NCERT का प्री प्राइमरी क्लास के लिए सिलेबस तैयार, घर की भाषा में पढ़ाई पर जोर

पाठ्यक्रम में कहा गया है कि इस तरह उन्‍हें गणित सीखने में सार्थकता का बोध होगा। इससे बच्चे बेहतर तरीके से गणित समझ सकेंगे और उनमें गणित के प्रति रुचि भी विकसित होगी । गणितीय अवधारणाओं और शब्‍द सामर्थ्य सिखाने के लिए कहानी, शिशुगीत और कुछ अन्य खेल-आधारित गति‍विधियों का उपयोग किया जा सकता है।

नई दिल्ली. राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने पूर्व प्राथमिक कक्षा के लिये एक पाठ्यक्रम तैयार किया है, जिसमें बच्चों के साथ अभिभावकों, शिक्षकों के संवाद को बढ़ावा देने, घर की भाषा में पढ़ाई, खेल एवं स्व-अनुभव आधारित गतिविधियों पर जोर दिया गया है ।

नए सिलेबस से बच्चे बेहतर तरीके से गणित समझ सकेंगे

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राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के पूर्व प्राथमिक कक्षा के पाठ्यक्रम के अनुसार, ‘‘ अक्सर देखा गया है कि बच्‍चों में गणित के प्रति भय या अरुचि पैदा हो जाती है क्‍योंकि उनमें गणितीय अवधारणाओं की समझ परिवेश के साथ संबंध नहीं जोड़ पाती । इसलिए यह बहुत महत्‍वपूर्ण है कि पूर्व संख्‍या अवधारणा और संख्‍या बोध इस तरह विकसित किया जाए कि बच्‍चे प्रतिदिन के क्रियाकलापों को परिवेश से जोड़ सकें ।’’

पाठ्यक्रम में कहा गया है कि इस तरह उन्‍हें गणित सीखने में सार्थकता का बोध होगा। इससे बच्चे बेहतर तरीके से गणित समझ सकेंगे और उनमें गणित के प्रति रुचि भी विकसित होगी । गणितीय अवधारणाओं और शब्‍द सामर्थ्य सिखाने के लिए कहानी, शिशुगीत और कुछ अन्य खेल-आधारित गति‍विधियों का उपयोग किया जा सकता है।

NCRT का सुझाव बच्चों को एक्टिविटी से जोड़ा जाए

एनसीईआरटी ने सुझाव दिया है कि ऐसी गतिविधियों की योजना बनानी चाहिए जिनमें भाषा प्रयोग के विभि‍न्न स्वरूपों या विभि‍न्न उद्देश्‍यों की संभावनाएँ बनती हों, जैसे कहानी सुनाना, बातचीत, अनुभव साझा करना, प्रश्‍न पूछना और उत्तर देना या किसी कहानी को नाटक के रूप में प्रस्तुत करना आदि। ये अवसर बच्चों के प्रभावशाली तरीके से वार्तालाप कौशल की नींव मज़बूत करेंगे, उनके शब्द-भंडार में वृद्धि करेंगे और उनमें अपने आप को अभि‍व्यक्‍त‍ करने के लिए आत्मविश्‍वास पैदा करेंगे।

पाठ्यक्रम में इस बात पर जोर दिया गया है कि हर बच्‍चा अलग होता है और वह अपनी गति से ही बढ़ता, सीखता और विकसित होता है । इसमें कहा गया है कि बच्‍चे अभिभावकों, परिवार, शिक्षक एवं समाज के साथ अपने संबंधों से सीखते हैं और संबंध बनाए रखने से बच्‍चों में सुरक्षा की भावना, आत्‍मविश्‍वास, कौतूहल और संवाद करने की क्षमता पैदा होती है।

बच्चों की उम्र के अनुसार सीखने के परिवेश बनाए शिक्षक

पाठ्यक्रम में कहा गया है कि पूर्व-प्राथमिक विद्यालयों में आने वाले बच्‍चों की मातृभाषा/घर की भाषा में शिक्षण को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर स्‍वीकार किया गया है क्‍योंकि शुरुआती वर्षों में अवधारणाओं की समझ बनाने के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्‍त तरीका है । गौरतलब है कि प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के लिए एक उत्कृष्ट पाठ्यक्रम और शैक्षिक ढांचा तैयार करने की सिफारिश के अनुरूप एनसीईआरटी ने यह पाठ्यक्रम तैयार किया है ।

इसमें कहा गया है कि शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्‍चों की आयु के अनुरूप सीखने की भिन्‍न-भिन्‍न आवश्‍यकताओं को पहचानें और सीखने के परिवेश को बच्‍चों के अनुकूल बनायें। साथ ही शिक्षक इस बात पर भी ध्‍यान दें कि बच्‍चों को क्‍या सीखने की ज़रूरत है और वे कैसे जानकारी प्राप्‍त करेंगे। ऐसी गतिविधियाँ बनाई जाएँ जिनसे जुड़कर बच्‍चे विषय वस्‍तु का भाव समझें, उसे पूरी तरह ग्रहण कर सकें तथा उन्हें अभ्यास करने एवं समझ बनाने में मदद मिले ।

पाठ्यक्रम में यह भी कहा गया है कि अभि‍भावकों और बच्चों के साथ काम करने वाले अन्य लोगों की मदद से विशेष आवश्‍यकता वाले बच्‍चों के लिए उपयुक्त बदलाव किए जा सकते हैं। उपलब्‍ध सामग्री सभी बच्‍चों को बारी-बारी से खेलने के लिए पर्याप्‍त होनी चाहिए ताकि उनमें सामाजिक कौशलों के विकास को बढ़ावा मिले ।

(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)

(प्रतिकात्मक फोटो)

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