Morbi Bridge Collapse: बहती नदी में कैसे टिका होता है कोई ब्रिज, कैसे पड़ती है नींव, यह कितना मजबूत

Published : Oct 31, 2022, 02:30 PM ISTUpdated : Oct 31, 2022, 03:06 PM IST
Morbi Bridge Collapse: बहती नदी में कैसे टिका होता है कोई ब्रिज, कैसे पड़ती है नींव, यह कितना मजबूत

सार

आपने किसी नदी या समुद्र के ऊपर ब्रिज देखा होगा। ये ब्रिज पिलर पर बने होते हैं लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह पिलर कैसे तैयार होते हैं या ये पुल इन पर कैसे टिके होते हैं? आखिर इन पुल को बनाने में किन चीजों का इस्तेमाल होता है? इंजीनियर इसे कैसे तैयार करते हैं?

करियर डेस्क : गुजरात के मोरबी में माच्छू नदी पर रविवार शाम 140 साल पुराने पुल ढह जाने (Gujarat Bridge collapse) के बाद जो दर्दनाक मंजर सामने आया है। उसके बाद कई तरह के सवाल भी उपजे हैं। हादसे में 140 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। अब तक कई लोगों पर एक्शन भी लिया गया है। जानकारी के मुताबिक, हादसे के वक्त पुल पर करीब 500 लोग थे। आइए जानते हैं आखिरी किसी नदी पर पुल कैसे बनता है, यह कैसे टिका होता है औऱ कितना मजबूत होता है?

नदी पर कैसे पड़ती है पुल की नींव
आपने किसी बिल्डिंग की नींव पड़ते देखा होगा। ठीक इसी तरह से पुल का नींव भी तैयार किया जाता है। पुल बनाने से पहले ही पूरा प्रोजेक्ट तैयार किया जाता है और इसी आधार पर प्लान बनाने के बाद नींव रखी जाती है। पानी के बीचो-बीच पुल की जो नींव रखी जाती है, उसे कोफरडैम (Cofferdam) कहा जाता है। कोफर डैम ड्रम की तरह होता है। क्रेन की मदद से इसे पानी में स्थापित किया जाता है। स्टील के बड़े-बड़े प्लेट्स की मदद से कोफर डैम बनाया जाता है। यही प्लेट्स इसकी मजबूती होते हैं। कोफर डैम आकार अक्सर गोल या स्क्वायर ही होता है। यह पुल बनाने और नदी में पानी के बहाव के हिसाब से तैयार किया जाता है।

कोफरडैम को आसान शब्दों में समझिए
आपने कभी किसी मेले में मौत के कुएं का खेल जरूर देखा होगा। कोफरडैम भी बिल्कुल इसी तरह का होता है। यह ड्रम के आकार का काफी मजबूत होता है। पुल बनाना है तो सबसे पहले कोफरडैम को पानी के बीच में रखा जाता है। इससे नदी का बहाव आसपास से गुजरने लगता है और इसके अंदर नहीं जा पाता है। यह उसी तरह होता है, जैसे किसी पानी के गिलास में एक स्ट्रॉ रख दिया जाए। इसमें जो पानी भरता है, उसे बाहर निकाल दिया जाता है। इसके बाद कोफरडैम के नीचे की मिट्टी दिखने लगती है। इसके बाद वहां पिलर बनाया जाता है। इसी के अंदर जाकर इंजीनियर एक मजबूत पिलर तैयार करते हैं और फिर इन्हीं पिलर्स पर ब्रिज बनाया जाता है।

गहरे पानी में अपनाई जाती है ये टेक्निक
अब अगर नदी में कहीं भी पानी बेहद गहरा है तो फिर कोफरडैम काम नहीं आता है। ऐसी जगह पुल बनाने के लिए सबसे पहले रिसर्च किया जाता है। इसके बाद जमीन के नीचे कुछ पॉइंट सेट कर वहां की मिट्टी हटा दी जाती है। मिट्टी हटाने के बाद वह जगह पिलर बनाने लायक हो जाती है। इसके बाद उस जगह गड्डे बनाकर उसमें कई पाइप डालकर वहां का पानी निकाल लिया जाता है। इस पाइप में सीमेंट और कंक्रीट भर दिया जाता है। इसी तरह कई पाइपों को मिलाकर एक-एक पिलर तैयार कर उस पर पुल तैयार किया जाता है।

पुल कैसे बनाते हैं 
अब पुल बनाने की बात करें तो वहां के बॉक्स और बाकी सामान कहीं और बनाए जाते हैं। इन बॉक्स को एक से दूसरे पिलर के बीच ऐसा सेट किया जाता है ताकि ये सुरक्षित टिके रहें। कई पुल ऐसे भी होते हैं, जिनमें पिलर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। ऐसे पुल का निर्माण अलग तरीके से किया जाता है। पिलर के पुल बनाने से पहले पानी बहने की स्पीड, गहराई, मिट्टी के प्रकार, पुल पर पड़ने वाला भार जैसे कई फैक्ट्स पर रिसर्च किया जाता है। इसके बाद ही पुल बनाया जाता है। पुल कई तरह के होते हैं। इनमें Beam Bridge, Suspension Bridge, arch Bridge समेत कई ब्रिज होते हैं।

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