स्टेशन पर पटरियों की मरम्मत करता था गरीब किसान का बेटा, कड़ी मेहनत से बना IPS अफसर

जयपुर. गांवों में किसान परिवार में पले-बढ़े बच्चों को सुविधाओं का अभाव रहता है। ये गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं और जैसे-तैसे शहर में दाखिला लेकर ग्रेजुएशन तक कर पाते हैं। फसल बेचने से जो पैसा मिलता है उसी से घर का खर्च चलता है। जमीन से किसानी से लगाव के कारण ये मजबूरी में गांव छोड़ शहर जाने की भी नहीं सोच पाते। ऐसे ही राजस्थान में एक किसान का बेटा गरीबी में पला-बढ़ा लेकिन आज वो पुलिस में अधिकारी है। वो यहां तक अपनी मेहनत के बलबूते पहुंचा है।  आज की कहानी में हम बात करेंगे राजस्थान प्रहलाद मीणा की। कैसे मीणा रेलवे में गैंगमैन की छोटी सी नौकरी से ओडिशा में IPS अधिकारी बने। IAS, IPS सक्सेज स्टोरी में आइए जानते हैं मीणा के संघर्ष की दास्तान...

Asianet News Hindi | Published : Mar 28, 2020 6:18 AM IST / Updated: Mar 28 2020, 12:13 PM IST
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स्टेशन पर पटरियों की मरम्मत करता था गरीब किसान का बेटा, कड़ी मेहनत से बना IPS अफसर
प्रहलाद मीणा दौसा ज़िले के एक गांव में ग़रीबी में पले-बढ़े हैं। पर वो पढ़ाई में बहुत आगे जाना चाहते थे। अपने संघर्, की कहानी वो खुद सुनाते हैं। वो बताते हैं- मैं एक छोटे से गांव आभानेरी (रामगढ़ पचवारा) से हूं। ग्रामीण किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूं।
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हमारे पास दो बीघा जमीन थी, जिसमें घर चला पाना मुश्किल था तो मां-पिताजी दूसरों के खेतों में बंटाई (हिस्सेदारी) में खेती करके परिवार को चलाते थे। हमारे क्षेत्र में शिक्षा के प्रति जागरूकता का अभाव था। मैं कक्षा में हमेशा प्रथम दर्जे का विधार्थी रहा फिर भी यह मुकाम तय करने की तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
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मैंने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल से ही की है। 10वीं कक्षा का परिणाम आया तुम्हें अपने स्कूल में प्रथम स्थान पर आया था। मेरा भी मन था और कई लोगों ने कहा कि मुझे साइंस विषय लेना चाहिए। मैं भी इंजीनियर बनने का सपना देखता था लेकिन, परिवार वालों की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह मुझे बाहर पढा सके और खर्चा उठा सके।
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मेरे गांव के आसपास विज्ञान विषय का कोई स्कूल नहीं था। मैंने इन सब चीजों को भुलाकर वापस 11वीं में अपने सरकारी स्कूल में एडमिशन ले लिया था और मानविकी विषयों के साथ पढ़ाई जारी रही।
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12वीं में भी मैं अपने कक्षा में स्कूल में प्रथम स्थान पर रहा था लेकिन अब मेरी प्राथमिकता बदल गई थी अब मुझे सबसे पहले नौकरी चाहिए थी क्योंकि परिवार की इतनी अच्छी आर्थिक दशा नहीं थी कि वह मुझे जयपुर किराए पर कमरा दिला कर पढ़ा सके।
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आज मेरी सफलता के पीछे का जो सबसे बड़ा कारण है वह मेरे माता पिता द्वारा मुझे जयपुर के राजस्थान कॉलेज में एडमिशन दिलाना था। वहां मेरी ऐसे अच्छे अच्छे दोस्तों से जानकारी हुई और मुझे विश्वास हो गया कि शायद सिविल सेवा में नहीं तो, पर मैं एक अच्छी नौकरी जरूर पा लूंगा। मिडिल क्लास भी नहीं गरीब परिवार से वास्ता रखते हुए, मेरे लिए एक अच्छी नौकरी खोजना बहुत जरूरी था।
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बारहवीं कक्षा में था तब हमारे गांव से एक लड़के का चयन भारतीय रेलवे में ग्रुप डी (गैंगमैन) में हुआ था। उस समय मैंने भी अपना लक्ष्य गैंगमैन बनने का बना लिया और तैयारी करने लग गया। बीए द्वितीय वर्ष 2008 में मेरा भारतीय रेलवे में भुवनेश्वर बोर्ड से गैंगमैन के पद पर चयन हो गया था।
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मैंने पढ़ाई जारी रखी और उसी साल मेरा चयन भारतीय स्टेट बैंक में सहायक (एल डी सी) के पद पर हो गया। वहां नौकरी के साथ मेंने बी. ए. किया तथा आगे की पढ़ाई जारी रखी, 2010 में मेरा चयन भारतीय स्टेट बैंक में परीवीक्षाधीन अधिकारी के पद पर हो गया।
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मैंने कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित होने वाली संयुक्त स्नातक स्तरीय परीक्षा दी तथा उसमें मुझे रेलवे मंत्रालय में सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर पदस्थापन मिला। अब दिल्ली से मैं घर की सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा था और उस के साथ ही मेंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी भी आरंभ कर दी।
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रामगढ़ पचवारा तहसील के आभानेरी गांव निवासी प्रहलाद ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में 951 वीं रैंक (जनरल) हासिल की है। मीणा को 2013 तथा 2014 में मुख्य परीक्षा देने का अवसर मिला। 2015 में प्रिलिमनरी परीक्षा में सफलता नहीं मिली तो उस साल वैकल्पिक विषय हिंदी साहित्य को अच्छे से तैयार किया तथा 2016 के प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्त की और वह वर्तमान में भारतीय पुलिस सेवा- IPS में ओडिशा कैडर के 2017 बैच के अधिकारी हैं।
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वो कहते हैं कि मेरी इच्छा थी कि बस, एक बार सिविल सेवा परीक्षा पास ही करनी है और दुनिया को दिखाना है कि मैं भी यह कर सकता हूं। मेरे जैसे जो ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले बच्चों को मेरी सफलता से आत्मविशवास मिलेगा कि वो भी सिविल सर्विस में जाकर अधिकारी बन सकते हैं।
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