बहना ने भाई की कलाई पर 'बांस' बांधा है...यहां की महिलाओं को आया unique idea. सामने आईं ये राखियां

अहमदाबाद. जिस तरह गणेशजी नवाचार(innovation) के लिए जाने जाते हैं, वैसे ही रक्षाबंधन पर भाइयों की कलाइयों पर बांधी जाने वाली राखियों पर भी लगातार प्रयोग में होते रहे हैं। इस बार 22 अगस्त को रक्षाबंधन आ रहा है। मार्केट रंग-बिरंग और डिजाइनर राखियों से सज गया है। लेकिन अब मामला गणेश प्रतिमाओं की तर्ज पर राखियों में भी ईकोफ्रेंडली मटैरियल के इस्तेमाल का है। इसी दिशा में गुजरात के डांग जिले की आदिवासी महिलाएं पिछले कई सालों से लगातार प्रयोग कर रही हैं। इस बार भी बांस से बनीं उनकी खूबसूरत राखियां डिमांड में हैं। ये राखियां जितनी प्यारी हैं, उतनी ही ईकोफ्रेंडली। यानी चीन के माल की तरह पर्यावरण को 'नुकसान' नहीं पहुंचातीं।

Asianet News Hindi | Published : Aug 12, 2021 4:02 AM IST / Updated: Aug 12 2021, 10:11 AM IST

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बहना ने भाई की कलाई पर 'बांस' बांधा है...यहां की महिलाओं को आया unique idea. सामने आईं ये राखियां

डांग जिले की आदिवासी महिलाएं हमेशा से कुछ कुछ नए प्रयोग करती रहती हैं। इस बार उन्होंने बांस से आकर्षक राखियां बनाई हैं। पिछले सालों की तुलना में ये इस बार ये राखियां और अधिक खूबसूरत और मजबूत हैं। यानी अगर आप चाहते हैं कि पर्यावरण की खूबसूरती बनी रहे, तो इन ईकोफ्रेंडली राखियों को प्रमोट कर सकते हैं। इन्हें आप शान से पहनकर लोगों को दिखा सकते हैं।

(पिछले कई सालों से बांस की ऐसी खूबसूरत राखियां बनाई जा रही हैं)

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आदिवासी महिलाओं को बांस से राखियां बनाने की ट्रेनिंग देने वाले अंतिक मलिक ने न्यूज एजेंसी ANI को बताया कि वे पिछले एक साल से 'एसबीआई यूथ फॉर इंडिया स्कॉलरशिप' के साथ काम कर रहे हैं। इस बार वे डांग जिले में एक ट्रेनर के तौर पर आए हैं। महिलाओं को इस ट्रेनिंग का उद्देश्य ईकोफ्रेंडली राखियों के जरिये आत्मनिर्भर बनाना भी है।

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ट्रेनर अंतिक मलिक कहते हैं कि बांस से बनीं राखियां लोगों को काफी पसंद आ रही हैं। इस बार भी इनकी पूरे देश से डिमांड आ रही है। वे इनकी सप्लाई करने में लगे हैं। उन्होंने बताया कि ये राखियां कोतवालिया समुदाय की पारंपरिक शैली पर तैयार की गई हैं। आदिवासी कला लोगों को हमेशा से आकर्षित करती आई है।
 

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ट्रेनर अंतिक मलिक बताते हैं कि इन राखियां की बाजिब कीमत रखी गई है। यानी इन्हें हर आर्थिक वर्ग के लोग खरीद सकते हैं। इनकी कीमत 50 रुपये से लेकर 200 रुपये तक रखी गई है। मलिक कहते हैं कि उनका मकसद ईकोफ्रेंडली तरीके से त्योहारों को मनाने का है।
 

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बता दें कि डांग जिला गुजरात के पश्चिमी घाट की उत्तरी दिशा में है। यह एक पर्वतीय संकरा क्षेत्र है। यहां रागी और धान उगाया जाता है। यहां बांस बड़ी संख्या में उगता है। इस बांस का रोजगार में कैसे उपयोग किया जाए, खासकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने...ये राखियां इसी का सशक्त उदाहरण हैं।

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