बिहार का वो कारोबारी बेटा जिसने एक वक्त में मुकेश अंबानी के भाई अनिल को भी छोड़ दिया था पीछे

पटना (Bihar )। बिहार एक से बढ़कर एक प्रतिभाओं की खान है। ये राज्य उम्दा कलाकारों, नामचीन अफसरों, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों, मशहूर एकेडमिक्स और साइंटिस्ट के साथ आला दर्जे के कारोबारी भी पैदा कर चुका है। ऐसे कारोबारी जिन्होंने शून्य से शिखर तक का सफर तय किया। संप्रदा सिंह (Samprada Singh), बिहार की ऐसी ही विभूति हैं। दुनिया उन्हें उनके कारोबार की वजह से जानती है। इस एक मामूली किसान के बेटे ने अपनी मेहनत के दम पर जो कुछ हासिल किया वो किसी के लिए भी मिसाल से कम नहीं है। आज "बिहार के लाल" सीरीज में किसान के कारोबारी बेटे की कहानी...  

Asianet News Hindi | Published : Oct 7, 2020 3:05 AM IST / Updated: Oct 07 2020, 09:35 AM IST
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बिहार का वो कारोबारी बेटा जिसने एक वक्त में मुकेश अंबानी के भाई अनिल को भी छोड़ दिया था पीछे

संप्रदा सिंह का जन्म 1925 में जहांनाबाद (Jehanabad) जिले के एक पिछड़े और छोटे से गांव ओकरी के किसान परिवार में हुआ था। वो डॉक्टर बनना चाहते थे। किसान माता-पिता की भी यही इच्छा थी कि होनहार बेटा पढ़-लिखकर कुछ अच्छा कर ले। हालांकि तब मेडिकल की बहुत ही मुश्किल परीक्षा (Medical Exam) नहीं पास करने की वजह से संप्रदा सिंह और उनके माता पिता का सपना पूरा नहीं हो पाया। संप्रदा सिंह ने पटना यूनिवर्सिटी (Patana University) से बीकॉम की पढ़ाई की।  
 

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हालांकि भले ही संप्रदा सिंह डॉक्टर नहीं बन पाए मगर उन्हें मेडिकल क्षेत्र में ही कुछ करना था। उन्होंने 1953 में पटना में एक साधारण दवा दुकान से अपने संघर्ष की शुरुआत की। वो इस कारोबार की बारीकी और बदलाव पर बहुत ध्यान लगाए हुए थे। सात साल बाद ही 1960 में उन्होंने फार्मास्युटिकल्स डिस्ट्रिब्यूशन फर्म "मगध फार्मा" की नींव डाली।

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संप्रदा सिंह मेहनती के साथ ही पढे-लिखे बेहतर इंसान थे। इस वजह से बहुत जल्द ही कई देसी-विदेशी दवा कंपनियों से उनके रिश्ते बन गए। वो जल्द ही डिस्ट्रीब्यूटर बन गए और उनकी आर्थिक हैसियत बढ़ती गई। लेकिन संप्रदा को सिर्फ दवा नहीं बेचनी थी। मार्केट में डिस्ट्रीब्यूशन की बारीकी सीखने के बाद उनके दिमाग में आया कि क्यों न खुद दवाई बनाई जाए। 

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इसी सपने को लेकर 1973 में वो मुंबई चले आए। मुश्किल हालात और कारीबारी प्रतिद्वंद्विता के बीच उन्होंने यहां अपनी कंपनी "एल्केम लेबोरेटरीज" (Alkem Laboratories) की नींव डाली। शुरू के सालों में उन्हें बेहद मुश्किल संघर्ष करना पड़ा। लेकिन उनका संघर्ष 1989 में रंग लाया। ये साल उनकी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण साल है। दरअसल, उनकी कंपनी ने "एंटी बायोटिक कंफोटेक्सिम का जेनेरिक वर्जन टैक्सिम" बना लिया। 
 

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हुआ ये कि कंफोटेक्सिम की इन्वेंटर कंपनी मेरिओन रूसेल (फ्रांस की कंपनी) को लगा कि एल्केम बहुत छोटी कंपनी है, आखिर क्या लेगी। लेकिन डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क और किफायती मूल्य की वजह से संप्रदा सिंह की "टैक्सिम" ने बाजार में तहलका मचा दिया। 

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आज की तारीख में संपदा की एल्केम लेबोरेटरीज, फार्मास्युटिकल्स और न्यूट्रास्युटिकल्स बनाती है और 30 से ज्यादा देशों में कंपनी का कारोबार है। 2017 में फोर्ब्स इंडिया (Forbes India List) ने संप्रदा सिंह को देश के टॉप 100 भारतीय धनकुबेरों में 52वां स्थान दिया था। उस समय संप्रदा सिंह 3.3 अरब डॉलर के मालिक थे। वो फोर्ब्स में शामिल होने वाले बिहार के पहले कारोबारी थे। 

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मजेदार यह है कि 2017 की इसी लिस्ट में दुनिया के जाने-माने कारोबारी मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) के भाई अनिल अंबानी (Anil Ambani) संप्रदा सिंह से पीछे थे। अनिल को लिस्ट में 45वां स्थान मिला था। संप्रदा सिंह का निधन जुलाई 2019 में हो गया था। वो काफी बुजुर्ग भी थे। लेकिन आखिरी सालों तक उनका कारोबारी जुनून देखते बनता था। संप्रदा सिंह को दुनियाभर के कई सम्मान भी मिल चुके हैं।

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