साल 1980 में हरनौत से ही जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट चुनाव लड़ें। मगर, जीत न सकें। लगातार दो हार के बाद उन्होंने राजनीति छोड़ने का मूड बना लिया था। बताते हैं कि सरकारी ठेकेदार बनना चाहते थे, इसके लिए प्रयास भी शुरू किए थे, किंतु ऐसा नहीं हुआ और 1985 में तीसरी बार फिर हरनौत सीट से लोकदल ने उन्हें टिकट दे दिया। हालांकि इस बार 21 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए थे।