ऐसी होती दोस्ती: दोस्त की मौत हुई तो परिवार के लिए फ्रेंड बने देवदूत, लाखों का घर बनवाया..हर माह देते 15 हजार

जमशेदपुर (झारखंड). दुनिया का सबसे अनमोल रिश्ता दोस्ती का होता है, जो खून का ना होकर भी खून से गहरा होता है। वक्त आने पर वह अपने यार के लिए जान तक दांव पर लगा देते हैं। झारखंड के जमशेदपुर में दोस्तों ने ऐसी मिसाल पेश की है, जिनकी जिंदादिली को हर कोई सलाम कर रहा है। यहां जब एक बचपन के दोस्त की सड़के हादसे में मौत हुई तो उसके दोस्तों की टीम परिवार का सहारा बन गई। वह आपस में कलेक्शन करके हर महीने 15 हजार रुपए दे रहे हैं, ताकि उनका गुजर-बसर हो सके। पढ़िए जब देवदूत बनकर आ गए दोस्त, हर कोई हुआ भावुक...

Asianet News Hindi | Published : Aug 1, 2021 9:01 AM IST / Updated: Aug 02 2021, 01:16 AM IST
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ऐसी होती दोस्ती: दोस्त की मौत हुई तो परिवार के लिए फ्रेंड बने देवदूत, लाखों का घर बनवाया..हर माह देते 15 हजार

पीड़ित परिवार के लिए सहारा बने दोस्त
दरअसल, यह दोस्तों की यह अनोखी कहानी जमशेदपुर के गोड्डा की है, जहां वीरेंद्र कुमार (29) अपनी बूढ़ी मां , पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था। वह फोटो- वीडियो ग्राफी करके परिवार का पेट पालता था। जितना ख्याल वह अपने परिवार का रखता था, उसी तरह वह अपने दोस्तों के लिए हर मुश्किल घड़ी में खड़ा रहता था। लेकिन 22 दिसंबर 2019 को एक हाइवा के टक्कर लगने के बाद उसकी मौत हो गई।
 

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जब देवदूत बनकर आ गए दोस्त, हर कोई हुआ भावुक
वीरेंद्र अकेला ही घर में कमाने वाला था। ऐसे में उसकी अचानक मौत होने के बाद परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। बूढ़ी मां, पत्नी और दो मासूम बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल था। समस्या यह थी की अब इनका पेट कौन पालेगा। जब बचपन के दोस्तों की वीरेंद्र की मौत की खबर लगी तो 40 दोस्त देवदूत जमा होकर उसके घर पहुंच गए। मां को समझाने लगे कि आप चिंता नहीं करे आपका एक बेटा गया है, लेकिन अभी 40 जिंदा हैं। 

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 7 लाख रुपए जमा करके बनवाया घर 
वीरेंद्र के सभी दोस्तों ने मिलकर फैसला लिया कि अब वह ही उसके परिवार का सहारा बनेंगे। पहले तो सभी ने कलेक्शन करके पीड़ित परिवार के लिए 7 लाख रुपए खर्च कर घर बनवाया। इतना ही नहीं उसका गृह प्रवेश भी सभी ने मिलकर एक बेटे की तरह विधि-विधान से करवाया। परिवार के सभी नाते-रिश्तेदारों को इस गृह प्रवेश में बुलाया गया।

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खर्चे के लिए हर माह देते हैं 15 हजार 
वीरेंद्र के परिवार की जिस तरह से उसके दोस्त मदद करते हां उसको देखकर ऐसा नहीं लगता है कि यह कोई दूसरे हैं। अपने परिवार की तरह ही वह हर सुख-दुख की घड़ी में मौजूद रहते हैं। परिवार और रिश्तेादरों को देखकर ऐसा नहीं लगा कि आज वीरेंद्र जिंदा नहीं है। हर कोई उसके दोस्तों की इस जिंदादिल को सलाम कर रहा था। अब सभी दोस्त इस परिवार  के गुजर-बसर के लिए हर महीना 15 हजार रुपए देते हैं।

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