
ऋषभ शेट्टी की फिल्म 'कांतारा चैप्टर 1' वर्ल्डवाइड बॉक्स ऑफिस पर 11 दिन में ही 600 करोड़ रुपए से ज्यादा का कलेक्शन कर चुकी है। इस फिल्म की कहानी जितनी रोचक है, इसे उतनी ही मनमोहक इसके VFX ने बना दिया है। संजीत इस फिल्म के VFX सुपरवाइजर हैं और उन्होंने तकरीबन 12 साल बाद साउथ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में वापसी की है। ऋषभ शेट्टी के साथ उनकी यह पहली फिल्म है। एशियानेट न्यूज़ हिंदी से खास बातचीत में संजीत ने फिल्म, ऋषभ शेट्टी के साथ कोलैबोरेशन और VFX के बारे में खुलकर बात की। उनसे हुई बातचीत के अंश:
A. एक VFX सुपरवाइजर का काम होता है, जो कहानी निर्देशक ने लिखी है और वह उसे जिस विजुअल में देना चाहता है, वो देने के लिए उसके साथ शफल करना और उसके साथ जुड़कर उसका जो विजन है, उसे पर्दे पर लेकर आना। उनका जो दृश्य है, उसे कन्विंसली ऑडियंस तक पहुंचाना हमारा काम होता है।
यह भी पढ़ें : 600 करोड़ कमा चुकी 'कांतारा चैप्टर 1' में इतना बड़ा ब्लंडर! इस एक चीज़ ने मजा किरकिरा किया
A. ऋषभ शेट्टी के साथ यह मेरी पहली फिल्म है। मैं फिल्म के मुहूर्त वाले दिन ही कुंदापुर पहुंच गया था। उन्होंने मुझे पूरी कहानी समझाई। उन लोगों ने जो एक्सप्लेन किया तो उनके एक्सप्लेनेशन में विजुअल दिखाई दे रहे थे। उन्होंने पिक्चर विजुअलाइज कर ली और हमें बताया कि ऐसा चाहिए। स्टोरी नैरेशन में ही हमने पिक्चर देख ली। उनको इतनी क्लैरिटी थी कि मुझको यही चाहिए। उन्होंने सबकुछ मेंशन किया कि क्या दिखाना है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारा जो कांतारा का रूट है, विजुअल उससे बिलकुल बाहर नहीं जाना चाहिए। फिल्म में इंडियन कल्चर दिखना चाहिए, इसे उससे बाहर नहीं जाना चाहिए। आप फिल्म देखेंगे तो समझ जाएंगे। स्टार्टिंग में ही हम 'कांतारा' के अंदर घुस जाते हैं और फिल्म ख़त्म होने तक हमारा माइंड कहीं भी डाइवर्ट नहीं होता है।
A. बहुत अच्छा रहा। उनका एक्सपीरियंस मैं कैसे बताऊं। वे हर डिपार्टमेंट में गहराई तक जाते हैं। वे बताते हैं कि कहां क्या लेना है और उन्हें क्या चाहिए। वो गुरु बनकर हमें गाइड करते हैं। मैं VFX सुपरवाइजर था, लेकिन वो मुझे बता रहे थे कि मुझे यह चाहिए, यह नहीं चाहिए। उनके साथ हमें बार-बार चीजें करने की जरूरत नहीं। उन्हें जो चाहिए, वो मिल गया तो खुश हो जाते हैं। यह अलग बात है कि उनका संतुष्ट होना जरूरी है। कुछ चीजों में रिफरेंस नहीं था। जैसे कि अगर हम भगवान को अग्नि के रूप में दिखा रहे हैं, उसके लिए कोई रिफरेंस या पिक्चर नहीं है। ये सब हमको बनाना पड़ता है।
18 महीने तक हर दिन हमको उनके साथ जाना पड़ता था। फिर चाहे वे शूट पर हों, एडिट पर हों या VFX पर हों। यह हर दिन की प्रोसेस थी। उसी की वजह से यह अल्ट्रा आउटफिट मिला। ऐसा सिस्टम नहीं था कि हम शूट करके देंगे, आप वो करेंगे।
यह भी पढ़ें : Kantara Chapter 1 भारत में 400 करोड़ क्लब में शामिल, 11वें दिन कमा डाले इतने CR!
