खुद के तन पर नहीं कपड़ा और 75 सालों से दे रहे मुफ्त शिक्षा, बुजुर्ग के समर्पण को पूरा देश कर रहा सैल्यूट

करियर डेस्क. देश और समाज के लिए कुछ करने का जज्बा हो तो हजारों मुश्किलें भी हार मान लेती हैं। ऐसे ही एक बुजुर्ग ने अपने अकेले के दम पर छोटे बच्चों का भविष्य संवारने का जिम्मा उठाया हुआ है। जैसा कि हम सभी जानते हैं अच्छे कल के लिए बच्चों का शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है। सरकार की तरफ से देशभर में इसके लिए कई अभियान भी चलाए जा जाते रहे हैं। सर्व शिक्षा अभियान इसका बड़ा उदाहरण है। बावजूद इसके कई बच्चे पढ़ाई से अभी भी दूर हैं। ओडिशा के जाजपुर में ऐसे बच्चों की मदद के लिए एक बुजुर्ग आगे हैं  जो पिछले 75 सालों से एक पेड़ के नीचे बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं। 

उनके हौसले और समर्पण को आज पूरा देश सलाम कर रहा है- 

Asianet News Hindi | Published : Sep 27, 2020 8:27 AM IST

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खुद के तन पर नहीं कपड़ा और 75 सालों से दे रहे मुफ्त शिक्षा, बुजुर्ग के समर्पण को पूरा देश कर रहा सैल्यूट

न्यूज एंजेंसी ANI के मुताबिक ओडिशा में एक बुजुर्ग पिछले करीब 75 सालों से बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं। वो एक पेड़ के नीचे स्कूल सजा लेते हैं। यहां सैकड़ों बच्चे उनसे पढ़ने आते हैं। तस्वीरों में आप शिक्षा के इस मंदिर का अद्भुत नजारा देख सकते हैं।

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बार्टांडा सरपंच ने बताया, "वह पिछले 75 साल से पढ़ा रहे हैं। सरकार से किसी भी तरह की मदद के लिए इनकार करते हैं, क्योंकि यह उनका जुनून है। हालांकि, हमने एक ऐसी सुविधा देने का फैसला किया है, जहां वह बच्चों को आराम से पढ़ा सकते हैं।"

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हर समाज में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसे ओडिशा का यह बुजुर्ग बखूबी निभा रहा है। उनकी तस्वीरें आज सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं। कपड़ों के नाम पर एक धोती लपेटे ये बुजुर्ग बच्चों का भिवष्य संवार रहे हैं। 

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उनके खुद के तन पर भले कपड़ा और आरामदेह जिंदगी न हो लेकिन शिक्षा का महत्व बेहतर पता है ऐसे में वो देश की सेवा में उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी जुटे हुए हैं। 

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बताते चलें कि यह पहला मौका नहीं है, जब किसी ने बच्चों को पढ़ाने के लिए खुद को पूरी तरह से समर्पित कर रखा है। ओडिशा के जरीपाल गांव में रहने वाली 49 वर्षीय बिनोदिनी सामल एक ऐसा ही अन्य उदाहरण हैं।

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वो हर रोज सपुआ नदी पार करके राठीपाल प्राइमरी स्कूल पहुंचती हैं। ताकि वहां पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य संवार सकें। स्कूल तक पहुंचने के लिए उनका यह प्रयास बिनोदिनी के लिए तब ज्यादा जोखिम भरा हो जाता है, जब सपुआ नदी मानसून के पानी से लबालब भरी होती है. कई बार तो पानी गर्दन तक पहुंच जाता है। तमाम अवरोधों के बावजूद बिनोदिनी ने कभी इसे काम से छुट्टी लेने का बहाना नहीं बनने दिया। 

 

 (प्रतीकात्मक फोटो)

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