पिछड़े गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ बनी IAS अफसर, बेटी आज भी नहीं भूली है किसान पिता की ये नसीहत
महाराष्ट्र. एक लड़की ने बचपन में अपने किसान पिता को बेबस और लाचार देखा। सरकार ने किसानों के एक योजना के तहत कुछ लाभ घोषित किए लेकिन अनपढ़ किसान को नहीं मालूम था कि वो उसे कैसे मिलेंगे? 9 साल की उनकी बेटी ये अपने पिता को मजबूर देखकर परेशान हो गई। और उसी वक्त ठान लिया कि वो बड़ी होकर अफसर बनेगी। मजबूत इरादों वाली इस बच्ची का नाम है रोहिणी भाजीभाकरे। रोहिणी आज एक आईएएस अफसर हैं। IAS-IPS सक्सेज स्टोरी में आइए जानते हैं पिछड़े इलाके से सरकारी स्कूल में पढ़ बिना कोचिंग अफसर बनने वाली किसान की बेटी के संघर्ष की कहानी....
Asianet News Hindi | Published : Feb 28, 2020 1:52 PM IST / Updated: Feb 28 2020, 07:26 PM IST
जब वो नौ साल की थीं तब उन्होंने अपने गरीब किसान पिता को मुश्किलों से लड़ते देखा था। रोहिणी ने पिता को दौड़-भाग करते देखा जब वो महाराष्ट्र में सोलापुर जिले के में खेती किसानी से जुड़े अपने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए परेशान थे।
तब रोहिणी के दिमाग में सवाल उठा कि ये कौन अफसर हैं जिनके एक हस्ताक्षर के लिए पिता दौड़ भाग कर रहे हैं? ऐसे ही वो अफसर बनने की मन ही मन सोच चुकी थीं।
रोहिणी महाराष्ट्र के सोलापुर के छोटे से गांव उपलाई की रहने वाली हैं। उनके पिता एक मार्जनल (सीमांत) किसान थे। गांव से ही 10वीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 12 वीं की पढ़ाई करने सोलापुर चली गईं। वह स्कूल की टॉपर रहीं। बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (BE) की पढ़ाई पूरी की।
रोहिणी ने सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और सरकारी कॉलेज में अपनी इंजीनियरिंग भी। इतना ही नहीं रोहिणी ने सेल्फ स्टडी करके आईएएस की तैयारी शुरू की और साल 2008 में उन्होंने यूपीएससी क्वालिफाई किया। उन्होंने यूपीएससी पास करने के लिए कोई प्राइवेट कोचिंग नहीं ली।
इतना ही नहीं रोहिणी ने सलेम जिले की पहली महिला कलेक्टर बन इतिहास रच दिया था। 1790 के बाद से जिले में करीब 170 कलेक्टरों आए और गए लेकिन कोई महिला अधिकारी नहीं रही। रोहिणी ने इस जिले को पहली महिला अधिकारी दी।
साल 2008 में उनकी पहली पोस्टिंग तमिलनाडु के मधुरई में असिस्टेंट कलेक्टर के तौर पर हुई। इसके बाद वह तिंदिवनम में सब कलेक्टर के तौर पर तैनात हुईं।
मधुरई में रोहिणी ने ऐसे-ऐसे काम किए कि लोग आज तक तारीफ करते नहीं थकते। उनके प्रयास से ही यह जिला राज्य का पहला खुले में शौच से मुक्त जिला बना था।
रोहिणी ने इलाके में न सिर्फ शौचालय बनवाएं, बल्कि ये सुनिश्चित किया कि लोग इनका प्रयोग करें। साल 2016 में उन्हें MNREGA को बेहतर तरीके से इंप्लीमेंट करने के लिए अवार्ड दिया गया। उन्होंने इस प्रोग्राम के तहत मधुरई में ग्राउंड वाटर के लिए काम किया।
रोहिणी बताती हैं कि, "जब वह आईएएस अफसर की ट्रेनिंग के लिए जा रही थी तो उनके पिता ने कहा था कि तुम्हारे टेबल पर ढेर सारी फाइलें आएंगी। तुम उन्हें सामान्य कागज की तरह मत लेना। तुम्हारे एक साइन से लाखों लोगों की जिंदगी में सुधार आ सकता है। हमेशा ये सोचना कि लोगों के लिए अच्छा क्या है।" “मेरे पिता का नाम रामदास है। वे दो एकड़ से कम की जमीन में ज्वार की खेती करते थे। जमीन और फसलों के मामले में वो बहुत परेशान रहते थे, कोई भी आधिकारी उनकी मदद नहीं करता था। उन्होंने मुझे बताया कि 'जिला कलेक्टर' ये सब काम करते हैं।
वह हमेशा चाहते थे कि उनके परिवार का कोई व्यक्ति आईएएस अधिकारी बने, क्योंकि इसका मतलब बहुत से लोगों की मदद करना होता है। रोहिणी कहती हैं कि मेरे पिता ने मुझे सलाह दी कि, "कलेक्टर बनने के बाद हमेशा जनता की मदद को तैयार रहूं।" पिता की सीख को ध्यान में रखते हुए रोहिणी जनता के जमीनी स्तर पर काम कर रही हैं। (पति के साथ IAS रोहिणी)