पायल बेच भरी थी कॉलेज की फीस...निर्भया के दरिंदों को फांसी दिलवाने वाली वकील के संघर्ष की कहानी
नई दिल्ली. निर्भया गैंगरेप केस में सात साल बाद चारों दोषियों को फांसी हो चुकी है। 20 मार्च. सुबह 5:30 बजे तिहाड़ जेल में चार दोषियों को फांसी पर लटका दिया गया। ये चारों 2012 के निर्भया गैंगरेप और मर्डर मामले के दोषी थे। निर्भया की मां आशा देवी ने इंसाफ के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और उनके साथ इस लड़ाई में डटी रहीं निर्भया की वकील सीमा कुशवाहा। निर्भया के दरिंदों को फांसी तक पहुंचाने वाली इस वकील की देश भर में वाहवाही हो रही है। सोशल मीडिया पर लोग उन्हें सैल्यूट कर रहे हैं। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाली सीमा के वकील बनने की राह आसान नहीं थी। उन्होंने जिंदगी में बहुत दुख झेले। जिंदगी इतनी तंगहाली में गुजरी कि बुआ के कान के कुंडल और पायल बेचकर कॉलेज की फीस भरनी पड़ी थी। करियर सक्सेज स्टोरी हम आपको निर्भया की वकील सीमा कुशवाह के संघर्ष (Nirbhaya Advocate Seema Kushwaha Struggle Story) की कहानी सुना रहे हैं।
Asianet News Hindi | Published : Mar 21, 2020 5:09 AM IST / Updated: Mar 21 2020, 10:51 AM IST
सीमा यूपी के इटावा के छोटे से गांव उग्गरपुर की रहने वाली हैं। पिता किसानी करते थे। सीमा का बचपन से ही पढ़ाई में मन लगता था। आठवीं तक वो स्कूल गईं। क्योंकि आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता जो 3-4 किलोमीटर दूर था तो घरवाले बेटी की सुरक्षा को लेकर परेशान हो गए थे। और उस समय गांव में लड़कियों को ज्यादा आगे पढ़ने कोई देना भी नहीं चाहता था।
सीमा को आगे स्कूल भेजने न भेजने पर विचार होने लगा। पिता ने अपने 8-10 दोस्तों के साथ मीटिंग की एक छोटी सी पंचायत टाइप की बैठी इस बैठक में फैसला हुआ कि सीमा को आगे पढ़ने दिया जाएगा। सीमा ने आगे की पढ़ाई की और 12वीं के बाद वो औरैया ग्रेजुएशन करने के लिए चली गईं। उसी दौरान उनके पिता की मौत हो गई। घरवालों ने भी कहा कि अब उन्हें पढ़ाई के लिए खुद पैसे जुगाड़ने होंगे।
सीमा मीडिया से बात करते हुए बताती हैं कि कॉलेज की फीस के लिए पैसे नहीं थे। मेरी बुआ ने सोने के कान के और पायल मुझे दीं। मैंने उन्हें बेच दिया जो पैसे आए उससे कॉलेज की फीस भर दी थी। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया और किसी तरह ग्रेजुएशन किया।’
इसके बाद सीमा ने कानपुर यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की। तब दीदी और जीजाजी ने कॉलेज की फीस दी। सीमा दीदी के घर इटावा से कानपुर डेली अप डाउन करके कॉलेज जाती थीं। LLB के पहला साल हो गया लेकिन बाद उन्हें परेशानी हुईं। वो सुबह 4:30 बजे जातीं और कॉलेज से लौटने में रात हो जाती। फिर भी पैसों की तंगी थी, इसलिए इटावा में ही दीदी के पास रहीं। दूसरे साल कानपुर शिफ्ट हो गईं। वहां एक लोकल मैगजीन में पार्ट-टाइम जॉब करके पैसों का जुगाड़ किया।
निर्भया के दोषियों को फांसी तक पहुंचाने की लड़ाई लड़ने वाली ये वकील बचपन में झांसी की रानी, किरण बेदी के बारे में पढ़ती सुनती थीं। वो सोचती थी कि ये सब मैं क्यों नहीं बन सकती। इसलिए मेरे अंदर एक जिद थी पढ़ने की बाहर पढ़ने जाती थी, तो लड़के अजीब-अजीब कमेंट भी करते थे। अंदर में एक गुस्सा था कि हम भी तो इंसान हैं। हमें पुरुषों की तरह अधिकार क्यों नहीं हैं? ये लोग हमें क्यों असुरक्षित महसूस करवाते हैं। मैं क्यों घर में बैठूं, क्यों न पढ़ूं?’
2011 से सीमा दिल्ली में रह रही थीं। कानपुर से वकालत की पढ़ाई करने के बाद वो IAS बनने दिल्ली आई थीं। दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड ने उनका फैसला बदल दिया और वो वकालत में जुट गईं। वो दिल्ली की सड़कों पर, इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन के सामने हज़ारों भीड़ के साथ निर्भया के लिए धरने में शामिल भी हुई थीं। 2014 में कानूनी तौर पर वो निर्भया के इस केस से जुड़ीं थीं।
2017 से लेकर मार्च 2020 तक कई सारी याचिकाएं डाली गईं. निर्भया के पैरेंट्स की तरफ से भी और दोषियों की तरफ से भी। पैरेंट्स जल्द से जल्द फांसी की सजा दिलवाना चाहते थे, दोषी टालने की कोशिश में थे। दिसंबर से लेकर मार्च तक इस केस में बहुत उथल-पुथल मची रही। तीन बार फांसी की तारीख आगे बढ़ाई गई।
सीमा ने कभी भी निर्भया के पैरेंट्स को हिम्मत नहीं हारने दी थी। वो अंत तक निर्भया की मां के साथ लड़ती रहीं। आखिरकार 20 मार्च को दोषियों को फांसी हो गई और लोगों ने सीमा के जज्बे और हौसले को सलाम किया।
सीमा कहती हैं कि निर्भया को इंसाफ दिलाने के बाद वो कोशिश करेंगी कि देश की बाकी लड़कियों के साथ भी न्याय हो। वो कहती हैं कि ‘सिस्टम अगर सपोर्ट करेगा तो मैं एक वकील के नाते बाकी लड़कियों को न्याय दिलाने की कोशिश करूंगी। मैं सरकार को लेटर लिखकर कहूंगी कि जो-जो केस पेंडिंग हैं, उन पर जल्द से जल्द सुनवाई हो।’ छह साल तक निर्भया के इंसाफ के लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने वाली सीमा को अब हर कोई सैल्यूट कर रहा है। सोशल मीडिया पर लोग इनके फैन हो गए हैं।