Punjab Election 2022: बिना लड़े ही CM की लड़ाई क्यों हार रहे नवजोत सिंह सिद्धू?

सीएम पद पाने के लिए नवजोत सिंह सिद्धू ने जी जान लगा दी, लेकिन ऐन मौके पर सीएम पद उनके हाथ से छूटता नजर आ रहा है। कांग्रेस के ताजा घटनाक्रम जिस तेजी से बदले हैं, उससे सिद्धू को सबसे ज्यादा झटका लगा है।

चंडीगढ़ (मनोज ठाकुर)। सीएम पद पाने के लिए नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) ने जी जान लगा दी, लेकिन ऐन मौके पर सीएम पद उनके हाथ से छूटता नजर आ रहा है। कांग्रेस के ताजा घटनाक्रम जिस तेजी से बदले हैं, उससे सिद्धू को सबसे ज्यादा झटका लगा है। क्योंकि बिना घोषणा किए ही सीएम चन्नी को पंजाब में कांग्रेस का सीएम फेस माना जाने लगा है। 

रविवार को जैसे ही चन्नी के दो जगह से चुनाव लड़ने की घोषणा हुई, तुरंत पंजाब के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम हो गई कि अपने सीएम पर ही कांग्रेस बड़ा दांव खेलेंगी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू सेकेंड इन कमांड ही रहेंगे। कांग्रेस रणनीतिकार यह भी मानते हैं कि सिद्धू अपनी बात मनवाने के लिए पूरी ताकत लगा देते हैं। वह किसी की नहीं सुनते। इसके विपरीत चन्नी पार्टी हाईकमान की बात को ज्यादा तवज्जो देते हैं। यह भी एक वजह थी कि चन्नी की सीएम फेस की दावेदारी सिद्धू पर भारी पड़ी। हालांकि यह अचानक नहीं हुआ। इसके पीछे कई सारी घटनाएं और समीकरण हैं, जो सिद्धू को सीएम की कुर्सी से दूर खींचते नजर आ रहे हैं। 

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सिद्धू में राजनीतिक कौशल की कमी 
कांग्रेस की कोशिश थी कि पंजाब में चुनाव (Punjab Election 2022) आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच हो। आम आदमी पार्टी के पक्ष में भले ही कितने भी तर्क गढ़े जा रहे हों, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आप का प्रचार ज्यादा है, मजबूती कम। इसका लाभ कांग्रेस उठाना चाहती थी, लेकिन जैसे ही नवजोत सिंह सिद्धू अकाली दल खासतौर पर बिक्रमजीत सिंह मजीठिया पर हमलावर हुए। इससे भी बढ़कर उनके आरोप व्यक्तिगत हो गए। खासतौर पर मजीठिया के खिलाफ केस दायर कराना भी कांग्रेस के खिलाफ गया। क्योंकि इससे अकाली दल को पंजाब के मतदाताओं की सहानुभूति मिलती नजर आ रही है। कांग्रेसी रणनीतिकार समझ गए कि सिद्धू में सियासी लचीलापन नहीं है। वह सियासी नुकसान का आंकलन ठीक से नहीं कर पाते। इसलिए कांग्रेस सिद्धू पर इस वक्त बड़ा गेम खेलने का रिस्क नहीं उठा पा रही है। 

आक्रमक और उतावले तेवर पड़े भारी 
सिद्धू आक्रमक तेवर अपनाते हैं। किसी की सुने बिना बस तुरंत समाधान चाहते हैं। कांग्रेस में इस तरह का मिजाज नहीं है। कैप्टन के साथ विवाद से लेकर चन्नी के सीएम बनने तक, हर मौके पर सिद्धू आक्रमक और उतावले नजर आए। वह मतदाताओं को जोड़ने में उतने कामयाब नहीं हुए, जितना की कांग्रेस मान रही थी। उनकी जल्दबाजी भी भारी पड़ती नजर आ रही है। क्योंकि किसी न किसी स्तर पर यह माना जाने लगा है कि उनका उतावलापन पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है। वह कई मौकों पर खुद को इस तरह से पेश करते रहे कि कांग्रेस उन्हें सीएम चेहरा घोषित कर दे। इस कोशिश में वह कई बार तो चन्नी पर भी भारी पड़ते नजर आए। 

जट सिख चेहरे पर भारी पड़ा दलित चेहरा 
अभी तक अकाली दल को रेस में भी नहीं माना जा रहा था, लेकिन सिद्धू की वजह से पंजाब का वोटर अब अकाली दल की ओर होता नजर आ रहा है। कांग्रेस भी इस तथ्य से वाकिफ है। यूं भी पंजाब में 19 प्रतिशत जट सिख वोट है। इसका बड़ा हिस्सा लगभग 45 प्रतिशत अकाली दल के साथ होता नजर आ रहा है। पंजाब में दलित वोट 34 फीसदी है। हालांकि बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन अकाली दल से हैं, लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस के रणनीतिकार मानकर चल रहे हैं कि दलित वोटर उनके पास आएगा। इस तरह का रूझान रहा भी है। इसलिए कांग्रेस की कोशिश है कि 19 प्रतिशत वोट को दांव पर लगाकर 34 प्रतिशत दलित वोटर को साधा जाए। कांग्रेस की यह रणनीति चरणजीत चन्नी को पंजाब में सेनापति की भूमिका में खड़ा कर ही है। 

विधानसभा चुनाव की रणनीति में नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर 
दलित वोटर कांग्रेस का पारंपरिक वोटर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से भाजपा ने दलित वोटर में सेंध लगाई। इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को हुआ है। पंजाब के इतिहास में पहला दलित सीएम चरणजीत चन्नी को बना कर कांग्रेस इसका लाभ राष्ट्रीय स्तर पर लेना चाह रही है। वह खोए अपने दलित वोटर को वापस अपने साथ जोड़कर खुद को मजबूत करना चाहती है। 

चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर कांग्रेस 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में दलित वोटर को अपने साथ जोड़ना चाह रही है। यह भी एक वजह है कि कांग्रेस सिद्धू की बजाय चन्नी को सीएम चेहरा बनाना चाह रही है। यदि इस स्टेट पर चन्नी की बजाय सिद्धू को सीएम फेस बनाया जाए तो दलित वोटर कांग्रेस से टूट सकते हैं। यह भी एक कारण है कि कांग्रेस नहीं चाहती कि उनकी इस बात पर आलोचना हो। 

बहन के आरोपों ने कर दी रही सही कसर पूरी
सिद्धू की बहन सुमन तूर के आरोपों ने रही सही कसर पूरी कर दी है। कांग्रेस के रणनीतिकार समझ रहे हैं कि आरोप भले ही पारिवारिक हो, लेकिन इसका नुकसान सियासी होगा। इन आरोपों से सिद्धू बैकफुट पर नजर आए। इससे कांग्रेस को मौका मिल गया कि वह चरणजीत सिंह चन्नी को आगे बढ़ा सकती है। सिद्धू ने जो अपनी छवि बना रखी थी, इस पर भी सुमन तूर के आरोपों से धक्का लगा है। सिद्धू चाहकर भी अपना बचाव नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस रणनीतिकार भी समझ गए कि इस वक्त सिद्धू ज्यादा विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं। इसलिए यह मौका है, सिद्धू की बजाय चन्नी को सीएम का मौका दिया जाए।

 

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