72 साल की बुजुर्ग खुद भीख मांगती है, लेकिन गरीब भूखे न रहें, इसलिए दान कर दी सारी कमाई

Published : Apr 18, 2020, 09:34 AM IST
72 साल की बुजुर्ग खुद भीख मांगती है, लेकिन गरीब भूखे न रहें, इसलिए दान कर दी सारी कमाई

सार

जिसके खुद खाने के लाले हों, वो महिला अगर गरीबों के लिए अपनी सारी जमा-पूंजी दान कर दे, तो अचरज होना लाजिमी है। लेकिन ऐसे लोग ही सही मायने में मानवता को जिंदा रखे हुए हैं। भीख मांगकर गुजर-बसर करने वाली यह महिला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की रहने वाली है। इसने भीख में जो कुछ कमाया था, वो सब दान कर दिया।

बिलासपुर, छत्तीसगढ़. कोरोना के चलते देश संकट से गुजर रहा है। ऐसे समय में गरीबों और असहाय लोगों की मदद ही सबसे बड़ा पुण्य है, मानवता है। लेकिन अगर जिसके खुद खाने के लाले हों, वो महिला अगर गरीबों के लिए अपनी सारी जमा-पूंजी दान कर दे, तो अचरज होना लाजिमी है। ऐसे लोग ही सही मायने में मानवता को जिंदा रखे हुए हैं। भीख मांगकर गुजर-बसर करने वाली यह महिला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की रहने वाली है। इसने भीख में जो कुछ कमाया था, वो सब दान कर दिया।

72 साल की सुखमती पिछले 10 साल से भीख मांगकर अपना और अपनी दो नातिनों का पेट पाल रही हैं। वे नातिनों को पढ़ा-लिखा भी रही हैं। जब उन्होंने देखा कि उनके आसपास रहने वाले गरीबों को भूखे रहना पड़ रहा है, तो उनका दिल रो पड़ा। उन्होंने भीख के दौरान जुटाया एक क्विंटल चावल और सारे पुराने कपड़े दान में दे दिए।


जब पार्षद से संपर्क किया..तो वो हैरान हुए..
सुखमती लिंगियाडीह इलाके की एक झुग्गी में रहती हैं। उन्होंने क्षेत्रीय पार्षद विजय केशरवानी से इस संबंध में संपर्क किया था। जब सुखमती ने दान देने की बात कही, तो पार्षद को हैरान हुई। लेकिन सुखमती ने कहा कि उनके पास जो कुछ है, अगर उससे कुछ गरीबों का पेट भरता है, तो उन्हें खुशी मिलेगी। यह सुनकर पार्षद भी भावुक हो उठे। सुखमती ने कहा कि गरीबी क्या होती है, उन्हें अच्छे से मालूम है। भूखा रहना क्या होता है, उन्हें पता है।

अब पार्षद भी आए मदद को आगे..
कहते हैं कि जब आप कोई नेक कार्य करते हैं, तो आपकी मदद के लिए भी कोई न कोई आगे आता है। सुखमती की दो नातिनें हैं। बाकी परिवार में कोई नहीं है। बड़ी नातिन 16 साल की है। वो 11वीं में पढ़ रही है। छोटी अभी 10 साल की है। वो छठवीं क्लास में है। सुखमती जैसे-तैसे करके उन्हें पढ़ा-लिखा रही हैं। जब इसकी जानकारी पार्षद को लगी, तो उन्होंने दोनों बच्चियों की पढ़ाई-लिखाई का खर्चा खुद उठाने का फैसला किया। पार्षद ने कहा कि जो महिला दूसरों के लिए इतना कुछ सोच सकती है, उसके लिए सोचना हमारा भी फर्ज है।
 

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