मंदिर के लिए विवादित जगह पर इस दलित ने रखी थी पहली ईंट, नारा दिया था, 'राम नहीं तो रोटी नहीं'
नई दिल्ली. देश के महत्वपूर्ण मामलों में से एक अयोध्या में राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला आ चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर निर्माण को लेकर केंद्र सरकार को आदेश दे दिए हैं। मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की बेंच राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद में 40 दिन सुनवाई के विवाद के निपटारे के बाद फैसला दे चुकी है। अब हम आपको बताते हैं कि किस तरह एक दलित ने राम मंदिर की नींव रखी थी। इसके साथ ही उन्होंने राम नहीं तो रोटी नहीं का नारा देकर राम भक्तों में जोश भर दिया था।
Asianet News Hindi | Published : Nov 9, 2019 8:11 AM IST / Updated: Nov 09 2019, 05:49 PM IST
अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास की नींव विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन जॉइंट सेक्रटरी कामेश्वर चौपाल ने रखी थी। कामेश्वर बिहार के एक दलित समुदाय से आते हैं। जब उन्होंने राम मंदिर के लिए पहली ईंट रखी तो इसके साथ ही उन्होंने राम नहीं तो रोटी नहीं का भी नारा दिया था।
1989 में तब देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार की थी। उनकी परमिशन के बाद ही करीब 30 साल पहले अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर की नींव पड़ी थी। जब अयोध्या में राममंदिर के बनाने के लिए संघर्ष चल रहा था तब विश्व हिन्दू परिषद के आहवान पर चौपाल भी ईंट लेकर अयोध्या पहुंचे गए थे। खबरों के मुताबिक शिलान्यास के लिए देश के तकरीबन दो लाख गांवों से ईंटें लाई गईं थीं। हालांकि दलित के हाथों मंदिर के शिलान्यास की पीछे भी एक कहानी छिपी है।
बिहार में सुपौल के रहने वाले चौपाल ने खुद इस बारे में बताया था। वो थे कि संतों द्वारा एक दलित व्यक्ति से मंदिर का शिलान्यास करवाना वैसा ही था जैसे राम जी द्वारा शबरी को बेर खिलाना। यह ऐतिहासिक पल दलितों के लिए गर्व का विषय है। समाज को दलितों को अछूत माना जाता है पर भव्य राम मंदिर की नींव एक दलित के हाथों रखवाई गई थी। इससे सामाजिक सोहार्द के नजरिए से किया गया फैसला बताते हैं।
आज चौपाल करीब 65 साल के हो चुके हैं। वह आज भी 30 साल पहले के उस पल को याद करते हैं। राम मंदिर की पहली ईंट रखने उनके लिए हमेशा गर्व का पल रहा है। वो कोर्ट के फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। गौरतलब है कि राम मंदिर की नींव के लिए पहली ईंट रखने के बाद चौपाल इतने मशहूर हो गए कि वे दो बार बिहार विधान परिषद के सदस्य भी बने।
हालांकि अब चौपाल का अब कहना है कि मंदिर की मांग ऐसे समय में सही नहीं है जब देश में बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने की जरूरत है। चौपाल का नजरिया अब मंदिर-मस्जिद नहीं देश की तरक्की पर फोकस करने वाला हो गया है।