रिक्शावाले ने दिन रात चलाया रिक्शा ताकि बेटा अफसर बन सके..., उसके लाल ने IAS बनकर दिखा दिया

वाराणसी (Uttar Pradesh ) . फरवरी में CBSE बोर्ड के साथ अन्य बोर्ड के एग्जाम भी स्टार्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही बैंक, रेलवे, इंजीनियरिंग, IAS-IPS के साथ राज्य स्तरीय नौकरियों के लिए अप्लाई करने वाले  स्टूडेंट्स प्रोसेस, एग्जाम, पेपर का पैटर्न, तैयारी के सही टिप्स को लेकर कन्फ्यूज रहते है। यह भी देखा जाता है कि रिजल्ट को लेकर बहुत सारे छात्र-छात्राएं निराशा और हताशा की तरफ बढ़ जाते हैं। इन सबको ध्यान में रखते हुए एशिया नेट न्यूज हिंदी ''कर EXAM फतह...'' सीरीज चला रहा है। इसमें हम अलग-अलग सब्जेक्ट के एक्सपर्ट, IAS-IPS के साथ अन्य बड़े स्तर पर बैठे ऑफीसर्स की सक्सेज स्टोरीज, डॉक्टर्स के बेहतरीन टिप्स बताएंगे। इस कड़ी में आज हम 2007 बैच के IAS अफसर गोविन्द जायसवाल की कहानी आपको बताने जा रहे हैं। गोविन्द ने जिन संघर्षों के बाद ये मुकाम पाया है निश्चित ही वह एक मिसाल है। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 20, 2020 7:45 AM IST / Updated: Feb 20 2020, 01:49 PM IST

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रिक्शावाले ने दिन रात चलाया रिक्शा ताकि बेटा अफसर बन सके..., उसके लाल ने IAS बनकर दिखा दिया
गोविन्द उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। उनके पिता नारायण जायसवाल एक रिक्शा चालक थे। हांलाकि अब उनकी उम्र काफी ज्यादा हो गई है। उन्होंने रिक्शा चलाकर दिन-रात मेहनत कर अपने बेटे गोविन्द को पढ़ाया लिखाया था। गोविंद का पूरा परिवार काशी के अलईपुरा में किराए के एक छोटे से कमरे में रहता था।
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बचपन में एक बार गोविन्द खेलते हुए मुहल्ले में ही रहने वाले एक दोस्त के साथ उसके घर चले गए। जहां दोस्त के पिता ने गोविन्द को घर के बाहर निकालते हुए कहा तुम्हारी हिंम्मत कैसे हुई हमारे घर में आने की। वजह ये थी कि गोविन्द के पिता रिक्शा चलाते थे और वो व्यक्ति एक संपन्न परिवार से था। उस समय गोविन्द की उम्र महज 11 साल की थी।
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लेकिन एक दिन ये बात गोविन्द ने अपने पिता को बताई। तो पिता ने बेटे को समझाया कि हमारा बैकग्राउंड कमजोर है,इसलिए उन्होंने तुमसे ऐसा कहा। इस पर गोविन्द ने पिता से पूंछा कि बैकग्राउंड मजबूत कैसे होगा। पिता के मुंह से अचानक ऐसे ही ये बात निकली कि जब तुम IAS बन जाओगे तब। उस दिन किसी को नहीं पता था कि इस 11 साल के लड़के के दिल में अब सिर्फ IAS शब्द ही पलने वाला है।
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गोविन्द के रिश्तेदार राजेश बताते हैं कि पहले गोविन्द के पिता नारायण के पास 35 रिक्शे थे। लेकिन पत्नी की बीमारी में 15 रिक्शे बिक गए। इसके बाद बेटियों की शादी में बाकी बचे रिक्शे बिक गए। इसके बाद बेटे की पढ़ाई के लिए वह खुद रिक्शा चलाने लगे। बेटे को पढ़ाई में कोई समस्या न आए इसके लिए वह दिन रात मेहनत करते थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद 2005 में गोविन्द सिविल सर्विस की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए ।
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रिक्शा चलाने के दौरान गोविन्द के पिता के पैर में चोट लग गई। ठीक से दवा न लेने के कारण घाव बड़ा हो गया और टिटनेस हो गया। लेकिन उन्होंने बेटे को कुछ नहीं बताया। वह दवा के पैसे भी गोविन्द को पढ़ाई के लिए भेज देते थे। उनका सपना था कि बेटा एक दिन बड़ा अफसर बनकर नाम रोशन करे।
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गोविन्द के जेहन में बचपन में पिता द्वारा बताए गए वही शब्द चल रहे थे जिसमे उन्होंने बताया था कि IAS बनने से बैकग्राउंड मजबूत हो जाएगा। गोविन्द ने 2007 में पहली बार UPSC की परीक्षा दी। वह पहले ही प्रयास में सफल रहे। गोविन्द की सफलता पर उनके रिश्तेदार और पड़ोसियों ने खूब खुशी मनाई और मिठाइयां बांटी। लेकिन उनकी सफलता के पीछे उनकी खुद की मेहनत,लगन और पिता की दिन-रात की गई मेहनत शामिल थी।
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