EXCLUSIVE: कितनी मुश्किल थी कलर 'मुग़ल-ए-आज़म' की एडिटिंग, फिल्ममेकर ने सुनाए किस्से, आ रहा 'के आसिफ' से प्रेरित नॉवेल

हिंदी सिनेमा की कालजयी रचना 'मुग़ल-ए-आज़म-1960' के डायरेक्टर के. आसिफ(करीमुद्दीन आसिफ) का 14 जून को 101वां जन्मदिन है। इसी फिल्म की प्रेरणा से फिल्ममेकर सुनील सालगिया ने उपन्यास-वन्स अपोन ए टाइम इन बॉलीवुड(Once Upon A Time In Bollywood) लिखा है।

 

 

बॉलीवुड डेस्क. हिंदी सिनेमा की कालजयी रचना 'मुग़ल-ए-आज़म-1960' के डायरेक्टर के. आसिफ(करीमुद्दीन आसिफ) का 14 जून को 101वां जन्मदिन है। वे 9 मार्च, 1971 को इस दुनिया से रुखसत हो गए थे। इसी फिल्म की प्रेरणा से फिल्म/टीवी के जाने-माने राइटर, डायरेक्टर और एडिटर सुनील सालगिया ने एक किताब लिख दी। वन्स अपोन ए टाइम इन बॉलीवुड(Once Upon A Time In Bollywood) नाम से ये अंग्रेजी का नॉवेल है।

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कलर मुग़ल-ए-आज़म की एडिटिंग से जुड़ी महत्वपूर्ण बात

दिलचस्प बात यह है कि 'मुग़ले-ए-आज़म' जब 2004-05 में कलर करके दुबारा रीलीज की जा रही थी, तब उसे 3.30 घंटे की लेंथ से 3 घंटे में समेटने का अत्यंत मुश्किल भरा एडिटिंग का काम सुनील सालगिया ने ही किया था। उसी समय उनके दिमाग में इस नॉवेल का विचार जन्मा था। जिस तरह मुग़ल-ए-आज़म को बनने में 14 साल लगे, इस उपन्यास को भी इतना ही समय लग गया। सुनील सालगिया ने Asianet News हिंदी से शेयर किए मुग़ल-ए-आज़म की री-एडिटिंग के किस्से और बताया कि कैसे एक फिल्म उनके नॉवेल की प्रेरणा बनी...

क्यों मुश्किल था मुग़ल-ए-आजम को एडिट करना?

जाने-माने डायरेक्टर और एडिटर सुनील सालगिया बताते हैं कि मुग़ल-ए-आज़म एक मास्टर फिल्मकार की बनाई फिल्म थी, जिसमें एडिट करने की गुंजाइश ही नहीं थी। एक जगह मैंने एक शॉट को काट दिया था। इस शॉट के आखरी फ्रेम में मुझे पृथ्वीराज कपूर थोड़ा लड़खड़ाते हुए दिखे। बाद में मुझे पता चला कि अकबर को एक पैर में पोलियो था। डायरेक्टर का अपना आब्जर्वेशन होगा, एक्टर का अपना, इसी वजह से शायद चाल में थोड़ी लचक रखी थी। अगर मैं उसे काट देता, तो यह अनजस्टिफाइड होता। अलग अलग शॉट्स में से बड़ी मुश्किल से 2 - 5 सेकंड्स पकड़कर एडिट पूरा करना पड़ा।

मुग़ल-ए-आज़म फिल्म और मेरा नॉवेल

मेरी इस किताब का टाइटल-वन्स अपोन ए टाइम इन बॉलीवुड(Once Upon A Time In Bollywood) है और ये अंग्रेजी में नॉवेल है। इसकी थीम; जैसा कि नाम से ही पता चलता है, ये बॉलीवुड की कहानी है और एक समय की कहानी है। इसमें आजादी के पहले और आजादी के बाद का दौर दिखाया गया है। कहानी 1941-42 से शुरू होती है और करीब 1960 तक चलती है।

मेरी कहानी का सोर्स; जिसे हम इंस्पीरेशन (Inspiration-प्रेरणा) कहते हैं, वो हैं के. आसिफ साहब। वो ऐसे हुआ कि 2004-05 में जब 'मुग़ल-ए-आज़म' कलर में बन रही थी, तो मैं उसका एडिटर था। 'मुग़ल-ए-आज़म' एडिट करते वक्त उसे कई बार देखनी पड़ी। जब मैं फिल्म को एडिट करने बैठा, तो एक फिल्ममेकर की नजर से उसे एप्रिसेयेट (Appreciate) तो कर सकता था, लेकिन उसे एडिट कैसे करूं समझ नही आ रहा था।

इस ग्रेट फिल्म पर कैंची चलाना सरल नहीं था, क्योंकि लोगों को इसके एक-एक डायलॉग याद थे। उसका एडिट करना और वो भी मल्टीप्लेस के लिए आधा घंटा कम करना एक बड़ी चुनौती थी। पहले यह फिल्म साढ़े तीन घंटे की थी। उसे तीन घंटे के अंदर लाना था, ताकि मल्टीप्लेस वाले फिल्मों के चार शो रख सकें।

