तो क्या इस एक वजह से दिल्ली में मुख्यमंत्री का चेहरा उतारने से कतरा रही है BJP?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में बिगुल बज चुका है दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी अपने कामकाज और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सहारे सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए हुए है तो बीजेपी केंद्र सरकार के काम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को भुनाने की कवायद में है

Asianet News Hindi | Published : Jan 8, 2020 5:45 AM IST / Updated: Jan 08 2020, 11:38 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में बिगुल बज चुका है। दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी अपने कामकाज और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सहारे सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए हुए है तो बीजेपी केंद्र सरकार के काम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को भुनाने की कवायद में है। यही वजह है कि बीजेपी दिल्ली में मुख्यमंत्री चेहरे के बजाय सामुहिक और केंद्रीय नेतृत्व के सहारे चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। यह बात केंद्रीय गृहमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का संकेत दिया है।

दरअसल दिल्ली के चुनाव संग्राम में बीजेपी को मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ उतरने का दांव कभी नहीं सुहाया है। 1993 से लेकर 2015 तक छह विधानसभा चुनाव हुए हैं। बीजेपी ने पांच बार मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ साथ मैदान में उतरी थी और उसे हर बार हार का सामना करना पड़ा पड़ा है। दिल्ली में महज एक बार बीजेपी ने सीएम फेस की घोषणा नहीं की थी और दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब रही थी। इसीलिए पिछले दिनों बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने की घोषणा करने के बाद केंद्रीय मंत्री और दिल्ली के सहप्रभारी हरदीप पुरी पलट गए थे और इसे वापस ले लिया था।

बीजेपी को 1993 के चुनाव में मिली थी जीत

बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को ट्वीट कर कहा, 'मुझे पूर्ण विश्वास है कि लोकतंत्र के इस महापर्व के माध्यम से दिल्ली की जनता उनको पांच साल तक गुमराह करने वाले और उनसे सिर्फ खोखले वादे करने वालों को हरा कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दिल्ली की जनता की आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाली सरकार चुनेगी।' अमित शाह के ट्वीट से साफ है कि बीजेपी दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसी चेहरे को आगे करने के बजाय नरेंद्र मोदी के चेहरे के सहारे चुनावी मैदान में उतरेगी।

दिल्ली में अभी तक कुल छह विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। 1993 में दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। इसके बाद अभी तक छह चुनाव हुए हैं, जिनमें एक को छोड़कर पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ा है। बीजेपी को 1993 के चुनाव में जीत मिली थी, इस चुनाव में पार्टी ने किसी को भी सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया था।

1998 से लेकर 2015 तक हुए पांच विधानसभा चुनाव

1993 के चुनाव में बीजेपी ने मदनलाल खुराना की अगुवाई में लड़ा गया था, इसके बावजूद आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया था। हालांकि उस वक्त दिल्ली में बीजेपी के सियासत में मदनलाल खुराना- विजय कुमार मल्होत्रा- केदार नाथ साहनी की तिकड़ी की तूती बोलती थी। बीजेपी दिल्ली की सियासी जंग फतह करने में कामयाब रही तो मदनलाल खुराना के भाग्य में छींका टूटा और वह मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे है।

इसके बाद से बीजेपी दिल्ली की सत्ता पर काबिज नहीं हो सकी। जबकि हर बार बीजेपी ने सीएम फेस के साथ उतरी थी। 1998 से लेकर 2015 तक पांच विधानसभा चुनाव हुए और पार्टी ने हर बार सीएम पद का चेहरा बनाया। 1998 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी ने सुषमा स्वराज को दिल्ली का सीएम बनाया था। बीजेपी ने सुषमा स्वराज के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ी और पार्टी को बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा है। बीजेपी महज 15 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।

दिल्ली में 2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मदनलाल खुराना को कांग्रेस की शीला दीक्षित के सामने सीएम फेस बनाकर मैदान में उतरी थी और इस बार खुराना का जादू फीका रहा था। 2003 के चुनाव में बीजेपी को महज 20 सीटें ही मिल सकी थी। इसके बाद 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विजय कुमार मलहोत्रा को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया था। बीजेपी का यह दांव भी पूरी तरह से फेल रहा है और विजय कुमार मलहोत्रा पार्टी को महज 23 सीटें ही दिला सके।

आप ने कांग्रेस के समर्थन से बनाई थी सरकार

इसके बाद 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने डॉ. हर्षवर्धन को सीएम फेस बनाकर मैदान में उतरी थी। इस बार हर्षवर्धन बीजेपी को दिल्ली में 31 सीटें जीताकर सबसे बड़ी पार्टी बनाने में कामयाब रहे थे, लेकिन बहुमत से पांच सीटें दूर बीजेपी सरकार नहीं बना सकी। इसके बाद आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी। हालांकि यह सरकार महज 49 दिन ही चल सकी।

इसके बाद 2015 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी ने इस बार पूर्व आईपीएस किरण बेदी को सीएम फेस घोषित कर मैदान में उतरी थी। अरविंद केजरीवाल के सामने बीजेपी का यह दांव भी नहीं चल सका। किरण बेदी खुद भी बारी और पार्टी को महज 3 सीटें ही मिल सकी। बीजेपी की लगातार हार से सबक लेते हुए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने दिल्ली में किसी भी चेहरे को आगे करके मैदान में उतरने की मन बनाया है। अब देखना है कि इस बार बिना चेहरे के बीजेपी क्या करिश्मा दिखाती है।

 

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