संदीप कुमार (Sandeep Kumar) ने आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur) से मैथमेटिक्स एंड कम्प्यूटिंग में मास्टर्स की डिग्री लेने के बाद कॉरपोरेट सेक्टर में बड़ी सैलरी पर सर्विस को अहमियत नहीं दी। उन्होंने सिविल सर्विस ज्वाइन करने की राह चुनी।
करियर डेस्क. संदीप कुमार (Sandeep Kumar) ने आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur) से मैथमेटिक्स एंड कम्प्यूटिंग में मास्टर्स की डिग्री लेने के बाद कॉरपोरेट सेक्टर में बड़ी सैलरी पर सर्विस को अहमियत नहीं दी। उन्होंने सिविल सर्विस ज्वाइन करने की राह चुनी। कॉलेज के फाइनल ईयर से ही संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। वर्ष 2019 में पहला अटेम्पट दिया, इंटरव्यू तक पहुंचे लेकिन मेरिट लिस्ट में जगह नहीं मिली। यूपीएससी 2020 परीक्षा में उनकी 186वीं रैंक आयी है। उन्हें भारतीय पुलिस सेवा (IPS) कैटगरी में काम करने का मौका मिलेगा। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) के नतीजे 24 सितंबर, 2021 को जारी किए गए। फाइनल रिजल्ट (Final Result) में कुल 761 कैंडिडेट्स को चुना गया। Asianetnews Hindi संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) में सिलेक्ट हुए 100 कैंडिडेट्स की सक्सेज जर्नी (Success Journey) पर एक सीरीज चला रहा है। इसी कड़ी में हमने संदीप से बातचीत की। आइए जानते हैं उनकी सक्सेज जर्नी।
मधुबनी से हुई प्रारम्भिक शिक्षा
बिहार, मधुबनी स्थित मधेपुर ब्लॉक के तरडीहा गांव के रहने वाले संदीप की कक्षा 6 से 10वीं तक की पढ़ाई जवाहर नवोदय विद्यालय मधुबनी से हुई। 12वीं तक की पढ़ाई मधुबनी के ही इंडियन पब्लिक स्कूल से पूरी की। वर्ष 2014 से 2019 तक आईआईटी खड़गपुर से मैथमेटिक्स और कम्यूटिंग में पांच साल का इंटीग्रेटेड मास्टर कोर्स किया। उन्होंने वर्ष 2018 में कॉलेज के फाइनल ईयर के दौरान ही यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी थी। उनके पिता सुमन झा कंस्ट्रक्शन सेक्टर में कांट्रैक्टर हैं। मां सुनैना देवी गृहिणी हैं। बड़े भाई सुधाकर झा सिविल इंजीनियर हैं और देहरादून में कार्यरत हैं।
महत्वपूर्ण रही यूपीएससी जर्नी
संदीप कुमार कहते हैं कि यूपीएससी की जर्नी जीवन की महत्वपूर्ण जर्नी रही है। इसमें काफी सीखने को मिला है, संघर्ष भी रहा। असफलताएं भी हाथ लगी। जब यूपीएससी के पहले अटेम्पट में इंटरव्यू बोर्ड का सामना करने के बाद भी सिलेक्शन नहीं हुआ, तो हार नहीं माना। फिर अपनी गलतियों पर काम किया, उनको सुधारा और पुन: प्रयास किया। इससे मेरी क्षमता में निखार आया। मुझे पता चला कि मैं यह भी कर सकता हूं। काफी सुखद अनुभव रहा। इस जर्नी में बहुत कुछ सीखने को मिला।
गाइडेंस की रही कमी
संदीप कुमार कहते हैं कि हम लोग ग्रामीण परिवेश से आते हैं। सबसे बड़ी दिक्कत यह होती है कि गाइडेंस नहीं मिल पाता है। हमारे माता पिता उतने पढ़े लिखे नहीं है। आसपास उतने लोग नहीं है, जो आईआईटी से पढ़े हैं या फिर यूपीएससी वगैरह परीक्षा में सफल हुए हों। ऐसी स्थिति में जब गाइडेंस की कमी हो, तब आप सोचते हैं कि आपको कुछ बड़ा करना है, तो आपको खुद से ही बहुत कुछ करना पड़ता है। यूपीएससी में मेरे लिए यह एक चैलेंज रहा था। जब मैं परीक्षा की तैयारी के लिए प्रयास कर रहा था तो कॉलेज के जो सीनियर यूपीएससी निकाल चुके थे। उनसे सम्पर्क नहीं हो पा रहा था। स्ट्रेटजी वगैरह पता करने में मुश्किल हो रही थी। यह संघर्ष रहा। परिवार का भरपूर सपोर्ट रहा। वह हमेशा मुझे मोटिवेट करता रहा।
