अगर हमारे बच्चे सुबह 7 बजे स्कूल जा सकते हैं, तो जज और वकील 9 बजे कोर्ट क्यों नहीं आ सकते- जस्टिस यूयू ललित

Published : Jul 15, 2022, 03:05 PM ISTUpdated : Jul 15, 2022, 03:20 PM IST
अगर हमारे बच्चे सुबह 7 बजे स्कूल जा सकते हैं, तो जज और वकील 9 बजे कोर्ट क्यों नहीं आ सकते- जस्टिस यूयू ललित

सार

चीफ जस्टिस एनवी रमना अगस्त में रिटायर हो रहे हैं। जस्टिस यूयू ललित 26 अगस्त के बाद उनकी जगह लेंगे और देश के नए मुख्य न्यायाधीश होंगे। लेकिन इससे पहले ही उन्होंने व्यवस्था में बदलाव की शुरुआत कर दी है। जिसकी काफी सराहना हो रही है।

करियर डेस्क : देश के नए चीफ जस्टिस बनने जा रहे यूयू ललित (UU Lalit) शुक्रवार को जब डेढ़ घंटे पहले सुनवाई के लिए कोर्ट पहुंचे तो चर्चाएं होने लगी कि क्या सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) बदलाव की ओर बढ़ रहा है। दरअसल हुआ यूं कि वैसे तो हर दिन सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही शुरू होती है लेकिन शुक्रवार को जस्टिस यूयू ललित (UU Lalit)  सुबह 9 बजे ही कोर्ट पहुंच गए और 9.30 बजे से सुनवाई शुरू कर दी। इस दौरान उन्होंने कहा कि अगर छोटे-छोटे बच्चे हर दिन सुबह 7 बजे स्कूल जा सकते हैं, तो जज और वकील सुबह 9 बजे कोर्ट क्यों नहीं आ सकते। उन्होंने कहा कि हमें आदर्श स्थापित करते हुए सुबह 9 बजे ही अदालत आना चाहिए।

जस्टिस यूयू ललित ने क्या कहा
अमूमन सुप्रीम कोर्ट की बेंच सुबह साढ़े 10 बजे से सुनवाई करती है। कोर्ट शाम चार बजे तक चलती है। इस बीच दोपहर एक से दो बजे तक एक घंटे का लंच ब्रेक होता है। इसी व्यवस्था में बदलाव करते हुए शुक्रवार को जस्टिस ललित, एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की बेंच साढ़े नौ बजे ही केस की सुनवाई करने लगे। इस दौरान जस्टिस ललित ने कहा कि अगर अदालतें सुबह 9 बजे से शुरू होकर सुबह 11.30 बजे तक चलें और फिर 12 बजे तक आधे घंटे का ब्रेक हो। इसके बाद दोपहर 12 बजे से फिर कार्यवाही शुरू हो और दोपहर 2 बजे तक चले तो इससे शाम में लंबित मुद्दों पर काम करने का भी समय मिल सकता है।

पूर्व अटॉर्नी जनरल ने की सराहना
इस नई व्यवस्था की सराहना करते हुए देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल और सीनियर वकील मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने कहा कि यह एक अच्छी कवायद है। हम सभी को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए और इसका पालन करना चाहिए। उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट का जिक्र करते हुए बताया कि वहां तो पहले से ही इस व्यवस्था का पालन हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय में भी ऐसी व्यवस्था उचित रहेगी और इससे न्याय व्यवस्था में बदलाव भी होगा। 

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