Gujarat Assembly Election 2022: राज्य में पहले चरण की वोटिंग 1 दिसंबर को होगी, जबकि दूसरे चरण की वोटिंग 5 दिसंबर को होगी। वहीं, मतगणना दोनों चरणों की 8 दिसंबर को होगी और संभवत: उसी दिन देर रात तक अंतिम परिणाम जारी हो जाएंगे।
गांधाीनगर। Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात में रण क्षेत्र में नमक उद्योग के लिए काम करने वाले सॉल्ट पैन वर्कर्स को स्थानीय लोग अगरिया कहते हैं। यह समाज ऐसा है, जिसे आज भी बुनियादी सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं। ये तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए बेहद कठिन परिवेश और वातावरण में काम करते हैं। हालांकि, इनकी स्थिति में सुधार के लिए कई बार दावे और वादे किए गए, मगर नतीजा अभी तक संतोषजनक नहीं आया। यह समुदाय आज भी समाज में उपेक्षित है।
इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव में नामांकन का दौर समाप्त हो चुका है। पहले चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया 14 नवंबर अंतिम तारीख थी। दूसरे चरण के लिए नामाकंन प्रक्रिया की अंतिम तारीख 17 नवंबर थी। राज्य में पहले चरण की वोटिंग 1 दिसंबर को होगी, जबकि दूसरे चरण की वोटिंग 5 दिसंबर को होगी। वहीं, मतगणना दोनों चरणों की 8 दिसंबर को होगी और संभवत: उसी दिन देर रात तक अंतिम परिणाम जारी हो जाएंगे। पहले चरण की वोटिंग प्रक्रिया के लिए गजट नोटिफिकेशन 5 नवंबर को और दूसरे चरण की वोटिंग प्रक्रिया के लिए 10 नवंबर को जारी हुआ था। स्क्रूटनी पहले चरण के लिए 15 नवंबर को हुई, जबकि दूसरे चरण के लिए 18 नवंबर की तारीख तय थी। नाम वापसी की अंतिम तारीख पहले चरण के लिए 17 नवंबर और दूसरे चरण के लिए 21 नवंबर निर्धारित की गई है।
अगरिया समाज के लोग गुजरात के उत्तर क्षेत्र में कच्छ के रण क्षेत्र में रहते हैं। यहां का मौसम रहने के लिहाज से काफी खतरनाक और प्रतिकूल होता है, मगर इस कठिन परस्थिति में इन्हें 8 महीने गुजारना होता है, वो भी साधारण और कामचलाऊ झोपड़ी में। करीब 8 महीने तक ये मुख्यधारा और समाज के दूसरे वर्गों से कट जाते हैं। यह जगह मानव आबादी से करीब 50 किलोमीटर दूर ऐसा क्षेत्र होता है, जहां लोग सामान्य तौर पर रहना तो क्या जाना भी पसंद नहीं करेंगे।
कई स्कीम शुरू हुई, मगर ज्यादा फायदा नहीं
वैसे, बीते कुछ साल में गुजरात सरकार ने साल्ट पैन से जुड़े श्रमिकों के कल्याण के लिए कई स्कीम शुरू की, मगर समुदाय से जुड़े लोगों का मानना है कि इन स्कीमों से ज्यादा मदद नहीं होगी और न ही स्थिति सुधरेगी। यह सही भी है, क्योंकि समाज अब भी उपेक्षित है और लोग मुख्यधारा से कटे हुए हैं। पहले जैसी स्थिति और मुसबीतें उनके साथ ही हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी कोई अच्छी सफलता नहीं दिख रही और जीवन करीब-करीब वैसे ही गुजर रहा है, जैसे कई साल से चला आ रहा है।
इस चुनाव से दिख रही उम्मीद
