Himachal Pradesh Assembly Election 2022: प्रदेश की नूरपुर विधानसभा, जानें क्या है क्षेत्र का जातीय समीकरण

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (Himachal Pradesh Assembly Election 2022) में नूरपुर विधानसभा क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है। इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी का दबदबा है और विधानसभा चुनाव 2017 में यहां से बीजेपी के प्रत्याशी ने करीब 6 हजार मतों से जीत दर्ज की थी।

शिमला. हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (Himachal Pradesh Assembly Election 2022) में नूरपुर विधानसभा के लिए कांग्रेस और बीजेपी के बीच रस्साकसी अभी से जारी है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में इस सीट से बीजेपी राकेश पठानिया ने कांग्रेस के अजय महाजन को करीब 6 हजार 6 से वोटों से शिकस्त दी थी। यह सीट कांगड़ा जिले की कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में आती है, जहां से बीजेपी के किशन  कपूर सांसद हैं। 

2017 के विधानसभा परिणाम
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में नूरपुर से बीजेपी के राकेश पठानिया ने जीत दर्ज की थी। वे इस सीट से लगातार तीसरी बार विधायक बने हैं, जिसके बाद उन्हें राज्य में खेल एवं युवा मंत्री बनाया गया। 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कुल 54.45 प्रतिशत वोटों के साथ कुल 34871 वोट मिले। वहीं दूसरे स्थान पर कांग्रेस प्रत्याशी अजय महाजन को 28229 वोट मिले और उनका वोट प्रतिशत 44.08 फीसदी रहा। राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो इस सीट पर इस बार आम आदमी पार्टी की नजर है। इसलिए विधानसभा चुनाव 2022 में मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार हैं। 

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नूरपुर विधानसभा का क्या है जातीय समीकरण
कांगड़ा जिले की नूरपुर विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा संख्या राजपूत मतदाताओं की है। इसके अलावा ब्राह्मण, अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या भी ठीक है। यहां पठानिया और महाजन समुदाय के मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है औ वे चुनाव में भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। नूरपुर विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 82260 है। यहां 50 फीसदी मतदाता राजपूत हैं। 2017 के आंकड़ों के अनुसार पुरूष मतदाता 42243 हैं जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 40017 है।

पीने के पानी की बड़ी समस्या
प्राकृतिक रुप से समृद्ध नूरपुर विधानसभा की सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की है। यहां पर यह समस्या दिन ब दिन बड़ी होती जा रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हर बार के चुनाव में पीने के पानी की समस्या बताई जाती है। नेताओं से ढेरों आश्वासन भी मिलते हैं लेकिन काम नहीं हो पाता। कई क्षेत्रों के लोगों के 12 महीने यह समस्या झेलनी पड़ती है।

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