एक महिला मरीज ने सबके सामने ऐसा उल्टा जवाब दिया कि बात दिल को चुभ गई और IAS बनने की ठान ली

रायपुर, छत्तीसगढ़. कहते हैं कि देश IAS और IPS चला रहे हैं। ऐसा कहना गलत भी नहीं होगा। क्योंकि यही दो अफसर है, जिनके ऊपर सबसे ज्यादा और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। ये सीधे आम जनता से जुड़े होते हैं। इनकी जरा-सी चूक या गलती पूरे सिस्टम पर भारी पड़ जाती है। वहीं, इनके अच्छे और सकारात्मक प्रयास लोकतंत्र को और मजबूत बनाते हैं। लोगों का जीवनस्तर सुधारने में मदद करते हैं। सिस्टम को बेहतर बनाते हैं। ऐसी ही जिम्मेदार IAS हैं डॉ. प्रियंका शुक्ला। छत्तीसगढ़ में पदस्थ 2009 बैच की IAS अधिकारी डॉ. प्रियंका ने अपने करियर की शुरुआत डॉक्टरी पेशे से की थी। लेकिन एक घटना ने जिंदगी में ऐसा टर्न लिया कि सबकुछ छोड़कर आईएएस बनकर ही सांस ली। डॉ. प्रियंका शुक्ला मूलत: हरिद्वार की रहने वाली हैं। इनके पिता भी चाहते थे कि बेटी  IAS बने, लेकिन उन्होंने जिस तरह के सब्जेक्ट चुने थे, वो उन्हें मेडिकल फील्ड में ले गए। डॉक्टरी के दौरान एक महिला मरीज ने उन्हें अनजाने और नासमझी में ऐसा डांटा कि उनकी राह बदल गई। पढ़िए सक्सेस स्टोरी...

Asianet News Hindi | Published : Jul 18, 2020 11:27 AM IST / Updated: Jul 18 2020, 05:21 PM IST
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एक महिला मरीज ने सबके सामने ऐसा उल्टा जवाब दिया कि बात दिल को चुभ गई और IAS बनने की ठान ली

2006 में लखनऊ की की किंग जॉर्ज्स मेडिकल यूनिवर्सिटी से MBBS करने वालीं प्रियंका लखनऊ में इंटर्नशिप कर रही थीं। इसी दौरान वे स्लम में जाती थीं। लोगों को स्वास्थ्य से संबंधित जानकारियां देते समय उन्होंने किसी बीमार महिला को गंदा पानी पीते देखा। जब उन्होंने महिला को ऐसा करने से रोका, तो उसने डांट दिया। दरअसल, महिला ने ऐसा नासमझी में किया था। उसने बोल दिया कि तुम रोकने वाली कौन होती है? कलेक्टर हो क्या? यह बात प्रियंका को चुभ गई। उन्होंने लगा कि जब तक लोगों को जागरूक नहीं किया जाएगा, वे सही-गलत की पहचान नहीं कर पाएंगे। बस, उन्होंने आईएएस बनने की ठान ली।

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डॉ. प्रियंका को 2011 के दौरान किए गए अपने कार्यों के लिए राष्ट्रपति की ओर से सिल्वर मैडल से नवाजा गया था। साक्षरता के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए भी एक बार उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला।

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2016 में प्रियंका शुक्ला ने स्कूलों में अच्छी शिक्षा की दिशा में सार्थक पहल की। उन्होंने यशस्वी जशपुर नामक एक अभियान चलाया। इसके तहत जमा किए गए फंड की मदद से स्कूलों का कायाकल्प किया। इससे बच्चों में पढ़ाई का जज्बा बढ़ा और अच्छे रिजल्ट आए।
 

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जशपुर में ही कलेक्टरी के दौरान डॉ. प्रियंका ने लड़कियों को स्वावलंबी बनाने की दिशा में बेकरी खोलने को प्रेरित किया। इसे नाम दिया बेटी जिंदाबाद। दरअसल, यहां मानव तस्करी के मामले ज्यादा आ रहे थे। इसे रोकने उन्होंने लड़कियों को आगे पढ़ने-बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

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चूंकि प्रियंका खुद भी एक डॉक्टर हैं, इसलिए वे जहां भी पोस्टेड रहती हैं, वहां स्वास्थ्य सेवाओं पर विशेष फोकस करती हैं। एक बार वे 400 कर्मचारियों को मॉर्निंग वॉक पर ले गई थीं, ताकि उनकी फिटनेस का पता चल सके।

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डॉ. प्रियंका का कहना है कि जो आईएएस कुछ नया नहीं करता, उसमें और बाबू में कोई फर्क नहीं। सिस्टम को बदलना है, अच्छे रिजल्ट चाहिए..तो कुछ न कुछ नया सोचना होगा।

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एक आईएएस के तौर पर डॉ. प्रियंका शुक्ला को उनके अच्छे कार्यों के लिए कई अवार्ड मिल चुके हैं। वे बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे मुद्दों पर हमेशा मुखर रहती हैं।

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डॉ. प्रियंका शुक्ला अपनी कार्यशैली से लोगों में खासी लोकप्रिय हैं।

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