पहले किया गैंगरेप, फिर आरा मशीन से काट कर दिए थे दो टुकड़े.. आज भी हरे हैं कश्मीरी पंड़ितों के जख्म

श्रीनगर. आज कश्मीर से पंडितों के पलायन को तीन साल हो चुके हैं। आज का दिन कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग प्रलय के तौर पर देखते हैं। वे उन खौफनाक पलों को यादकर आज भी सिहर जाते हैं। 1990 में आज के दिन ही कश्मीरी पंडित समुदाय के लोगों कश्मीर घाटी से पलायन करने के लिए मजबूर किया गया था। मस्जिदों से उनके खिलाफ फतवे जारी किए गए थे।

Asianet News Hindi | Published : Jan 19, 2020 8:37 AM IST / Updated: Jun 10 2020, 11:33 AM IST
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पहले किया गैंगरेप, फिर आरा मशीन से काट कर दिए थे दो टुकड़े.. आज भी हरे हैं कश्मीरी पंड़ितों के जख्म
महिलाओं से सामुहिक दुष्कर्म के बाद उनकी हत्या कर दी गई थी। इसके बाद उन्हें घाटी से भागकर देश के अन्य भागों में आना पड़ा था। जहां वे आज भी अपने देश में शरणार्थियों के तौर पर रह रहे हैं। वे बताते हैं कि उनके पास उस वक्त सिर्फ तीन विकल्प थे, इस्लाम कबूल करो, मारे जाओ या कश्मीर छोड़कर चले जाओ। इस बात का जिक्र कई बार अनुपम खेर ने भी किया है।
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कश्मीर घाटी में पंडितों के साथ जुर्म की हर हद को पार कर दिया था। इसका खुलासा कई किताबों और लेखों में कश्मीरी पंडितों ने खुद किया है। हाल ही में कश्मीरी कॉलमिस्ट, राजनीतिक टिप्पणीकार सुनंदा वशिष्ठ ने अमेरिका संसद में भी इसका जिक्र किया था।
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सुनंदा ने कश्मीर पर पाकिस्तान के झूठ की पोल खोलते हुए बताया था कि कश्मीरियों ने उसी तरह का आतंक और अत्याचार झेला, जैसा इस्लामिक स्टेट सीरिया में अंजाम दिया गया।
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सुनंदा वशिष्ठ ने बताया था, ''मैं कश्मीर की अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से हूं। मैं यहां इसलिए बोल रही हूं क्यों कि मैं जिंदा हूं। मैं उस गिरिजा टिक्कू की बात कर रही हूं। वह सीधी साधी लैब असिस्टेंट थी। वह उतनी खुशनसीब नहीं थी, जितनी मैं हूं। उसका अपहरण हुआ, गैंगरेप हुआ। उसे जिंदा आरी मशीन में दो टुकड़ों में काट दिया गया। उसका गुनाह सिर्फ उसका धर्म था।
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उन्होंने उन जुर्मों का जिक्र करते हुए बताया था, वहां एक नौजवान कश्मीरी हिंदू इंजीनियर को आतंकवाद ने सिर्फ धर्म को लेकर मार दिया। जब आतंकी उसे आतंकी मारने आए तो वह चावल के कंटेनर में छिप गए। वह भी जिंदा होता, लेकिन उसके पड़ोसियों ने उसकी पहचान बता दी।
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आतंकियों ने कंटेनर पर गोलियां बरसाईं। वह नौजवान मारा गया। उसकी पत्नी और परिवार वालों को उसी खून से सने चावल को खाने के लिए मजबूर किया गया। उसका नाम बीके गंजू था। आज मैं उसकी आवाज हूं।''
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कौन हैं सुनंदा वशिष्ठ: सुनंदा वशिष्ठ एक लेखिका, राजनीतिक टिप्पणीकार हैं। वे पीड़ित कश्मीरी हिंदू हैं। अमेरिका में रहती हैं। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान दो पैनल थे। पहले पैनल ने अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की आयुक्त अरुणिमा भार्गव थीं।
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भार्गव ने कश्मीर में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर बात रखी। वहीं दूसरे पैनल में सुनंदा समेत 6 लोग थे।
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फोटो- Getty
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