मरते क्या न करते: पोटली में भरे इंसान और कंधे पर उठाकर ऐसे लगा दी दौड़

धार, मध्य प्रदेश. ये तस्वीरें भारत के गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत दिखाती हैं। देश के ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की बड़ी बुरी हालत है। मरीजों और गर्भवतियों को ऐसे पोटली में लिटाकर लकड़ी से बांधकर अस्पताल तक ले जाना पड़ता है। पहली तस्वीर(नदी वाली) धार जिले से करीब 35 किमी दूर भूरियाकुंड गांव की है। जबकि दूसरी तस्वीर हरियाणा के रोहतक की। करीब हजार की आबादी वाले भूरियाकुंड गांव में सड़क नहीं बनी है। ऐसी हालत में जब कोई बीमार होता है या किसी गर्भवती को प्रसव पीड़ा होती है, तो उसे झोली में लिटाकर ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्तों से होकर नदी पार करके अमझेरा या केश्वी अस्पताल तक पैदल ले जाना पड़ता है। जानिए स्वास्थ्य सेवाओं की हालत दिखातीं तस्वीरें...

Asianet News Hindi | Published : Aug 27, 2020 3:50 AM IST / Updated: Aug 27 2020, 09:23 AM IST

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मरते क्या न करते: पोटली में भरे इंसान और कंधे पर उठाकर ऐसे लगा दी दौड़

पहले जानें धार में क्या हुआ...
भूरियाकुंड के रहने वाले 49 वर्षीय पूनिया को कई दिनों से बुखार था। जब तबीयत ज्यादा बिगड़ी, तो परिजन उन्हें गठरी में लेटाकर 14 किमी दूर केश्वी गांव के एक निजी क्लीनिक तक लेकर पहुंचे। गर्मियों में यह नदी सूखी होती है, इसलिए लोगों को परेशानी नहीं होती, लेकिन बारिश में यहां से निकलना जोखिमपूर्ण होता है। अब कलेक्टर आलोक कुमार कहते हैं कि जल्द ही गांव में पुलिया का निर्माण कराया जाएगा।

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बड़वानी, मध्य प्रदेश. यह मामला बड़वानी जिले के जनपद धनोरा से 35 किमी दूर चाचरिया पंचायत के नवाड़ फलिया गांव में देखने को मिला। 20 की गायत्री दिव्यांग हैं। उसे लेबर पेन होने पर परिजन इस तरह पोटली में बैठाकर अस्पताल पहुंचे। करीब 3 किमी इस तरह उन्हें पैदल जाना पड़ा।

आगे पढ़िए...बहू को दर्द से तड़पता देखकर सास के निकल पड़े आंसू, फिर 5 लोग गर्भवती को ऐसे लटकाकर अस्पताल की ओर भागे

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रोहतक, हरियाणा. यह दृश्य पिछले दिनों कनीना कस्बे में देखने को मिला था। यहां के वार्ड-8 में रहने वालीं सुषमा को प्रसव पीड़ा होने पर उनकी सास ने एम्बुलेंस को कॉल किया। सुषमा के पति कृष्ण कुमार ने बताया था कि जब 102 पर एम्बुलेंस के लिए कॉल नहीं उठाया गया, तो उनकी मां लक्ष्मी देवी पैदल ही सुषमा को लेकर अस्पताल के लिए निकल पड़ीं। 

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यह मामला पिछले महीने छत्तीसगढ़ के बीजापुर में सामने आया था। बीजापुर जिले के मिनकापल्ली निवासी हरीश यालम की पत्नी लक्ष्मी को प्रसव पीड़ा होने पर 4 लोग बर्तन में बैठाकर चिंतावागु नदी पार कराकर पहले गोरला लाए थे। वहां से भोपालपट्टनम हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। लेकिन समय पर उपचार नहीं मिलने पर बच्चे ने गर्भ में ही दम तोड़ दिया।

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गढ़चिरौली, महाराष्ट्र. यह मामला भामरागढ़ तहसील में पिछले दिनों सामने आया था। इस महिला का नाम है रोशनी। इसके गांव में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। जब इसे प्रसव पीड़ा हुई, तो 6 जुलाई को यह एक आशाकर्मी के साथ 28 किमी दूर लाहिरी हॉस्पिटल पहुंची। वहां से उसे हेमलकसा स्थित लोक बिरादरी अस्पताल पहुंचा गया। यहां उसने एक बच्ची को जन्म दिया। यहां से भी यह महिला अपनी बच्ची को गोद में लेकर पैदल ही गांव लौटी।

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कोंडागांव, छत्तीसगढ़. यह तस्वीर पिछले दिनों सामने आई थी। बल्लियों के सहारे बनाई गई पालकी पर लटकाकर इस गर्भवती को किमी दूर खड़ी एम्बुलेंस तक लाया गया। क्योंकि गांव तक रास्ता इतना ऊबड़-खाबड़ था कि एम्बुलेंस वहां तक नहीं पहुंच सकती थी। यह अच्छी बात रही कि एम्बुलेंस का ड्राइवर और नर्स अच्छे लोग निकले और उन्होंने गर्भवती को लाने के लिए यह रास्ता निकाला। मामला कोंडागांव माकड़ी विकासखंड के मोहन बेडा गांव का है।

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यह मामला छत्तीसगढ़ के कांकेर में पिछले दिनों सामने आया था। 12 साल की यह लड़की मानकी कांकेर जिले की ग्राम पंचायत कंदाड़ी के आश्रित गांव आलदंड की रहने वाली है। उसके गांव में कोई स्वास्थ्य सेवा नहीं है। लिहाजा, मजबूरी में मानकी को परिजन उसे कंधों पर टांगकर इलाज के लिए लेकर गए। करीब 5 किमी उसे ऐसे ही लटकाकर नदी तक ले गए। वहां, उन्हें घंटेभर तक नाव का इंतजार करना पड़ा। नदी पार करके 6 किमी दूर छोटेबेठिया उपस्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। उनके गांव से उपस्वास्थ्य केंद्र की दूरी करीब 14 किमी है। इसके बाद उसे इलाज मिल सका।

आगे पढ़िए...खटिया को 'एम्बुलेंस' बनाया

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यह शर्मनाक तस्वीर झारखंड के पश्चिम सिंहभूम से सामने आई थी। यह मामला बिशुनपुर प्रखंड के गढ़ा हाडुप गांव का है। यहां रहने वाले बलदेव ब्रिजिया के पत्नी ललिता को प्रसव पीड़ा हुई। उस हॉस्पिटल तक ले जाने का जब कोई दूसरा साधन नहीं दिखा, तो खटिया को लोगों ने 'एम्बुलेंस' बना लिया। 

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