकराचार्य के निज सचिव सुबोद्धानंद महाराज ने नाम की घोषणा की।
करियर डेस्क : ज्योतिष्पीठाधीश्वर और द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swarupanand Saraswati) के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके शिष्य काशी के स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (Swami Avimukteshwaranand Saraswati) को ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ का नया शंकराचार्य बनाया गया है। बता दें कि रविवार दोपहर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया था। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में 99 साल की उम्र में वे ब्रह्मलीन हुए। आइए जानते हैं प्रतापगढ़ में जन्मे उमाशंक के अविमुक्तेश्वरानंद बनने की कहानी...
संस्कृति में आचार्य, छात्र राजनीति में सक्रिय
ज्योतिषपीठ के नए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का काशी से गहरा नाता है। यहीं के केदारखंड में रहकर उन्होंने संस्कृत विद्या का अध्ययन किया है। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से उन्होंने शास्त्री और आचार्य की पढ़ाई की है। इस दौरान वे छात्र राजनीति में भी काफी एक्टिव रहे और विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के महामंत्री भी चुने गए।
करपात्री जी का सानिध्य
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म हुआ था। वे जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य हैं। उनका मूलनाम उमाशंकर है। गांव से ही प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 9 साल की उम्र में वे गुजरात चले गए और धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य पूज्य ब्रह्मचारी श्री रामचैतन्य जी के सान्निध्य में संस्कृत की शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वे ब्रह्मचारी रामचैतन्य जी के साथ काशी आ गए और यहीं रहने लगे।
इस तरह उमाशंकर बने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
उन्होंने जीवनभर स्वामी करपात्री जी की सेवा की। जब करपात्री जी ब्रह्मलीन हो गए तो उन्हें पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निरंजन-देवतीर्थ और ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का दर्शन प्रा्प्त हुआ। यहीं पर इनको दीक्षा दी गई और उमाशंकर का नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप हो गया। इसके बाद 15 अप्रैल, 2003 को वाराणसी में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप को दंडी दीक्षा दी और इस तरह वे दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद हो गए। शंकराचार्य बनने से पहले तक अविमुक्तेश्वरानंद उत्तराखंड स्थित बद्रिकाश्रम की कमान संभाले हुए थे।
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