मुग़ले-ए-आज़म फिल्म को आधा घंटा काटना बड़ा टास्क था। कहां से काटें, क्यों काटें...इसका डिसीजन लेना आसान नहीं था। फिल्म को एडिट करते समय गहराई से देख रहा था, उसके बारे में पढ़ा भी था कि उसे बनाने में 14 साल लगे। उसी समय मेरी उत्सुकता बढ़ती गई। मैंने मुग़ल-ए-आज़म और के. आसिफ के बारे में और जानना चाहा, और पढ़ना शुरू किया।

मुग़ल-ए-आज़म पर डॉक्यूमेंट्री

उसी दौर में मैं एक डॉक्यूमेंट्री भी बना रहा था, जो मुग़ल-ए-आज़म के कलर होने की कहानी थी। यह पहली फिल्म थी, जो 35MM में बनी थी। इसकी टेक्नोलॉजी भी इंडिया में ही डेवलप हुई थी। जब डॉक्यूमेंट्री बना रहा था, तब इंडस्ट्री के कई लोगों से मुलाकात हुई, इंटरव्यू लिए। इसमें मुग़ल-ए-आज़म की मेकिंग की पूरी प्रॉसिस बताई गई थी। उसमें संगीतकार नौशाद साहब भी थे।

नौशाद साब ने मुग़ल-ए-आजम के मोनो ट्रैक साउंड को कलर फिल्म के लिए 5.1 सराउंड साउंड में चेंज किया था। यह आडियो सिस्टम का सामान्य नाम है, जो थियेटर और होम थियेटर में भी इस्तेमाल किया जाता रहा है।

जब डॉक्यूमेंट्री के लिए नौशाद साब के घर जाकर 2-3 मीटिंग में उनसे इंटरव्यू किया, तो उन्होंने कई किस्से सुनाए। वो सब मैंने रिकॉर्ड किया। तब समझ में आया कि वो एक जुनून ही होगा, तभी कोई ऐसी फिल्म बना सकता है। और मेरे दिमाग में एक कहानी बनना शुरू हो गई।

Once Upon A Time In Bollywood नॉवेल का आइडिया?

नौशाद साब के इंटरव्यू के बाद ही मेरे दिमाग में एक कहानी आई कि कैसे एक जुनूनी फिल्ममेकर हिंदुस्तान की सबसे बड़ी फिल्म बनाना चाहता है। उसका मकसद यही है कि लोग हॉलीवुड फिल्म गोन विद द विंड(Gone with the Wind-1939) को जानते हैं, इस फिल्म के जरिये हिंदुस्तान को भी जानें। वो एक बड़ी फिल्म बनाना चाहता है।

मेरे नॉवेल के कैरेक्टर का कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं है। वो एक मामूली टेलर है और उसने कभी फिल्म बनाई भी नहीं। ये उसी इंसान की जिद की कहानी है। वो किस तरह से शुरू करता और कैसे फिल्म बनाने में कामयाब हो जाता है। उसके लिए वो कई तरह की जद्दोजहद करता है। कई लोगों के साथ में छल भी करता है, कपट भी करता है। मोहब्बत भी करता है। थकता है , हारता है , लेकिन फिर खड़ा होता है। बस उसका एक ही मकसद है कि उसे फिल्म बनानी है। हिंदुस्तान की सबसे बड़ी फिल्म।

Once Upon A Time In Bollywood नॉवेल की कहानी

इस उपन्यास की कहानी को मैंने एक लव स्टोरी की तरह बुना है। इसमें एक लड़की भी है। मेरा उपन्यास के. आसिफ की जिंदगी की कहानी नहीं है, वो उनसे प्रेरित है। ये फिक्शन है।

इसमें पार्टिशन के बाद फिल्म इंडस्ट्री का बंट जाना। लाहौर अलग हो जाना, मुंबई अलग हो जाना। कई टेक्निशियंस का लाहौर चले जाना और कुछ का यहां आ जाना। उस दौर में नॉवेल की कहानी चलती है। इसमें इंडस्ट्री का दर्द भी है और जोश भी है कि वो कैसे जुनूनी लोग थे, जिन्होंने फिल्मों में काम किया।

जिस तरह मुग़ल-ए-आज़म को बनने में 14 साल लगे, उसी तरह मुझे ये नॉवेल लिखने में भी 14 साल लग गए। Once Upon a Time in Bollywood, ये नॉवेल इसी महीने पेटल्स पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है।

(सुनील सालगिया टीवी शो रजनी, उड़ान, देख भाई देख और इंद्रधनुष के डायरेक्शन टीम का अहम हिस्सा रहे हैं, अब तक 20 से अधिक धारावाहिकों का निर्देशन कर चुके हैं। वे स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेट्री भी रह चुके हैं, रजनी में शाहरुख खान ने भी एक्टिंग की थी )

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