सत्यजीत सिंह कहते हैं कि साल 2003 में वो बेंगलुरू से पटना आ रहे थे। हवाई यात्रा के दौरान राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान बोर्ड के तत्कालीन निदेशक जनार्दन से मुलाकात हो गई, बातों-बातों में उन्होंने मखाना के व्यावसायिक फायदे के बारे में बताया। जिसके बाद पटना पहुंचते ही मन के अंदर छटपटाहट होने लगी।