प्रोफेसर की दर्दभरी कहानी: लड़कियों जैसी आवाज, मां की साड़ी पहन नाचता था, सब छक्का कहकर चिढ़ाते थे

मुंबई. मैं हमेशा मन से खुद को रानी मानता था। जब मैं छोटा था तो इंतजार करता था कि कब मेरे मम्मी-पापा घर से बाहर जाएं ताकि मैं अपने असली रूप में घर में रह सकूं। जिन हालातों में  मेरा दम घुटता है उनसे मुझे आजादी मिले। तब मुझे अपनी पहचान को लेकर कोई समझ नहीं थी लेकिन इतना पता था कि मैं मर्द नहीं हूं बस मर्द जैसा पैदा हुआ हूं।

Asianet News Hindi | Published : Dec 2, 2019 3:32 PM IST / Updated: Dec 03 2019, 04:29 PM IST

16
प्रोफेसर की दर्दभरी कहानी: लड़कियों जैसी आवाज, मां की साड़ी पहन नाचता था, सब छक्का कहकर चिढ़ाते थे
ये कहानी एलजीबीटी समुदाय के एक फैशन डिजाइन प्रोफेसर की है। लड़के के रूप में पैदा होने के नाते उन पर मां-बाप की जिम्मेदारियां थीं लेकिन आत्मा से वह एक औरत के रूप में पैदा हुए थे जो सजना संवरना चाहती थी, पैरों में घुंघरू बांध नाचना चाहती थी। समाज में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग मापदंड हैं। इन पर न चलने वालों को गड़बड़ी और मजाक वाले ताने सुनने पड़ते हैं। कुछ लोग तो अपने मन की बातों को दबा लेते हैं पर कुछ आजादी से अपनी ज़िन्दगी अपने शर्तों पर जीते हैं। ऐसे ही एक प्रोफ़ेसर ने अपनी कहानी दुनिया के सामने रखी है।
26
वह बताते हैं कि, घर में अकेला होने पर बचपन में मैं मम्मी की साड़ी और ज्वैलरी पहनता था फिर लाउड म्यूजिक बजाकर डांस करता था। ये सब मुझे घर के अंदर ही करना होता था क्योंकि बाहर लोग मुझपर सवाल उठा सकते थे कि मैं लड़का होकर लड़कियों जैसी हरकतें क्यों कर रहा हूं? मुझे प्रताड़ित होने का डर था। इसलिए छुपकर लड़कियों जैसे कपड़े पहनता था। पर जब मैं बड़ा हुआ तो मेरे लिए एक और मुश्किल पैदा हो गई, जवान होने पर लड़कों की आवाज भारी हो जाती है लेकिन मेरी आवाज हल्की और मीठी थी। मुझे अपनी आवाज को लेकर लोगों के तानों का सामना करना पड़ा। जिन बातों को मैं दुनिया के डर से हमेशा छिपाए रखना चाहता था वो मेरी आवाज लड़कियों जैसे होने की वजह से बाहर आ रही थीं। मुझे आज भी याद है जब सातवीं क्लास में मुझे लड़कों ने छक्का-छक्का कहकर चिढ़ाया था, मुझे नहीं समझ आया कैसे रिएक्ट करूं।
36
रिश्तेदार हमेशा मेरी हरकतों को लेकर ताने कसते थे कि मैं लड़कियों जैसा हूं, आवाज भी, चाल-ढाल भी। सबके सामने मेरा मजाक उड़ाया जाता था। लोग सोचते थे मेर साथ कोई गड़बड़ी है तो वो मुझसे बात नहीं करते थे। मम्मी पापा भी मेरी साइड नहीं लेते थे उन्हें मेरी कोई परवाह नहीं थी। अपने ही घर मेरा में मेरा दम घुटने लगा था, मैं यहां से भाग जाना चाहता था।
46
फिर मैं कॉलेज गया तो बहुत सी चीजें पता चलीं। मुझे एलजीबीटीआईक्यू प्लस ग्रुप के बारे में मालूम हुआ। तब मुझे पता चला कि लड़कियों की तरफ मेरा कोई झुकाव नहीं है बल्कि मैं खुद एक क्वीर महिला हूं।  सबसे पहले मैंने अपने दोस्तों को अपना सच बता दिया उन्होंने कोई मजाक नहीं उड़ाया। बल्कि सेलेब्रेट किया कि मैंने खुद को एक्सेप्ट कर लिया है। पर मेरे मां-बाप को जब पता चला तो वो सन्न रह गए उन्होंने मुझे थेरेपी लेने और साइक्रेटिस्ट के पास जाने को कहा। उन्हें लगा मुझे लड़की बनने का भूत सवार हो गया है। पर 25 साल लड़ने के बाद जब मुझे लगा कि जीत मेरी हुई, मैंने सोच लिया नहीं जो मैं हूं वहीं सबके सामने रहूंगा, अपनी पहचान नहीं छिपाउंगा। मैंने डायरी में लिखी अपनी चीजें खरीदना शुरू किया और फैशन डिजाइनिंग शुरू कर दी।
56
फिर एक प्रोफेसर के तौर पर मैंने कई सालों तक बच्चों को फैशन डिजाइनिंग पढ़ाया और आज मैं अपनी लाइफ में सक्सेजफुल हूं। बच्चे मेरी रेस्पेक्ट करते हैं हालांकि वो मेरी पहचान और पसंद पर कोई बात नहीं करते ये भी अच्छा ही है। मेरा मानना है कि, दूसरे की पसंद की जिंदगी जीना आपकी लाइफ नहीं है, जो आप हैं जैसे हैं वैसे ही रहिए। समाज की रूढ़िवादी सोच और दायरों से परे वो करें जिसमें आपको घुटन नहीं आजादी मिलती है। थर्ड जेंडर समुदाय के लोग भी इंसान हैं और उन्हें भी खुशी और दर्द महसूस होता है।
66
देश में एलजीबीटी समुदाय को थर्ड जेंडर की कानूनी मान्‍यता तो मिल गई है लेकिन समलैंगिकों को की लड़ाई बहुत लंबी है। कानून बनने के बाद भी वह समाज में अपनी पहचान और जिंदगी को लेकर घुटन, ताने, प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के शिकार होते हैं। यहां तक कि मां-बाप शर्म की वजह से समलैंगिक बच्चों को छोड़ देते हैं।
Share this Photo Gallery
click me!
Recommended Photos