हाईस्कूल में पढ़ाई के दौरान ही स्कूल ने पिता से कहा था- बेटे को यहां से ले जाइए, वही बेटा बन गया IAS

करियर डेस्क. किसी ने सच ही कहा है कि सफलता किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती। सफलता के लिए सिर्फ जरूरी है जोश व लगन। व्यक्ति अपनी मेहनत और जोश के दम पर बड़ा से बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है। आज कल अक्सर देखा जा रहा है कि कॉम्पटेटिव एग्जाम्स की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स अक्सर एक या दो बार असफल होने के बाद नर्वस हो जाते हैं। वह अपना संतुलन खो बैठते हैं उन्हें ये लगने लगता है कि अगर वह सफल न हुए तो जिंदगी में क्या कर सकेंगे। उन्हें आगे का रास्ता नहीं सूझता है।  इन सबको ध्यान में रखते हुए एशिया नेट न्यूज हिंदी ''कर EXAM फतह...'' सीरीज चला रहा है। इसमें हम अलग-अलग सब्जेक्ट के एक्सपर्ट, IAS-IPS के साथ अन्य बड़े स्तर पर बैठे ऑफीसर्स की सक्सेज स्टोरीज, डॉक्टर्स के बेहतरीन टिप्स बताएंगे। इस कड़ी में आज हम 2017 बैच के IAS आशुतोष द्विवेदी की कहानी आपको बताने जा रहे हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 27, 2020 8:18 AM IST

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हाईस्कूल में पढ़ाई के दौरान ही स्कूल ने पिता से कहा था- बेटे को यहां से ले जाइए, वही बेटा बन गया IAS
आशुतोष मूलतः उत्तर प्रदेश के रायबरेली के एक छोटे से गांव गोपालपुर के रहने वाले हैं। इनके पिता डॉ महावीर प्रसाद द्विवेदी रिटायर्ड पशु चिकित्सा अधिकारी हैं। आशुतोष की शुरुआती पढ़ाई यूपी के प्रतापगढ़ से हुई है। क्योकि उनके पिता की यहीं तैनाती थी।
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आशुतोष ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई प्रतापगढ़ के लालगंज अझारा स्थित शीतलामऊ मांटेसरी स्कूल से की। एक दिन स्कूल के प्रबंधक ने आशुतोष के पिता को बुलाया। प्रबंधक ने उनके पिता से कहा कि आपके घर में भगवान की दी हुई अभूतपूर्व प्रतिभा आई है। उन्होंने कहा आशुतोष पढ़ने में साधारण छात्र नहीं है। इसका एडमीशन किसी अच्छे स्कूल में करवाइए।
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प्रबंधक के कहने के बाद आशुतोष के पिता ने हाईस्कूल के बाद उनका एडमीशन कानपुर के दीन दयाल उपाध्याय इंटर कालेज में करवा दिया। वहां से इंटरमीडिएट पास करने के बाद आशुतोष ने ग्रैजुएशन कम्प्लीट किया। ग्रेजुएशन के दौरान ही कानपुर एचबीटीआई में उनका चयन हो गया।
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आशुतोष के बडे़ भाई डॉ संतोष कुमार द्विवेदी भी अमेठी के जामो में पशु चिकित्सा अधिकारी हैं। वे भी आइएएस बनना चाहते थे, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद आशुतोष ने मन में निश्चय कर लिया एक दिन वे आइएएस बनकर भाई के सपने को पूरा करेंगे। आशुतोष द्विवेदी ने एचबीटीआइ में कैंपस सेलेक्शन के दौरान मारुति सुजुकी में नौकरी की। इसके बाद उनका चयन इसरो में हो गया, लेकिन वहां मात्र 15 दिन ही नौकरी की। इसके बाद उन्हें गेल इंडिया में नौकरी मिल गई। यहां पर वह चार साल रहे।
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आशुतोष द्विवेदी बरेली में गेल में सीनियर इंजीनियर के रूप में काम कर रहे थे। उस समय एक पाइप लाइन के बिछाने के लिए किसानो की अधिग्रहीत जमीन के एवज में मुवाअजा बांटा जा रहा था। उसी दौरान एक बूढी करीब महिला ने उनसे मुलाक़ात की और उन्हें पीने के किए छांछ दिया। उस बूढ़ी महिला ने कहा कि बेटा मेरी बेटी की शादी होनी है कलेक्टर साहब से कहकर मुझे ज्यादा मुवाअजा दिला दो। उस समय उन्हें लगा कि कलेक्टर बनकर ही लोगों की मदद की जा सकती है। बस उनका पुराना सपना फिर से जाग उठा।
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इसके बाद उन्होंने गेल में नौकरी छोड़ दी। 2014 में आरपीएफ में सहायक सुरक्षा आयुक्त का पद मिला। वह जिला खेल अधिकारी के एग्जाम को भी क्रैक करने में सफल रहे। लेकिन दोनों नौकरियों को उन्होंने छोड़ दिया। उनके मन में IAS बनने का सपना पल रहा था। इस सपने को पूरा करने के लिए आशुतोष ने 2015 में UPSC की परीक्षा दी। वह सफल तो रहे लेकिन 208वीं रैंक के साथ आइपीएस में उनका सिलेक्शन हो गया। उन्होंने फिर से तैयारी की और साल 2017 में उन्हें 80 वीं रैंक के साथ IAS में सफलता मिल गई।
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