बचपन में पिता की मौत,अनाथालय में रहकर पढ़ा...जिद थी अफसर बनना है और जज्बा ऐसा IAS बन गया लड़का
करियर डेस्क. किसी ने सच ही कहा है कि सफलता किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती। सफलता के लिए सिर्फ जरूरी है जोश व लगन। व्यक्ति अपनी मेहनत और जोश के दम पर बड़ा से बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है। आज कल अक्सर देखा जा रहा है कि कॉम्पटेटिव एग्जाम्स की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स अक्सर एक या दो बार असफल होने के बाद नर्वस हो जाते हैं। वह अपना संतुलन खो बैठते हैं उन्हें ये लगने लगता है कि अगर वह सफल न हुए तो जिंदगी में क्या कर सकेंगे। उन्हें आगे का रास्ता नहीं सूझता है। इन सबको ध्यान में रखते हुए एशिया नेट न्यूज हिंदी ''कर EXAM फतह...'' सीरीज चला रहा है। इसमें हम अलग-अलग सब्जेक्ट के एक्सपर्ट, IAS-IPS के साथ अन्य बड़े स्तर पर बैठे ऑफीसर्स की सक्सेज स्टोरीज, डॉक्टर्स के बेहतरीन टिप्स बताएंगे। इस कड़ी में आज हम 2011 बैच के IAS मोहम्मद अली शिहाब की कहानी बताने जा रहे हैं।
मोहम्मद अली शिहाब का जन्म केरल के मलप्पुरम जिले के एक गांव, एडवन्नाप्परा में हुआ था। बचपन में शिहाब अपने पिता के साथ पान और बांस की टोकरियों की दुकान में काम किया करते थे। 1991 में लंबी बिमारी के चलते शिहाब के पिता का देहांत हो गया, उस वक्त शिहाब की उम्र बहुत कम थी।
पिता की मौत के बाद शिहाब के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। शिहाब की मां इतनी गरीब थीं कि पिता के गुजर जाने के बाद वो अपने पांच बच्चों का खर्च नहीं उठा सकती थीं, जिसके चलते उन्हें दिल पर पत्थर रखकर शिहाब सहित अपने सभी बच्चों को अनाथालय भेजना पड़ा। बच्चों के अनाथालय जाने के बाद उनकी मां टूट सी गईं। लेकिन उनके पास दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था। इसलिए शिहाब और उनके दूसरे भाई बहनों का बचपन अनाथालय में ही गुजरा।
शिहाब की जिंदगी के 10 साल अनाथालय में ही गुजरे। इस दौरान वह अनाथालय के स्कूल के सबसे होनहार स्टूडेंट थे। उन्हें जो भी चीज बताई जाती वह तुरंत ही याद हो जाती थी। धीरे-धीरे उन्हें स्कॉलरशिप मिलने लगी। यहीं से उनकी पढ़ाई की दिशा घूम गई।
आगे चलकर इंग्लिश कमजोर होना शिहाब के लिए एक बड़ी समस्या लेकर आई। हांलाकि उन्होंने उससे निजात पाने के लिए दिन रात मेहनत की। शिहाब बचपन से ही मन में बड़ा अफसर बनने का सपना पाल चुके थे। बस दिल में एक बात घर कर गई थी कि वो सपना कैसे भी पूरा करना है।
25 साल की उम्र में शिहाब ने सिविल सर्विस की प्रिपरेशन शुरू की। शिहाब को पहले अटेम्प्ट में सफलता मिली। उन्होंने अगले साल ही दूसरा अटेम्प्ट भी ट्राई किया। लेकिन दुर्भाग्य यहां भी उनके साथ रहा और वह फिर से फेल हो गए। लेकिन तीसरे प्रयास में शिहाब ने प्री और मेंस क्लियर कर लिया।
दो बार सिविल सर्विस की परीक्षा में शिहाब ने काफी कुछ सीख लिया था। उन्हें ये पता हो हो गया था कि उन्हें जितना अंग्रेजी आती है उतना इंटरव्यू के लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए उन्होंने ट्रांसलेटर लिया। शिहाब ने इस बार सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर ली थी। उन्हें 226 वीं रैंक मिली।