भाई की कलाई पर राखी बांधते ही रो पड़ी बहनें!

19 अगस्त 2011 को बस्तर में नक्सलियों ने सुरक्षा बल पर घात लगाकर हमला किया। अचानक हुए हमले में कांस्टेबल बसील टोप्पो शहीद हो गए। साल 2011 में बसील की पोस्टिंग बीजापुर के भद्रकाली थाने में की गई थी।

Asianet News Hindi | Published : Aug 12, 2019 11:06 AM IST / Updated: Aug 12 2019, 05:28 PM IST

जशपुर. यह कहानी एक ऐसे बेटे या भाई की है, जो दुनिया से जाने पर भी रोज अपनी मां के हाथों नहाता है, रक्षाबंधन पर गांव की बहनों से कलाई पर राखी बंधवाता है। यह है छत्तसीगढ़ के एक शहीद बसील टोप्पो से जुड़ी इमोशनल कहानी। हम बात कर रहे हैं, छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के ग्राम पेरूवांआरा की। शहीद बसील टोप्पो इसी गांव के रहने वाले थे। उनके पिता निर्मल टोप्पो ने बताया कि 18 अगस्त 2011 को बसील छुट्टी से ड्यूटी वापस जाने के दो दिन बाद ही नक्सल प्रभावित बस्तर के भोपालपटनम और भद्रकाली पुलिस स्टेशन के बीच के जंगल में हुए नक्सली हमले का सामना करते हुए शहीद हुए थे। उनकी शहादत की खबर सुनकर बसील की मां साफियामा पथरा गई थीं।

घर के आंगन में मां ने बेटे की बनाई मूर्ति 

बेटे को अंतिम विदाई देने के कुछ दिनों बाद शहीद बसील के बेटे की मां सफियामा ने बेटे की याद में घर के आंगन में ही मूर्ति बनवा दी। मूर्ति स्थापित होते ही सफियामा का दिनचर्या बदल गया। वह पिछले 7 साल से रोजाना सुबह उठ कर मंडल की सफाई करने के साथ शहीद बसील की प्रतिमा को नहलाती है और दुलारती है। मां बेटे के साथ ऐसे लाड-प्यार करती है जैसे कोई मां बचपन में अपने बच्चे के साथ दुलार करती है। 

बचपन से ही देश की सेवा करने की थी इच्छा

19 अगस्त 2011 को बस्तर में नक्सलियों ने सुरक्षा बल पर घात लगाकर हमला किया। अचानक हुए हमले में कांस्टेबल बसील टोप्पो शहीद हो गए। साल 2011 में बसील की पोस्टिंग बीजापुर के भद्रकाली थाने में की गई। अगस्त 2011 में वह 15 दिन की छुट्टी लेकर अपने घर पेरूवांआरा आए। लेकिन एक सप्ताह घर में रहने के बाद अचानक छुट्टी खत्म होने की सूचना मिली और हेडक्वार्टर जाने के लिए कहा गया। वह तुरंत तैयार होकर बीजापुर निकल गए। 19 अगस्त 2011 को अपने 11 साथियों के साथ भोपालपट्टनम से भद्रकाली कैंप को जा रहे थे। जंगल में नक्सलियों ने घात लगाकर उनके वाहन को निशाना बनाया। अधाधुंध फायरिंग की। इसमें बसील और उनके तीन साथी शहीद हो गए थे।

गांव की बहनें बांधती हैं राखी

शहीद जवान बसील से ग्रामीणों का भी लगाव देखते ही बनता है। यहां हर साल राखी के दिन बहनें सबसे पहले इस शहीद जवान की प्रतिमा की कलाई में राखी बांधती हैं। इसके बाद अपने भाइयों के हाथ पर रक्षा सूत्र सजाती हैं। अक्सर ऐसा होता है कि शहीद भाई की प्रतिमा पर राखी बांधते वक्त बहनों की आंखों में आंसू आ जाते हैं। शहीद जवान की वीरता को जीवंत रखने गांव में बसील के नाम पर खेल प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है।

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