पटना। एक जमाने में बिहार की राजनीति में जातीय गोलबंदी का काफी बोलबाला था। मंडल कमीशन की सिफ़ारिशों के लागू होने के साथ राज्य में दलित-पिछड़ों की राजनीति जनता दल के नेताओं- लालू यादव (Lalu Yadav), रामविलास पासवान (Ramvilas Paswan) और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में मजबूत हो रही थी। हालांकि जनता दल से विधायक बनकर राजनीति करने वाले आनंद मोहन (Anand Mohan) ने बाद में कास्ट रिज़र्वेशन का विरोध कर सवर्ण नेता के रूप में अपनी मजबूत पहचान बनाई थी। लेकिन वक्त के साथ आनंद मोहन का जादू खत्म हो गया और उनकी राजनीति शिवहर तक सिमट कर रह गई। ताज्जुब होगा, लेकिन एक दौर में उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि उन्हें भावी मुख्यमंत्री समझा जाता था।