सरकारी कंपनी अपने कर्मचारी की बेटी के इलाज पर खर्च करेगी 16 करोड़, अमेरिका से आएगा इंजेक्शन

साउथ ईस्टर्न कोल फिल्ड्स लिमिटेड ने अपने कर्मचारी सतीश कुमार रवि की दो साल की बेटी सृष्टि रानी के इलाज के लिए 16 करोड़ रुपए देने का फैसला किया है। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 21, 2021 1:10 AM IST / Updated: Nov 21 2021, 06:57 AM IST

रायपुर। सरकारी कंपनी कोल इंडिया (Coal India) की सहयोगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोल फिल्ड्स लिमिटेड (SECL) में ओवरमैन के रूप में काम करने वाले सतीश कुमार रवि की दो साल की बेटी सृष्टि रानी की जिंदगी खतरे में है। स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रॉफी (Spinal Muscular Atrophy) नाम की बीमारी से पीड़ित सृष्टि के इलाज के लिए 16 करोड़ रुपये के एक इंजेक्शन की जरूरत है। इसे अमेरिकी कंपनी नोवर्टिस बनाती है। 

सतीश के लिए इतना पैसा जुटा पाना संभव नहीं था। वह अपनी बच्ची की जान बचाने के लिए मदद की आश लगाए बैठे थे, लेकिन उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि इतना पैसा कैसे जुटेगा। ऐसे में उन्हें अपनी कंपनी से मदद मिली है। SECL के प्रबंधन ने सतीश की समस्या का पता लगने पर मदद करने का फैसला किया है। अब बच्ची के इलाज के लिए अमेरिका से इंजेक्शन मंगवाना संभव होगा।

Latest Videos

SECL के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. सनीश चंद्र ने बताया कि सतीश की मदद के लिए कोल इंडिया के अनुमोदन की जरूरत थी। पिछले दिनों कोल इंडिया के चेयरमैन ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए। कंपनी ने न सिर्फ अपने परिवार की बेटी की जान बचाने के लिए बड़ी पहल की, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उपक्रमों और दूसरे संस्थानों के लिए भी एक मिसाल पेश की है।

पोर्टेबल वेंटिलेटर पर है सृष्टि 
जन्म के 6 महीने के भीतर ही सृष्टि काफी बीमार रहने लगी थी। सतीश दिसंबर 2020 में बच्ची को लेकर क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर (Christian Medical College Vellore) गए। यहां उन्हें इस बीमारी के बारे में पता चला। 30 दिसंबर को सतीश सृष्टि को वेल्लोर से लेकर छत्तीसगढ़ लौट रहे थे। रास्ते में ही सृष्टि की तबीयत ज्यादा खराब हो गई। उसे SECL से इंपैनल्ड अपोलो अस्पताल बिलासपुर में भर्ती कराना पड़ा। वहां काफी समय इलाज चलने के बाद सतीश ने एम्स दिल्ली में सृष्टि का इलाज कराया। फिलहाल बच्ची का इलाज घर पर ही चल रहा है। वह पोर्टेबल वेंटिलेटर पर है।

रेयर बीमारी है स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी 
बता दें कि स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी रेयर जेनेटिक बीमारी है। इसके इलाज में जोल्गेन्स्मा (Zolgensma) नाम के इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके एक डोज की कीमत 16 करोड़ रुपये है। यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। इससे ग्रसित बच्चे की मांसपेशियां कमजोर होना शुरू हो जाती हैं। धीरे-धीरे मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं। आगे चलकर स्थिति ऐसी आ जाती है कि बच्चा बिना किसी सपोर्ट के सांस तक नहीं ले पाता है। 

बीमारी के शुरुआती स्टेज में बच्चे के गर्दन का कंट्रोल खत्म हो जाता है और फिर धीरे-धीरे हाथ-पैर ढीले पड़ने लगते हैं। इस बीमारी का ट्रीटमेंट जीन थेरेपी से होता है। स्वस्थ जेनेटिक मॉलिक्यूल को रीड की हड्डी में इंजेक्ट किया जाता है। यह कमजोर पड़ चुके मांसपेशियों में फिर से नई जान डालता है।

जोल्गेन्स्मा इंजेक्शन जीन मॉडिफाई तकनीक से तैयार किया गया है। यह स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित बच्चों के कमजोर पड़ती मांसपेशियों को मजबूत करता है। इंजेक्शन बनाने वाली कंपनी नोवर्टिस के पास इसका पेटेंट है। कंपनी का कहना है कि जीन बेस्ड टेक्निक डेवलप करने में काफी वर्षों का समय लगा है और काफी लागत आई है। इसके चलते इंजेक्शन की कीमत अधिक रखी गई है।

ये भी पढ़ें

COVID 19: देश में कोरोना वैक्सीनेशन का आंकड़ा115.79 करोड़ के पार, रिकवरी रेट 98.29 प्रतिशत

Rajasthan: 11 कैबिनेट और 4 नए राज्यमंत्री लेंगे शपथ, गहलोत की नई टीम में इन्हें मिली जगह

Agriculture Bill: पीएम मोदी के सपोर्ट में twitter पर छिड़ी मुहिम, जानिए क्या हुआ है ट्रेंड

Share this article
click me!

Latest Videos

UP के जैसे दिल्ली में भी... आतिशी ने BJP पर किया सबसे बड़ा वार
झारखंड में सिर्फ भाजपा ही कर सकती है ये काम #shorts
पितरों को करना है प्रसन्न, घर में ही कर सकते हैं ये 10 उपाय । Pitra Paksh
अमेरिका में किया वादा निभाने हरियाणा के करनाल पहुंचे राहुल गांधी | Haryana Election
कौन हैं मुकेश अहलावत? आतिशी की टीम सबसे ज्यादा इनकी चर्चा क्यों