क्या दिल्ली में कांग्रेस के पास नहीं है कोई चेहरा? 20 साल में सबसे मुश्किल चुनाव लड़ने जा रही पार्टी

नई दिल्ली: अगले हफ्ते तक दिल्ली में किसी भी वक्त विधानसभा चुनाव की घोषणा हो सकती है। केंद्र शासित राज्य में सत्ता की देहरी तक पहुंचने के लिए मामला आम आदमी पार्टी(आप), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के बीच  त्रिकोणीय होने के आसार हैं।

Asianet News Hindi | Published : Jan 2, 2020 8:59 AM IST / Updated: Jan 06 2020, 04:30 PM IST
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क्या दिल्ली में कांग्रेस के पास नहीं है कोई चेहरा? 20 साल में सबसे मुश्किल चुनाव लड़ने जा रही पार्टी
अभी चुनाव आयोग ने चुनावों की घोषणा नहीं की है मगर उससे पहले दिल्ली में पार्टियों की तैयारी के आधार पर लोग यह भी मान रहे हैं कि यहां मामला सीधे-सीधे आप और बीजेपी के बीच ही रहने वाला है। दोनों के मुक़ाबले विधानसभा चुनाव के लिए राज्य में कांग्रेस की तैयारियां कमजोर मानी जा रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन के बाद पहली बार कांग्रेस बेहद कमजोर और सुस्त नजर आ रही है।
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पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद घटिया रहा था। जबकि हालिया लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राज्य की सात में से एक भी सीट नहीं जीत पाई मगर वोटों के लिहाज से वो चार से ज्यादा सीटों पर दूसरे नंबर पर थी। कांग्रेस को आप से ज्यादा वोट मिले थे। मगर विधानसभा के चुनाव लोकसभा से बिलकुल अलग माने जा रहे हैं। अभी से ये कहा जा रहा है कि कांग्रेस विधानसभा में आप और बीजेपी से पीछे हो सकती है। और इसकी वजह संगठन का सुस्त होना और तैयारियों की कमी बताई जा रही है।
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जहां आप की ओर से अरविंद केजरीवाल पार्टी का चेहरा हैं और लगातार आक्रामक मुहिम चलाए हुए हैं वहीं बीजेपी भी बेहद आक्रामक मूड में है और माना जा रहा है कि पार्टी जल्द ही CM पद के दावेदार का ऐलान कर सकती है। शीला दीक्षित के निधन के बाद दिल्ली में कांग्रेस के पास फिलहाल कोई पॉपुलर चेहरा नजर नहीं आता।
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हालांकि कांग्रेस में कई कद्दावर चेहरे जरूर हैं। इनमें जेपी अग्रवाल, सुभाष चोपड़ा, कपिल सिब्बल, अजय माकन और हाल ही में आप छोड़कर पार्टी में आईं तेज तर्रार अल्का लांबा तक के नाम शामिल हैं। मगर इनमें से एक भी नाम ऐसा नहीं है जो शीला दीक्षित के मुकाबले का हो। केजरीवाल (आप), मनोज तिवारी, विजेंद्र गुप्ता, विजय गोयल (सभी बीजेपी) के मुकाबले कांग्रेस के पास कोई दिग्गज चेहरा नजर नहीं आता।
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विधानसभा चुनाव में शीला दीक्षित की हार के बाद पार्टी की आंतरिक राजनीति में टकराव की स्थिति भी नजर आई थी। 2013 के बाद दिल्ली में कांग्रेस की हालत लगातार खराब होती गई। लेकिन 2019 में दिल्ली की ज़िम्मेदारी एक बार फिर शीला दीक्षित को दी गई। शील के नेतृत्व में पार्टी को कोई सीट तो नहीं मिली मगर लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी नंबर दो की हैसियत पाने में कामयाब रही। अब देखना है कि पिछले डेढ़ दशक में पहली बार शीला दीक्षित के बगैर चुनाव लड़ने जा रही कांग्रेस क्या राज्य में अपनी खोई हैसियत पार कर लेती है। देखना यह भी है कि दिल्ली कांग्रेस का कौन नेता शीला की जगह लेता है।
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