किसी ने फतह की किया एवरेस्ट, तो कोई पति के शहीद होने के बाद बनीं अफसर, ये है भारतीय सेना की 8 वंडर वुमेन

करियर डेस्क. हर साल 8 मार्च को विश्न महिला दिवस (International Women's Day) मनाया जाता है। इसका मुख्‍य मकसद महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना है। इसके साथ विश्‍व शांति को भी प्रोत्‍साहित करने का उद्देश्‍य जुड़ा है। वुमेन्स डे सीरीज में आज हम आपको उन 8 वंडर वुमेंस से मिलवाते हैं, जिन्होंने भारतीय सेना (Indian Armed Forces) में अपनी जीत का परचम लहराया और आज भी उनकी बहादुरी की मिसाल दी जाती है...
 

Asianet News Hindi | Published : Mar 7, 2022 6:02 AM IST

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किसी ने फतह की किया एवरेस्ट, तो कोई पति के शहीद होने के बाद बनीं अफसर, ये है भारतीय सेना की 8 वंडर वुमेन

पद्मावती बंदोपाध्याय
पद्मावती बंदोपाध्याय भारतीय वायु सेना की पहली महिला एयर मार्शल थीं। वह 1968 में IAF में शामिल हुईं और वर्ष 1978 में अपना डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज कोर्स पूरा किया, ऐसा करने वाली वह पहली महिला अधिकारी बनीं। इतना ही नहीं, वह उड्डयन चिकित्सा विशेषज्ञ बनने वाली पहली महिला अधिकारी थीं। 1971 के भारत-पाक संघर्ष के दौरान उनकी सेवा के लिए उन्हें एयर वाइस मार्शल के रैंक से सम्मानित किया गया था।

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पुनीता अरोड़ा
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के एक पंजाबी परिवार में जन्मी पुनीता अरोड़ा भारत की दूसरी सर्वोच्च रैंक हासिल करने वाली महिला हैं। इसके साथ ही वो भारतीय सशस्त्र बलों के लेफ्टिनेंट जनरल और भारतीय नौसेना के वाइस एडमिरल के पद को प्राप्त करने वाली भारत की पहली महिला हैं। इससे पहले, वह 2004 में सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज की कमांडेंट थीं। उन्होंने सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा (AFMS) के अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में सशस्त्र बलों के लिए चिकित्सा अनुसंधान का भी समन्वय किया। बाद में, वह सेना से नौसेना में चली गईं।

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मिताली मधुमिता
जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व में ऑपरेशन के दौरान अपने साहस के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता को फरवरी 2011 में वीरता के लिए सेना पदक मिला। वह ये प्राप्त करने वाली भारत की पहली महिला अधिकारी बनीं। मधुमिता फरवरी 2010 में आत्मघाती हमलावरों के हमले में काबुल में पहुंच गई थीं। निहत्थे होने के बावजूद, वह मौके पर पहुंचने के लिए लगभग 2 किमी दौड़ीं। मलबे के नीचे दबे सेना प्रशिक्षण दल के लगभग 19 अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से निकाला और उन्हें अस्पताल पहुंचाया।

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प्रिया झिंगन
21 सितंबर, 1992 को प्रिया झिंगन भारतीय सेना में शामिल होने वाली पहली महिला कैडेट बनीं। कानून में गेजुएट होने के नाते उन्हें कोर ऑफ जज एडवोकेट जनरल में शामिल होने की पेशकश की गई। जज एडवोकेट जनरल में 10 साल की सेवा के बाद 2002 में एक मेजर के रूप में सेवानिवृत्ति हुईं। जब वह रिटायर्ड हुईं, तो उन्होंने कहा, "यह एक सपना है जिसे मैं पिछले 10 वर्षों से हर दिन जी रही हूं।"

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दिव्या अजित कुमार
21 साल की उम्र में दिव्या अजित कुमार ने 244 साथी कैडेटों (पुरुष और महिला) को हराकर सर्वश्रेष्ठ ऑल-राउंड कैडेट का पुरस्कार जीता और प्रतिष्ठित "स्वॉर्ड ऑफ ऑनर" हासिल किया, जो अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी के एक कैडेट को दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। वह भारतीय सेना के इतिहास में यह सम्मान जीतने वाली पहली महिला कैप्टन बनीं। दिव्या अजित कुमार ने 2015 में गणतंत्र दिवस परेड के दौरान 154 महिला अधिकारियों और कैडेटों की एक महिला दल का नेतृत्व भी किया था।

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निवेदिता चौधरी
फ्लाइट लेफ्टिनेंट निवेदिता चौधरी अक्टूबर 2009 में माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली भारतीय वायु सेना (IAF) की पहली महिला बनीं। निवेदिता बताती हैं कि उन्होंने बचपन में केवल सोचा था कि वह प्लेन उड़ाएंगी। लेकिन विश्वास नहीं था कि प्लेन उड़ाने के साथ-साथ वे माउंट एवरेस्ट भी फतेह कर पाएंगी। 2017 में वो वायु सेना से रिटायर हो गई है और एक बेटी की मां हैं।
 

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अंजना भदौरिया
अंजना भदौरिया भारतीय सेना में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला हैं। वह हमेशा से भारतीय सेना में एक अधिकारी बनना चाहती थी। माइक्रोबायोलॉजी में एमएससी पूरा करने के बाद अंजना ने महिला विशेष प्रवेश योजना (WSES) के माध्यम से सेना में महिला अधिकारियों को शामिल करने के लिए एक विज्ञापन के लिए आवेदन किया और 1992 में भारतीय सेना में महिला कैडेटों के पहले बैच में स्वीकार किया गया। प्रशिक्षण के दौरान हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए, उन्हें एक बैच से स्वर्ण पदक के लिए चुना गया, जिसमें पुरुष और महिला दोनों शामिल थे। उन्होंने 10 साल तक भारतीय सेना में सेवा की।

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प्रिया सेमवाल
प्रिया सेमवाल, जिनके पति एक युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे, वह 2014 में एक युवा अधिकारी के रूप में भारतीय सशस्त्र बल में शामिल हुईं। उस समय वह 4 साल की बेटी की मां थी, जब उन्होंने अपने पति नायक अमित शर्मा की मृत्यु के बारे में सुना, जो 14 राजपूत रेजिमेंट में सेवारत थे। 2012 में अरुणाचल प्रदेश में पहाड़ी तवांग के पास एक आतंकवाद विरोधी अभियान में वह शहीद हो गए थे।

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