अहमदाबाद. जिस तरह गणेशजी नवाचार(innovation) के लिए जाने जाते हैं, वैसे ही रक्षाबंधन पर भाइयों की कलाइयों पर बांधी जाने वाली राखियों पर भी लगातार प्रयोग में होते रहे हैं। इस बार 22 अगस्त को रक्षाबंधन आ रहा है। मार्केट रंग-बिरंग और डिजाइनर राखियों से सज गया है। लेकिन अब मामला गणेश प्रतिमाओं की तर्ज पर राखियों में भी ईकोफ्रेंडली मटैरियल के इस्तेमाल का है। इसी दिशा में गुजरात के डांग जिले की आदिवासी महिलाएं पिछले कई सालों से लगातार प्रयोग कर रही हैं। इस बार भी बांस से बनीं उनकी खूबसूरत राखियां डिमांड में हैं। ये राखियां जितनी प्यारी हैं, उतनी ही ईकोफ्रेंडली। यानी चीन के माल की तरह पर्यावरण को 'नुकसान' नहीं पहुंचातीं।