Explainer: G20 की अध्यक्षता भारत के लिए क्यों ऐतिहासिक क्षण है? जानें एक्सपर्ट की राय

G20 की अध्यक्षता (G20 Presidency) करना भारत के लिए क्यों एक ऐतिहासिक (Historic Moment) क्षण है? इसके बारे में नई दिल्ली के मनोहर पार्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की एसोसिएट फेलो डॉ स्वस्ति राव ने बहुत आसान तरीके से समझाया है। 
 

G20 Presidency For India. इस वर्ष के G20 शिखर सम्मेलन के सफल समापन के बाद इंडोनेशिया ने भारत को G20 की अध्यक्षता सौंप दी है। पीएम मोदी ने इसे संभाल भी लिया है। इस दौरान जी20 में शामिल विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं ने खाद्य सुरक्षा, जलवायु मुद्दों और गरीबी उन्मूलन पर विचार-विमर्श किया है। यह ध्यान देने वाली बात है कि G20 का नेतृत्व करने वाला भारत दुनिया की पांचवीं विकासशील अर्थव्यवस्था है। इस समूह का गठन 1999 में किया गया लेकिन 2008 जब विश्व अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार बनी, तब इस समूह ने इसे उपर उठाने की जरूरत पर बल दिया। नई दिल्ली द्वारा G20 की अध्यक्षता संभालने के महत्व को समझने के लिए Asianet News English ने मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में एसोसिएट फेलो डॉ स्वस्ति राव से विशेष बात की।

बढ़ रही है जी20 की उपयोगिता
डॉ. स्वस्ति राव के अनुसार बाली में जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन ने दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया है। जी20 अध्यक्ष पद की कमान भारत को सौंप दी गई है। ये कई कारणों से महत्वपूर्ण है। जब से जी20 अस्तित्व में आया है, तब से इसका महत्व बढ़ता गया है। 2008 में वैश्विक वित्तीय और आर्थिक संकट के दौरान भी यह देखा गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि विकासशील देशों में से केवल चार ने G20 की अध्यक्षता की है। मैक्सिको ने 2012 में, चीन ने 2016 में, अर्जेंटीना ने 2018 में और अब इंडोनेशिया इसे 2022 में किया। भारत का जी20 की अध्यक्षता मिलना इस तरह का पांचवां अवसर होगा।

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भारत के लिए यह क्यों ऐतिहासिक क्षण है
डॉ. राव ने कहा कि विकासशील देश जी-20 एजेंडे में प्रमुख बन गए हैं। इस वर्ष विशेष रूप से जब भारत इसकी अध्यक्षता करेगा तो यह भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण होगा क्योंकि एजेंडा तय करने के लिए तिकड़ी का गठन किया जाएगा। इस तिकड़ी में तीन देश शामिल हैं। जिसमें अध्यक्ष (भारत), पिछला अध्यक्ष (इंडोनेशिया) और अगला अध्यक्ष (ब्राजील 2024 में) शामिल होंगे। भारत का अध्यक्ष बनना दक्षिणी देशों के एजेंडे को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगा। भारत दक्षिण की आवाज भी बनेगा। डॉ राव ने कहा कि यह सब ठीक वैसा है जो भारत के लिए भी जरूरी है।

मिलकर करने होंगे प्रयास
डॉ. राव ने कहा कि आप भारत द्वारा दिए गए नारे और लोगो को देखेंगे तो यह वास्तव में उन समस्याओं की समानता की इशारा करता है जिनका हम आज सामना कर रहे हैं। आज हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वे उस तरह की समस्याएं नहीं हैं जो अकेले एक देश द्वारा हल की जा सकती हैं। यही भारत ने लोगो के माध्यम से दिखाया है। यानि एक विश्व, एक पृथ्वी-एक भविष्य। इसका मतलब है कि हम एक ऐसे युग में रह रहे हैं जहां तरह-तरह की समस्याएं हैं। चाहे वह जलवायु से संबंधित हो, महामारी या पर्यावरण के विभिन्न प्रभावों से संबंधित हों। चाहे रूस-यूक्रेन युद्ध हो, खाद्य संकट हो, इन सभी समस्याओं से कोई एक देश अकेले नहीं लड़ सकता। विशेषज्ञ का मानना ​​है कि इस तरह के संकट से निपटने के लिए समन्वित और लगातार कार्रवाई करनी होगी।