A. मुश्किल की बात करें तो क्लाइमैक्स के बारे में कह सकता हूं। विजुअल को लेकर नहीं, इसके एग्जीक्यूशन को लेकर। VFX पॉइंट ऑफ़ व्यू में वो बात कर सकता हूं। बतौर VFX सुपरवाइजर कम से कम 20 स्टूडियोज ने इसमें काम किया है। कुछ शॉट्स में एक शॉट के लिए तीन-तीन स्टूडियो काम कर रहे थे। एक ही शॉट का बैकग्राउंड एक स्टूडियो कर रहा है। उसका एक पार्ट दूसरा स्टूडियो कर रहा था तो आग में से टाइगर के आने वाला पार्ट तीसरा स्टूडियो कर रहा था। ये को-ओर्डिनेशन करने में थोड़ी मुश्किल हुई। हमने इसे एन्जॉय किया। एक शॉट के लिए इतने लोगों से कम्युनिकेट करना, इधर से उधर जाना, फिर उधर से इधर आना...ये थोड़ा मुश्किल रहा। बाकी जैसा प्लान किया था, वैसा ही हुआ।
कोई टेंशन नहीं थी। क्योंकि हम शूटिंग पूरी होने के अगले दिन से ही जो भी शूट हुआ, उसे एडिट करना शुरू कर देते थे। एडिट किया और फिर VFX शुरू कर दिया। जुलाई में शूटिंग पूरी होने के बाद हमारे पास दो महीने ही बचे थे। क्योंकि अक्टूबर में फिल्म रिलीज होनी थी। इतना अच्छा VFX दो महीने में बना पाना संभव नहीं था। इसलिए हमने एडिटिंग और VFX की प्रोसेस शूटिंग के साथ-साथ जारी रखी। जो हिस्सा शूट हो जाता था, हम उस पर एडिटिंग और VFX का काम शुरू कर कर देते थे। आखिरी दो महीने में हमने एडिट हो चुके सभी हिस्सों को मिलाने का काम किया है।
A. हमने जो पहला सीक्वेंस शूट किया था, वह टाइगर वाला था। शूट ख़त्म होते ही हमने इस पर VFX का काम शुरू कर दिया था। उसके बाद हम कभी रुके ही नहीं। 18 महीने का वक्त फिल्म शूट होने में लगा। इतना ही वक्त इसके VFX पर काम करने में लगा। क्योंकि दोनों काम साथ-साथ चल रहे थे।
A. मैं असल में साउथ से ही हूं। 12 साल से मैं पूरी तरह हिंदी फ़िल्में कर रहा था। यानी 12 साल बाद मुझे फिल्म करने के लिए साउथ में बुलाया गया। मैंने सोचा था कि अच्छी फिल्म होगी तो करूंगा। अच्छे मौके का इंतजार कर रहा था। भगवान की कृपा से ऋषभ शेट्टी ने मुझे बुलाया। मैंने फिर कुछ सोचा ही नहीं। 'कांतारा' नाम सुनकर ही सोचा कि यही है, जिसका इंतजार था। मैं इतने सालों से जो साबित करना चाहता था, उसके लिए भगवान ने यह मौका दिया। इसे प्रायोरिटी में रखकर निकल पड़ा और 18 महीने के बाद ही मुंबई वापस आया।
A. वर्किंग स्टाइल आदि में कोई फर्क नहीं है। फर्क हमें दिखता है कि स्क्रिप्ट का इस्तेमाल कैसे किया है। 'कांतारा' का VFX इतना हाईलाइट होकर दिख रहा है, इसका मतलब यह है कि उन्होंने लिखा ही उस तरीके से है। उन्होंने इसके लिए पहले से ही समय दिया। समय बेहद जरूरी है। इसलिए उन्होंने शूटिंग भी ऐसे की, जैसे होना चाहिए। सब कुछ प्लान के मुताबिक़ हुआ है। 'कांतारा' की स्क्रिप्ट में ही VFX था। शूट के बाद उन्होंने और VFX नहीं बढ़ाए। उन्होंने अपनी थीम में ही VFX को शामिल किया हुआ था।