Published : Mar 10, 2021, 05:23 PM ISTUpdated : Mar 10, 2021, 06:36 PM IST
बिजनेस डेस्क। आम तौर पर इक्विटी में निवेश को लंबी अवधि में मुनाफे के लिहाज से सबसे बेहतर विकल्प माना जाता है। वहीं, डेट इन्वेस्टमेंट (Debt Investment) में फिक्स्ड रिटर्न के साथ किसी तरह के जोखिम से सुरक्षा मिलती है। डेट इन्वेस्टमेंट की तुलना में इक्विटी में जोखिम बहुत ज्यादा होता है। हालांकि, डेट में भी निवेश पूरी तरह रिस्क फ्री नहीं होता। इस कैटेगरी में भी अलग-अलग स्कीम में जोखिम के अलग-अलग स्तर होते हैं। बहरहाल, एक्सपर्ट्स का मानना है कि रिस्क एडजस्टेड रिटर्ल हासिल करने और वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए डाइवर्सिफाइड पोर्टपोलियो रखना जरूरी है। इस लिहाज से डेट इंडेक्स फंड में निवेश किया जा सकता है।
(फाइल फोटो)
डेट इन्वेस्टमेंट में कई तरह के जोखिम होते हैं। इनमें क्रेडिट जोखिम, ब्याज दर जोखिम और लिक्विडिटी जोखिम मुख्य हैं। निवेश करने के पहले इनके बारे में जानना जरूरी है, ताकि परि्स्थिति के मुताबिक सही निर्णय लिया जा सके। (फाइल फोटो)
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क्रेडिट जोखिम डिफॉल्ट से संबंधित होता है। अगर जारीकर्ता अपने पेमेंट के दायित्च में चूक करता है, तो निवेश किए गए मूल धन का पूरा मूल्य नहीं प्राप्त हो सकता है। ऐसे में, निवेश करने वाले को घाटे का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए डेट फंड में निवेश करते समय इस बात पर जरूर गौर फर्माना चाहिए। (फाइल फोटो)
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डेट फंड मे निवेश करने पर ब्याज दर संबंधी जोखिम का भी सामना करना पड़ सकता है। बॉन्ड की कीमतों का ब्याज दरों के साथ विपरीत संबंध होता है। इसका मतलब यह है कि आपके पोर्टफोलियो में ऋण निवेश का मूल्य ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी के साथ घट जाएगा और ब्याज दर घटने पर इसमें बढ़ोत्तरी होगी। इससे आपके पोर्टफोलियो में अस्थिरता आ सकती है। (फाइल फोटो)
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आपके पास डेट म्यूचुअल फंड्स से लेकर बॉन्ड तक में निवेश करने का विकल्प है। लेकिन टारगेट मेच्योरिटी डेट फंड किसी तरह के जोखिम से बचने के लिए एक सही सॉल्यूशन है। यह एक डेट इन्वेस्टमेंट ऑप्शन है, जिसमें बॉन्ड की खासियत होती है। इसमें मेच्योरिटी तक निवेश बनाए रखने पर एक तय रिटर्न मिलता है। इस फंड के कई फायदे हैं। (फाइल फोटो)
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डिफाइंड मेच्योरिटी की वजह से इंडेक्स फंड में मिलने वाले रिटर्न ज्यादातर पहले के अनुमान के मुताबिक होते हैं। सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के बॉन्ड में इन फंड्स द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश किए जाने की वजह से रिस्क बहुत कम हो जाता है। डिफाइंड या टारगेटेड मेच्योरिटी का मतलब है कि बॉन्ड एक तय अवधि में मेच्योर होंगे। (फाइल फोटो)
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ईटीएफ में जहां डीमैट खाते की जरूरत पड़ती है, इंडेक्स फंड में यूनिट को खरीदने या बेचने के लिए डीमैट खाते के जरिए लेन-देन करने की जरूरत नहीं होती। इसमें म्यूचुअल फंड योजना की तरह किसी भी फंड हाउस के जरिए यूनिट खरीदे जा सकते हैं। (फाइल फोटो)
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बॉन्ड निवेश से कूपन आय पर सीमांत दरों पर टैक्स लागू होते हैं। इसके मुकाबले इंडेक्स फंड ज्यादा टैक्स एफिसिएंट हैं। दूसरी तरफ, इंडेक्स फंड्स पर इंडेक्सेशन के लाभ से टैक्स लगाया जाता है। यह आपके निवेश रिटर्न पर टैक्स लायबिलिटी को कम कर सकता है। (फाइल फोटो)