निष्प्रभावी क्यों होते हैं बहुपक्षीय मंच
डॉ. राव ने कहा कि अध्यक्ष के तौर पर भारत मजबूत भूमिका निभा सकता है। भारत एक ऐसा देश है जिसके वैश्विक संबंध समान रूप से अच्छे हैं। इसमें विकसित देशों के साथ जी7 देश भी हैं। वहीं दूसरी ओर रूस और बाकी देशों के साथ भी भारत के अच्छे संबंध हैं। इसलिए भारत वास्तव में उस विशेष दृष्टिकोण से काम कर सकता है, जिसकी जरूरत दुनिया को है। डॉ स्वस्ति राव ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाली शिखर सम्मेलन के दौरान अपन बयान में रूस यूक्रेन युद्ध, खाद्य सुरक्षा, जलवायु को लेकर संयुक्त राष्ट्र जैसे मौजूदा बहुपक्षीय मंचों की अप्रभाविता को भी सामने रखा। साथ ही उनमें सुधार के प्रयासों को बढ़ाने की बात भी कही। मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए जी20 से बहुत अधिक उम्मीदें हैं क्योंकि अन्य तंत्र विश्व की मौजूदा समस्याओं को दूर करने में बहुत रचनात्मक साबित नहीं हुए हैं। 

खाद्य संकट का भारतीय समाधान
डॉ. राव ने कहा कि जब खाद्य सुरक्षा की बात आती है तो भारत बहुत सुसंगत दिखाई देता है। इटली में आयोजित G20-2021 शिखर सम्मेलन में टिकाऊ खेती, खाद्य सुरक्षा, भूखमरी कम करने, गरीबी उन्मूलन आदि के बारे में चर्चा की गई। तब भारत ने इसका स्वागत किया। इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने बाजरा की बात की है। उन्होंने कहा कि यदि हम बाजरा के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो यह वास्तव में वैश्विक भूख की समस्या को हल कर सकता है। इसके लिए भारत ने बड़ी कार्रवाई की है। 2018 से ही भारत इसकी पैरवी कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र में भी 2023 को बाजरा के लिए इंटरनेशनल ईयर घोषित करने की मांग हो रही है। यह शायद एक छोटी सी बात लगती है लेकिन अगर आप देखें तो वैश्विक भूख को हल करने के लिए यह बेहद ठोस और गंभीर कदम है। भारत में बाजरा पैदा करने की काफी संभावनाएं हैं लेकिन सारा ध्यान गेहूं और चावल पर होता है। इसलिए ये भविष्य की चीजें हैं, जो प्रधानमंत्री ने दुनिया को दी हैं। खाद्य सुरक्षा के लिए यह भारत की प्रतिबद्धता है।

जलवायु के प्रति भारत की प्रतिबद्धता
डॉ. राव ने कहा कि इस कदम के बाद भारत की छवि भी दांव पर है। इसलिए भारत कह रहा है कि विकसित दुनिया या पश्चिमी शक्तियां हमें कोयले का उपयोग बंद करने के लिए नहीं कह सकती क्योंकि वे पहले ही उस बिंदु पर पहुंच गए हैं जहां वे नवीकरण को अपनाया जा सकता है। हम इतनी आसानी से परिवर्तन नहीं कर सकते हैं। हमारे पास औद्योगिक आधुनिकीकरण का स्तर नहीं है और फिर हमारे पास जरूरत से ज्यादा बड़ी आबादी है। साथ ही भारत ने लगातार जलवायु लक्ष्यों को पूरा किया है। भारत 2030 तक इसे और बेहतर करने जा रहा है। भारत नवीकरण से अपनी ऊर्जा जरूरतों को 50 प्रतिशत तक कम करने के रास्ते पर है।

डिजिटलीकरण का कितना प्रभाव
डॉ. राव ने कहा कि भारत निश्चित रूप से डिजिटलीकरण को और आगे बढ़ाएगा और जी20 उसका प्रमुख मंच बनने जा रहा है। भारत को यूपीआई, रूपे, आधार पहचान आदि जैसी चीजों के साथ बड़ी सफलता मिली है। इसलिए इस प्रकार की तकनीक को और बेहतर कर रहे हैं। विकसित देशों के अच्छे बाजार जैसे फ्रांस, जापान, संयुक्त अरब अमीरात आदि ने इसमें रुचि दिखाई है। ये अधिकांश देश जी20 का हिस्सा हैं और भारत वास्तव में बेहतर व्यापार पाने के लिए अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस मंच का उपयोग कर सकता है। 

टीके के उत्पादन के लिए ट्रिप्स छूट
डॉ. राव ने कहा कि भारत कोविड टीकों पर टीआरआईपीएस छूट प्राप्त करने का प्रयास कर सकता है क्योंकि यह दुनिया भर में टीकों का वितरण करता है। लेकिन वह बौद्धिक संपदा अधिकारों से वंचित है जो इसे नियंत्रित करते हैं। दुनिया के कई देश विशेष रूप से यूरोपीय संघ लाभ से संबंधित अधिक छूट नहीं देना चाहता है लेकिन भारत को इस छूट को पाने के लिए पैरवी करनी होगी ताकि टीका उत्पादन अधिक न्यायसंगत हो सके। ताकि टीकों की खुराक विकासशील देशों और उन लोगों तक पहुंच सके जिन्हें इसकी आवश्यकता है।

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