इस तरह खुद को करते थे मोटिवेट
संदीप कुमार कहते हैं कि मैं ईमानदारी और हॉर्डवर्क पर विश्वास करता हूं। परीक्षा के समय तक यदि मैंने अपना 100 फीसदी दिया है तो रिजल्ट को लेकर ज्यादा टेंशन में नहीं आता था। यदि आप ईमानदारी के साथ हॉर्डवर्क कर रहे हैं तो फिर आप रिजल्ट की चिंता मत करिए। कृष्ण जी ने भी कहा है कि कर्मण्येधिकावारिस्ते मां फलेषु कदाचनं, इस सिद्धांत में पूरा विश्वास करता हूं। वह इस तरह खुद को मोटिवेट करते थे।
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हॉर्डवर्क जरूरी
संदीप जब यूपीएससी के पहले प्रयास में असफल हुए तो उन्होंने अपनी गलतियों पर काम किया। उनका यह दृढ विचार था कि मेहनत के साथ पुन: प्रयास करेंगे। उससे जरूर आगे अच्छा करेंगे। उनके अंदर यह भी मोटिवेशन रहता था। दूसरा यह कि यूपीएससी क्रैक करने के बाद आईएएस व आईपीएस की जो पोजिशन मिलने जा रही है। उसकी क्या अहमियत है? उससे हम समाज के लिए कितना कुछ कर सकते हैं। जिस तरह की उपलब्धि हम पाएंगे। उसके लिए जिस तरह की मेहनत हम कर रहे हैं। उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है।
जब लोग आप पर विश्वास करते हैं, उससे भी मोटिवेशन मिलता है
उनका कहना है कि यह सेंस मुझे शुरू से रहता था कि जो हम पा रहे हैं। वह बड़ी चीज है। एक तरह से बोल सकते हैं कि जो माउंट एवरेस्ट पर चढ रहे हैं। वह यह नहीं कहते हैं कि मुझे ठंड बहुत लग रही है या मुझें दिक्कत हो रही है। मुझे लगता था कि यह सब मेहनत उस मोल के लिए सही है। मुझे शिकायत नहीं होती थी कि मुझे क्यों इतनी मेहनत करनी पड़ रही है। यह मानता था कि यह सब तो करना ही है यदि मुझे इस तरह की चीजें उपलब्ध करनी हैं, यह इंटरनल मोटिवेशन का पार्ट था। ऐसे क्षणों में जब आप असफल होते हैं। दोस्त, माता-पिता आपको काफी समझाते हैं, जब लोग आप पर विश्वास करते हैं। उससे भी आपको मोटिवेशन मिलता है।
पिता को देते हैं सफलता का श्रेय
संदीप अपनी सफलता का श्रेय अपनी पिता को देते हुए कहते हैं कि उनका सबसे ज्यादा विश्वास और सपोर्ट मेरे साथ रहा है। माताजी का आशीर्वाद और सपोर्ट हमेशा से रहा। जब उन्होंने यूपीएससी की तरफ रूचि का विचार अपने पिता से शेयर किया और बताया कि यदि वह जॉब के बजाए तैयारी करें तो उनके लिए यह ज्यादा अच्छा रहेगा। पिता ने एक बार भी कुछ नहीं कहा। तब उन्होंने संदीप का उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि तुम यूपीएससी में भी सफलता पा सकते हो। हम तुम्हे पूरा सपोर्ट करेंगे। इस सपोर्ट से संदीप का मनोबल बढ़ा। जॉब करने की टेंशन नहीं रहीं। इस वजह से वह एकाग्रचित्त होकर तैयारी कर सके। सौरभ व आईआईटी के अन्य दोस्त भी उन्हें काफी मोटिवेट करते थे।
परीक्षा की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं तो ज्यादा टेंशन नहीं
संदीप कहते हैं कि इंटरव्यू के एक दिन पहले उतनी घबराहट नहीं थी क्योंकि इंटरव्यू के पहले हम लोग मॉक टेस्ट वगैरह देकर काफी प्रैक्टिस करते हैं। उससे विश्वास आ गया था कि हम सिचुएशन हैंडल कर लेंगे। यदि आप परीक्षा की आवश्यकताओं को डे टू डे पूरा कर रहे हैं तो आप ज्यादा टेंशन में नहीं होते हैं। इस बार उनका मेंस अच्छा गया था। इसलिए पिछली बार की तुलना में अधिक आत्मविश्वास था। यह पता था कि यह परीक्षा का अंतिम चरण है, इसमें अच्छा करना है। उसके बाद बहुत अच्छा होने वाला है, उत्साह था। थोड़ी सी नर्वसनेस जरूर थी कि इंटरव्यू में कुछ भी हो सकता है। यह सोच थी कि वहां जाकर अच्छा करना है। उनका इंटरव्यू करीब 30 मिनट तक चला था।