हालांकि, इस चुनाव से उन्हें उम्मीद दिख रही है और लग रहा है कि जीवन स्तर में सुधार आएगा और जो भी राजनीतिक दल सत्ता में आएगा उनकी बेहतरी के लिए कदम उठाएगा। वैसे, अभी तक जारी हुए घोषणा पत्र में कांग्रेस ने दावा किया है कि वे सत्ता में आए तो अगरिया समाज के लोगों के हित के लिए कई योजनाएं जारी करेंगे। वहीं, भाजपा ने इस समुदाय की बेहतरी के लिए ज्यादा से ज्यादा धन खर्च करने का आश्वासन दिया गया है।
भारत का सबसे बड़ा नमक उत्पादक राज्य गुजरात
बता दें कि गुजरात भारत का सबसे बड़ा नमक निर्माता स्टेट है। यहां देशभर का करीब 75 प्रतिशत नमक उत्पादन होता है। पिछले साल यानी वर्ष 2021 में यहां 41 लाख मीट्रिक टन नमक का उत्पादन हुआ था। यह क्षेत्र सुरेंद्र नगर जिले में पड़ता है और करीब पांच हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है। हालांकि, इस क्षेत्र को करीब 50 साल पहले जंगली क्षेत्र अधिसूचित यानी रिजर्व किया गया था। इससे इन अगरिया समाज के लोगों के संकट और बढ़ गए। वे यहां भूमि नहीं ले सकते और न ही पक्का निर्माण कर सकते हैं।
2014 में आए थे राहुल गांधी, तब मिले थे समाज से
अगरिया हित रक्षक मंच के अध्यक्ष हरिनेश पांड्या के अनुसार, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी इस क्षेत्र में आए थे और यहां सॉल्ट पैन वर्कर्स से बात कर समस्याएं समझीं। इस समुदाय के लिए कई योजनाएं जारी हुईं। अस्थायी रूप से रेगिस्तान में स्कूल शुरू हुए, मगर यह बेहतर विकल्प नहीं बन सका है। पांड्या ने बताया कि कई योजनाएं ऐसी हैं, जिनका फायदा मिलता नहीं दिख रहा और गरीब समाज वो चीजें वहन नहीं कर पा रहा।
सरकार की कई स्कीम तारीफ के काबिल
हालांकि, उन्होंने कुछ चीजों की तारीफ भी की है जैसे, साल्ट पैन वर्कर्स की प्यास बुझाने के लिए सरकार वहां पानी के टैंकर भेजती है। इसके अलावा, एक डॉक्टर और नर्स वाली मेडिकल वैन भी कुछ जगहों पर रहती है, जिससे इस समाज के लोग आकर मुफ्त में स्वास्थ्य चेकअप कराते हैं। इसके अलावा, पुरानी और खराब हो चुकी बसों को स्मार्ट कक्षाओं में तब्दील कर दिया गया है। कक्षा एक से 8 तक बच्चों की क्लास लग रही है और 43 जगहों पर ऐसा ही किया जा रहा है। सरकारी शिक्षक कक्षा लेने के लिए यहां आते हैं और परीक्षा भी संपन्न कराई जाती है। यहां मानसून जून में शुरू हो जाता है और करीब अगले चार महीने तक रहता है, जिस वजह से इस समाज के लोग अपने गांव चले जाते हैं। हरिनेश के अनुसार, करीब 80 प्रतिशत वर्कर्स चुवालिया कोली समुदाय से आते हैं और यह एक गैर अधिसूचित जनजाति है। करीब दस हजार परिवार नमक उत्पादन में शामिल हैं। इस परिवार में 40 हजार सदस्य हैं। ये परिवार सुरेंद्र नगर जिले के पाटडी और ध्रांगधरा तहसील के अंतर्गत आते हैं। वहीं अन्य बनासकांठा, पाटन, मोरबी और कच्छ जिले के रहने वाले हैं।
यह भी पढ़ें-
पंजाब की तर्ज पर गुजरात में भी प्रयोग! जनता बताएगी कौन हो 'आप' का मुख्यमंत्री पद का चेहरा
बहुत हुआ.. इस बार चुनाव आयोग Corona पर भी पड़ेगा भारी, जानिए क्या लिया गजब फैसला