चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत ये 5 जज सुनाएंगे देश के सबसे पुराने विवाद पर फैसला

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर आज फैसला सुनाएगा। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने इस मामले में 40 दिन में 172 घंटे तक की सुनवाई की। बेंच में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर भी शामिल हैं। 

Prabhanjan bhadauriya | Published : Nov 9, 2019 2:39 AM IST

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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत ये 5 जज सुनाएंगे देश के सबसे पुराने विवाद पर फैसला
जस्टिस रंजन गोगोई 03 अक्टूबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के 46 वें चीफ जस्टिस बने थे। वे पूर्वोत्तर से पहले भारतीय चीफ जस्टिस हैं। गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को हुआ है। वह 64 साल के हैं। करियर की बात करें तो साल 1978 में इन्होंने बार काउंसिल की सदस्यता ग्रहण की थी। गोगोई ने अपना ज्यादातर वक्त गुवाहाटी हाईकोर्ट में दिया। वह 28 फरवरी 2001 को गुवाहाटी हाईकोर्ट में स्थायी जज के तौर पर नियुक्त हुए थे। 9 सितंबर 2010 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में उनका ट्रांसफर हो गया था। एक साल बाद ही 12 फरवरी 2011 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया। 23 अप्रैल 2012 को गोगोई को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति मिली। 17 नवंबर 2019 को वे सेवानिवृत्त हों जाएंगे।
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जस्टिस बोबड़े चीफ जस्टिस गोगोई के बाद दूसरे सबसे सीनियर जज हैं। वे मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी रह चुके हैं। जस्टिस बोबड़े का जन्म 24 अप्रैल, 1956 को नागपुर में हुआ। वकालत उन्हें विरासत में मिली है। उनके दादा एक वकील थे, उनके पिता अरविंद बोबड़े महाराष्ट्र में जनरल एडवोकेट रहे और उनके बड़े भाई विनोद अरविंद बोबड़े भी सुप्रीम कोर्ट में सीनियर वकील रहे हैं।  जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े ने नागपुर विश्वविद्यालय से बी.ए और एलएलबी किया था। वह 1978 में महाराष्ट्र बार काउंसिल के सदस्य बने थे। वे 21 साल तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ और सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते रहे। साल 1998 में उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता का पद संभाला। 29 मार्च 2000 में जस्टिस बोबड़े को बॉम्बे हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज नियुक्त किया गया। फिर 16 अक्टूबर 2012 को वे मध्य हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त किए गए। इसके बाद उन्होंने 12 अप्रैल 2013 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस का पद संभाला। दो साल बाद 23 अप्रैल 2021 को वह रिटायर होंगे।
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तीसरे मुख्य जज के रूप में 5 जुलाई 1956 को जौनपुर में जन्मे जस्टिस अशोक भूषण का नाम है। वह केरल हाई कोर्ट के 31वें चीफ जस्टिस रहे हैं। उन्होंने 1975 में बैचलर ऑफ आर्ट्स से ग्रेजुएशन किया था। इसके बाद वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1979 में लॉ की पढ़ाई करने चले गए। 6 अप्रैल 1979 को उन्होंने बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के साथ दाखिला लिया और वकालत से अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में सिविल और मूल पक्ष में कई सालों तक वकालत का अभ्यास किया। वकील के रूप में अभ्यास करते हुए, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे विभिन्न संस्थानों के लिए स्थायी वकील के रूप में भी काम किया। 24 अप्रैल 2001 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश के रूप में उच्चतर न्यायिक सेवा समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया। इसके अलावा कई अन्य समितियों का नेतृत्व भी किया। उन्हें 10 जुलाई 2014 को केरल के हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। 1 अगस्त 2014 को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला और 26 मार्च 2015 को चीफ जस्टिस के रूप में कार्यभार संभाला। 13 मई 2016 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
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अयोध्या भूमि विवाद में चौथे मुख्य जज के तौर पर जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ का नाम शामिल है। उनका जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ है। वह नई दिल्ली के सेंट स्टेफंस कॉलेज से बी.ए. दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी के छात्र रहे हैं। विदेश से उन्होंने हार्वर्ड लॉ स्कूल, अमेरिका से जूडिशियल साइंसेंज में एलएलएम और डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ दुनिया भर के कई विश्वविद्यालयों में लेक्चरर, विजिटिंड प्रोफेसर रह चुके हैं। उन्होंने साल 1998 में बम्बई हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता के तौर पर वकालत की। 1998 में अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल का पद मिला। 29 मार्च 2000 को वह बंबई हाईकोर्ट में जज नियुक्त किए गए। 31 अक्टूबर 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश नियुक्त के पद पर नियुक्त हुए। 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने जज का पद संभाला। वे 10 नवंबर 2024 को वह सेवानिवृत्ति होंगे।
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अयोध्या मामले के 5 वें जज न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर हैं, उनके पिता का नाम फकीर साहेब है, वह कर्नाटक से हैं। उनका जन्म 5 जनवरी 1958 में  हुआ है। उन्होंने बी.कॉम की डिग्री पूरी करने के बाद एसडीएम लॉ कॉलेज से वकालत की थी। मंगलुरु से उन्होंने लॉ की डिग्री हासिल की थी। 1983 में एक वकील के रूप में उन्होंने दाखिला लिया और बेंगलुरु में कर्नाटक उच्च न्यायालय में कई साल अभ्यास किया। मई 2003 में, उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट के एक अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में उन्होंने यहीं का स्थायी जस्टिस का पद भार संभाला कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हुए फरवरी 2017 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था। 15 मई 2023 को सेवानिवृत्त होंगे।
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