अपना लक्ष्य स्पष्ट रखिए
संदीप कहते हैं कि सबसे पहले अपना लक्ष्य स्पष्ट करें कि उनको क्या करना है। यूपीएससी में आपका लक्ष्य एकदम स्पष्ट होना चाहिए। अंदर से दृढ विश्वास आना चाहिए कि मुझे यही करना है, क्योंकि इसमें जिस तरह का हॉर्डवर्क जरूरी है। यह तभी आएगा, जब आप यह क्यिलर रहेंगे कि मुझे इसी फील्ड में जाना है। कभी भी अपने से झूठ मत बोलिए। पढ़ाई का आपने जो लक्ष्य बना रखा है, लगातार देखिए कि आप कर रहे हैं या नहीं कर रहे हैं। यदि आप पढ़ रहे हैं तो पढिए यदि नहीं पढ़ रहे हैं तो अपने आप से बोलिए कि आप नहीं पढ़ रहे हैं। आप परीक्षा के हिसाब से स्ट्रेटजी बनाइए। अपने मन के हिसाब से नहीं। यदि आपकी स्ट्रेटजी कभी भी काम नहीं कर रही है तो आप उसे रिफाइन करिए और अपनी स्ट्रेटजी को इम्प्रूव करिए। अपनी गलतियों से सीखिए।
एक बुरा दोस्त आपकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर सकता है
संदीप कहते हैं कि कभी भी अपनी गलतियों को मत दोहराइए। लोग रिवीजन नहीं करते हैं या फिर टेस्ट सीरिज नहीं देते हैं, असेसमेंट नहीं कर पाते हैं। यह कॉमन मिस्टेक है। इसको चिन्हित करिए और हमेशा अपने सामने रखिए कि मैं यह गलती कर रहा हूं या नहीं कर रहा हूं। मैंने भी हमेशा यही अपने सामने रखा था कि यह कॉमन मिस्टेक नहीं करना है। आपकी संगति अच्छी होनी चाहिए। हमेशा ऐसे लोगों की संगति में रहिए जो आपको हमेशा मोटिवेट करते हैं। बुरे लोगों की संगति में कभी नहीं रहना है। एक बुरा दोस्त आपकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर सकता है। मैं इस पर काफी सचेत रहता था। इस परीक्षा के फेज में काफी सचेत रहना है कि मुझे बुरे लोगों की संगति में नहीं जाना है।
देश की समस्याओं को समझें और सोचें क्या करेंगे योगदान
यूथ ही भारत का भविष्य है। यूथ में भी इस चीज की अवेयरनेस होनी चाहिए कि हम एक जिम्मेदारी लें। वह विचार करें कि इस देश के भविष्य निर्माण में हमारा क्या योगदान होगा। उसकी जिम्मेदारी हम लें। उसकी समझ बनाएं। उसकी जागरूकता हमारे अंदर आएं। यूथ देश की समस्याओं को समझे और उसे हैंडल कैसे करेंगे उसके लिए सोचें। विभिन्न तरह के एप्रोचेज हो सकते हैं। बहुत सारे एवेन्यू हैं, जिनके जरिए आप देश की सेवा कर सकते हैं जो भी फील्ड आपको अच्छा लगता है, उसमें बेहतर परफार्मेंस करिए और देखिए कि आप देश के लिए क्या कर सकते हैं।
इस वजह से हुए प्रेरित
उन्हें सिविल सर्विस ज्वाइन करने की प्रेरणा अपने परिवेश से मिली। उन्होंने बचपन से ही देखा कि इलाके में लोग स्वास्थ्य, शिक्षा और कनेक्टिविटी या बिजली की समस्याओं का सामना करते हैं। संदीप कहते हैं कि हमने देखा कि विकास का अभाव है। नेचुरल सवाल आता है कि इसमें क्या किया जा सकता है। ऐसे में विचार आया कि यदि आपको प्रशासनिक सेवा के जरिए एक बड़ा अवसर मिलता है तो आप जिले, राज्य और देश के विकास में एक अर्थपूर्ण योगदान दे सकते हैं। उनका पब्लिक सर्विस ओरिएंटेशन शुरू से रहा था। उन्होंने एनजीओ वगैरह में काम किया है। उनकी रूचि कारपोरेट सेक्टर में नहीं थी। प्रशासनिक सेवा का क्षेत्र उन्हें लुभाता था।
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