पंजाब चुनाव में खुद से ही लड़ रही कांग्रेस, चंद दिन में 14 नेता बागी, पार्टी के खिलाफ खोला मोर्चा, जानें प्लान

पंजाब में 20 फरवरी को मतदान होना है और 10 मार्च को नतीजे आएंगे। नामांकन की एक फरवरी को आखिरी तारीख है। 4 फरवरी तक नाम वापस लिए जा सकते हैं। 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने 77 सीटें जीतकर राज्य में पूर्ण बहुमत हासिल किया था और 10 साल बाद शिअद-भाजपा सरकार को बाहर कर दिया।

चंडीगढ़। पंजाब विधानसभा चुनाव में नामांकन के अंतिम दिन कांग्रेस के बागियों के तेवर मुखर हो गए हैं और अब इसका असर भी देखने को मिलने लगा है। एक वक्त तक कांग्रेस में सब कुछ ठीक नजर आ रहा था, लेकिन अब लग रहा है कि पार्टी में फूट और गुटबाजी अपने चरम पर है। पार्टी के 14 नेताओं ने तो सीधे तौर पर कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इनका कहना है कि वह पार्टी प्रत्याशी को हराने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। ऐसे में दिक्कत यह है कि कांग्रेस की ओर से बागियों को मनाने की दिशा में कुछ नहीं हो रहा है। 

यह नेता हो गए बागी

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जगदेव सिंह कंग
क्यों?
तीन बार के कैबिनेट मंत्री का दूसरी बार टिकट कट गया। अब वह आप में शामिल हो गए हैं। 
क्या करेंगे? इन्होंने सीएम चरणजीत सिंह चन्नी पर टिकट कटने का आरोप लगाया। दावा किया कि चन्नी को हराने के लिए हर संभव उपाय करेंगे। उन्होंने अपने बेटे के साथ आम आदमी पार्टी ज्वाइन करते ही सक्रियता बढ़ा दी। इसका असर खरड़ और चमकौर साहिब पर है। चमकौर साहिब से चन्नी चुनाव लड़ रहे हैं। 

अजायब सिंह
क्यों?
विधानसभा में डिप्टी स्पीकर रहे। इस बार टिकट कट गया।
क्या करेंगे? बड़े दलित नेता हैं। जो मुक्तसर से लेकर बरनाला और बठिंडा में बड़ा प्रभाव रखते हैं। इन्होंने अपनी पत्नी कर्मजीत कौर को सीएम चन्नी के खिलाफ भदौड़ से आजाद प्रत्याशी के तौर पर खड़ा कर दिया है, जिससे यह सीट कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण बन गई है। 

राणा इंद्र
क्यों?
राणा गुरजीत सिंह के बेटे हैं। राणा गुरजीत सिंह कपूरथला से विधायक हैं। मौजूदा कैबिनेट मंत्री हैं। अपने बेटे लिए टिकट की मांग कर रहे थे। नहीं मिली तो खुद बेटे को खड़ा कर दिया। 
क्या करेंगे? सुल्तानपुर लोधी सीट पर कांग्रेस को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचा सकते हैं। क्योंकि यहां गुरजीत राणा की अच्छी खासी पकड़ है। इस तरह से यह सीट भी कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रही है। 

मोहिंदर सिंह केपी
क्यों?
दो बार के सांसद हैं। पूर्व मंत्री रहे हैं। दो बार के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। आदमपुर विधानसभा सीट से दावेदार थे। नामांकन के आखिरी 15 मिनट पहले टिकट काट दिया गया। इस वजह से पार्टी के खिलाफ हो गए। इनका आरोप है कि सिद्धू की वजह से टिकट कट गया। कांग्रेस ने अपना अथॉरिटी लेटर सुखविंदर कोटली को दिया।
क्या करेंगे? जालंधर पर प्रभाव है। यहां के दलित वोटर को प्रभावित कर सकते हैं। खुलकर बगावत कर दी है। दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस को सबक सिखाएंगे। 

मोहन लाल
क्यों?
सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के भाई हैं। कांग्रेस में सक्रिय थे। अगस्त में सरकारी डॉक्टर का पद छोड़ कर राजनीति में आए। बस्सी पठाना से टिकट मांग रहे थे। नहीं मिला तो बगावत कर दी।
क्या करेंगे? अब निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। चरणजीत सिंह चन्नी का भाई होने का लाभ मिल रहा है। इस वजह से यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे जीपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

सतकार कौर गैरी
क्यों?
फिरोजपुर देहात से मौजूदा विधायक हैं। पार्टी ने टिकट नहीं दिया। इस वजह से पार्टी से नाराज हैं। यहां से कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के बागी आशु बांगर को टिकट दे दिया। 
क्या करेंगी? अभी निष्क्रिय हैं। लेकिन अपने समर्थकों से आशु बांगर को नुकसान पहुंचा सकती हैं। दलित वोटर पर इनका प्रभाव हैं। उनके निष्क्रिय होने से अकाली दल को लाभ मिल सकता है। 

दामन बाजवा 
क्यों?
युवा कांग्रेसी नेत्री हैं। सुनाम हलके के मतदाता में अच्छी पकड़ है। टिकट नहीं मिला। काफी समय से सक्रिय हैं। यहां से अमरगढ़ के विधायक सुरजीत सिंह धीमान के बेटे जसविंदर धीमान को टिकट दिया है। 
क्या करेंगी? टिकट कटने से गुस्से में हैं। आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं। सुनाम में अब कांग्रेस का विरोध करेंगी। इसका लाभ अकाली दल को मिल सकता है। 

अंगद सिंह 
क्यों?
यूथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। नवांशहर से सिटिंग विधायक हैं। लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया। इस वजह से आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। 
क्या करेंगे? इनके चुनाव में खड़े होने से कांग्रेस को सीधा नुकसान है। नवांशहर में हिंदू वोटर की संख्या ज्यादा है। अंगद सिंह का उन पर जबरदस्त प्रभाव है। 

गुरमीत सोढ़ी
क्यों?
गुरुहरसहाय से लगातार चार बार के विधायक हैं। कैप्टन से नजदीकी की वजह से उनका टिकट काट दिया गया है। 
क्या करेंगे? भाजपा में शामिल हो गए। फिरोजपुर सिटी से चुनाव लड़ रहे हैं। पूरे जिले में कांग्रेस को झटका दे सकते हैं। 

यह भी बागी हैं: नत्थू राम, हरजोत कंवल, रंजीत सिंह खडूर साहब, राणा फतेहजंग बाजवा, बलविंदर सिंह लाडी और जोगेंद्र मान शामिल हैं। 

जानकारों का मानना है कि बागियों की वजह से कांग्रेस को नुकसान हो रहा है। कांग्रेस की दिक्कत यह है कि जो बागी दबी जुबान में पार्टी का विरोध कर रहे हैं। कम से कम उन्हें ही मना लिया जाए। लेकिन ऐसा भी पार्टी करती नजर नहीं आ रही है। इसकी वजह यह मानी जा रही है कि नवजोत सिंह सिद्धू पार्टी के रणनीतिकारों के बदले मिजाज की वजह से बागियों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं। वह भले ही बागियों का हलके में ले रहे हों, लेकिन जानकारों का कहना है कि यह बड़ी समस्या बन सकते हैं। जिस तरह से चुनाव अब आगे बढ़ रहा है, वैसे वैसे बागियों की गतिविधियां तेज होगी।

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