ईशा ने कुछ ऐसे लिखी कामयाबी की इबारत, 12 साल पहले शुरू की कंपनी अब लोगों को दे रही हैं रोजगार

ईशा एक लाइफ कोच के रूप में भी अपनी सेवाएं दे रही हैं। उन्होंने कहा कि “एक लाइफ कोच के रूप में मैं उन लोगों को प्रेरित करता हूं जो निराश हो जाते हैं या जो सोचते हैं कि वे कुछ नहीं कर सकते।

करियर डेस्क. अदम्य साहस, धैर्य, प्रबल आशावाद और दृढ़ संकल्प से लबरेज सिर्फ 32 साल की ईशा त्रिपाठी सूरी (Isha Tripathi Suri) आज सफलता की ऐसी इबारत लिख रही हैं जिसके बारे में उनके कई समकालीन केवल सोच भर सकते हैं। उत्तर प्रदेश के 'ताज सिटी' के नाम से मशहूर आगरा से वाणिज्य में स्नातक (Bachelor in Commerce) की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह एक आकर्षक नौकरी का विकल्प चुन सकती थी। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया। बल्कि जीवन जीने के प्रति सोचने का उनका अपना अलग नजरिया था। उन्होंने खुद नौकरी करने के बजाये लोगों को नौकरी देने और मुरझाये चेहरों पर मुस्कान बिखेरने का बीड़ा उठाया।

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अपने नाम की सार्थकता को साबित करते हुए उन्होंने विषम परिस्थितियों में सभी बाधाओं को पार कर आगे बढ़ने का दृढ निश्चय किया। पुरुष प्रधान समाज में उन्होंने अपनी एक मुकाम हासिल की। आज से 12 साल पहले केवल 20 गार्डों और अल्प राशि के साथ उन्होंने अपनी शक्ति सिक्योरिटी सर्विसेज के नाम से खुद की कंपनी की स्थापना की और, आज यह एक समृद्ध कंपनी है। जिसके कार्यालयदेश भर के कई प्रमुख शहरों में हैं और इसमें दो हजार से अधिक सुरक्षा कर्मचारी कार्यरत हैं। इसका श्रेय उनके सतत प्रयास और दृढ़ संकल्प को जाता है। 

ऐसा नहीं है कि इन वर्षों में उनके लिए यह एक आसान यात्रा रही है। उन्होंने भी उतार-चढ़ाव का दौर देखा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। कभी न थकने और रुकने की भावना से भरपूर ईशा हमेशा यह मानती हैं कि अटल इरादे के साथ आदमी जो चाहे वो कर सकता है। ईशा ने कहा, "मेरे पिता आरके त्रिपाठी ने कंपनी स्थापित करने में मेरी बहुत मदद की और, शादी के बाद मेरे ससुराल वालों ने भी अहम भूमिका निभाई, नहीं तो यहां तक पहुंचना संभव नहीं होता। विडंबना यह है कि हमारे समाज में अभी भी महिलाओं को कम आंकने की गलत धारणा है।"

आपकी कंपनी किन शहरों में काम करती है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "मेरी कंपनी उत्तर प्रदेश में स्थित है, और मुंबई, चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा और गुजरात में भी इसके कार्यालय हैं। हम ऐसी फ्रेंचाइजी को अन्य जगहों पर भी लगाने की कोशिश कर रहे हैं।

इस क्षेत्र में आने वाली कठिनाइयों के बारे में ईशा ने कहा, “ऐसा बहुत बार होता है कि पुरुष प्रधान समाज को नारी शक्ति को पचा पाना और स्वीकार करना मुश्किल हो जाता है। ऐसा मैंने कई बार महसूस किया। महिलाओं को बताया जाता है कि वे स्वतंत्र हैं। वे अपने पुरुष समकक्षों के बराबर आगे बढ़ रही हैं। सब कुछ है, लेकिन कहीं न कहीं हमारा समाज इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है। यह मेरा अपना मत है। लोग इससे सहमत नहीं भी हो सकते हैं। समाज एक बात कहता है, लेकिन जब बात सही अर्थों में स्त्री की स्वतंत्रता की आती है, चाहे वह हमारी देर रात की सैर हो या पुरुष साथियों के साथ बैठना हो, इस पर शब्दों और कर्मों में बहुत बड़ा अंतर है।”

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ईशा लायंस क्लब, वाराणसी चैप्टर की उपाध्यक्ष भी हैं। "यह मेरे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। मुझे बहुत खुशी है कि मैं वाराणसी से इस एसोसिएशन का हिस्सा हूं।” जब उनसे पुछा गया कि समाज सेवा के क्षेत्र में महिलाएं आगे आ रही हैं। आप इसे महिला सशक्तिकरण के रूप में कैसे देख रही हैं तो ईशा ने कहा, "यह बहुत अच्छी बात है कि महिलाएं आगे आ रही हैं। हम वह सब कर सकते हैं जो कभी कहा गया था कि एक महिला का अधिकार क्षेत्र केवल घर तक ही सीमित है। ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने समाज और देश के लिए बहुत कुछ किया है और अपने लिए एक जगह बनाई है। इस बात पर मैं एक महिला के रूप में बहुत गर्व महसूस करती हूं।"

उन्होंने कहा, "अगर हम महिलाओं को लगता है कि कोई भी काम हमारी क्षमता से परे है या कोई लक्ष्य हमारी पहुंच से बाहर है, तो लड़की के रूप में पैदा होना बेकार है। 'सारा आकाश हमारा' का जज्बा हमारे दिलों में होना चाहिए। हमें एक इंसान का जीवन मिला है और समाज और राष्ट्र के लिए कुछ अच्छा करने का एक स्वर्णिम अवसर भी मिला है।”

ईशा एक लाइफ कोच के रूप में भी अपनी सेवाएं दे रही हैं। उन्होंने कहा कि “एक लाइफ कोच के रूप में मैं उन लोगों को प्रेरित करता हूं जो निराश हो जाते हैं या जो सोचते हैं कि वे कुछ नहीं कर सकते। वे जिस क्षेत्र में हैं, उन्हें कोई रास्ता नहीं मिलता या उन्हें लगता है कि वे अपने व्यवसाय में सफल नहीं हो सकते हैं, उनके लिए मेरा मंत्र है कि पहले खुद पर विश्वास करें क्योंकि दृढ़ प्रतिज्ञ होने और अटल इरादे से मंजिल पाई जा सकती है। हमेशा नए जोश के साथ जीवन में आगे बढ़ें।" 


नोटः ईशा त्रिपाठी की सक्सेज स्टोरी को हमारे पाठक श्री राम शॉ ने भेजी है। शब्दशः प्रकाशित।

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