Morbi Accident: 7 तरह के होते हैं ब्रिज, आखिर डिजाइन के हिसाब से कितनी होनी चाहिए हर एक पुल की सेफ डिस्टेंस

Morbi Bridge Accident: गुजरात के मोरबी में रविवार शाम को सस्पेंशन ब्रिज टूटने से अब तक 190 लोगों की मौत हो चुकी है। मरने वालो में महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे सबसे ज्यादा हैं। यह हादसा रविवार शाम 7 बजे उस वक्त हुआ, जब 765 फीट लंबे और साढ़े 4 फीट चौड़े केबल सस्पेंशन ब्रिज पर जरूरत से ज्यादा लोग पहुंच गए। चश्मदीदों के मुताबिक, हादसे के वक्त पुल पर करीब 400 लोग पहुंच गए थे, जिससे यह भार नहीं सह पाया और टूट गया। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या सस्पेंशन ब्रिज ज्यादा भार सहने लायक नहीं होते, या फिर इसमें लापरवाही की गई है। बता दें कि सामान्यत: पुल 7 तरह के होते हैं। हर एक पुल की भार सहने की क्षमता उसके डिजाइन पर निर्भर करती है। आइए जानते हैं अलग-अलग पुलों के बारे में। 

Ganesh Mishra | Published : Oct 31, 2022 8:00 AM IST / Updated: Nov 11 2022, 10:54 AM IST

17
Morbi Accident: 7 तरह के होते हैं ब्रिज, आखिर डिजाइन के हिसाब से कितनी होनी चाहिए हर एक पुल की सेफ डिस्टेंस

ये पुल का सबसे पुराना डिजाइन है। इस तरह के पुल में एक या उससे ज्यादा कई क्षैतिज (horizontal) बीम होते हैं, जो दोनों छोर के बीच की दूरी को कम करने का काम करते हैं। शुरुआत में इन्हें छोटी नदियों और नालों पर लकड़ी के लट्ठे छोड़कर बनाया जाता था। हालांकि, बाद में ये कंक्रीट और गर्डर की मदद से बनते हैं। 

27

इस तरह के डिजाइन में पुल पर आने वाले भार को बांटने के लिए इसके ऊपर त्रिकोण आकार के जाल का उपयोग किया जाता है। यह पुल बीम ब्रिज से ज्यादा मजबूत माना जाता है, क्योंकि ये उसकी तुलना में ज्यादा भार को संभाल सकता है। ट्रस पुल को बनाने में ज्यादातर स्टील का उपयोग होता है।

37

आर्क ब्रिज में आर्क का उपयोग होता है, जो पुल के नीचे लगाया जाता है। इस तरह का पुल ज्यादा ऊंचाई वाली जगहों पर बनाए जाते हैं। यह काफी मजबूत होते हैं। ये पुल रेल और सड़क परिवहन के लिए बहुत अच्छा होता है। आर्क पुल बनाने के लिए स्टील का इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि भारत में चिनाब नदी पर बना पुल एक आर्क ब्रिज ही है। 

47

ये भी आर्क ब्रिज की ही तरह होते हैं। इस तरह के पुल के किनारों पर आर्क डिजाइन बने होते हैं, जो पुल के खंभे से जुड़े होते हैं। ये डिजाइन पुल पर आने वाले भार को खंभों के जरिए नींव में ट्रांसफर कर देते हैं, जिससे पुल पर ज्यादा लोड नहीं आता। देखने में ये पुल बेहद खूबसूरत लगते हैं। हालांकि, इनका मेंटेनेंस ज्यादा है। 

57

भारत के कोलकाता में स्थित हावड़ा ब्रिज एक केंटीलिवर ब्रिज है। इस तरह के ब्रिज अपने भार को एक वर्टिकल ब्रेसिजिंग की जगह हॉरिजोंटल बीम के साथ डायग्नल ब्रेसिंग के माध्यम से संभालते हैं, जो केवल दो छोर पर टिका होता है। इस तरह के ब्रिज का उपयोग कम दूरी के लिए होता है। अगर ज्यादा दूरी के लिए बनाना है तो इसमें पिलर्स की संख्या बढ़ानी होगी। 

67

गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बना पुल सस्पेंशन ब्रिज था। इस तरह के ब्रिज में ट्रैफिक लोड को डिस्ट्रिब्यूट करने के लिए वर्टिकल सस्पेंडर्स से लगी फैलाने वाली रस्सियों या केबल्स का उपयोग किया जाता है। पहले इस तरह के पुल लकड़ी और बांस की डेकिंग के साथ बनाए जाते थे। हालांकि, अब इसमें स्टील की तार का उपयोग किया जाता है। इस पुल का ज्यादातर हिस्सा लचीला होता है जो हवा और भूकंप को आसानी से झेल लेता है। 

77

इस तरह के ब्रिज में केबल्स का उपयोग किया जाता है, जो सीधे एक या उससे ज्यादा वर्टिकल कॉलम या पिलर से जुड़े होते हैं। आज के समय में इस तरह के पुल काफी पॉपुलर हैं। ये कैंटिलीवर पुलों की तुलना कहीं ज्यादा मजबूत और लंबे होते हैं। इस तरह के पुल बनाने में स्टील, कंक्रीट, बॉक्स गर्डर्स और स्टील की रस्सी या केबल का इस्तेमाल किया जाता है। ये पुल रेल यातायात को छोड़ सभी तरह के भार को सहने के लिए बेहतर होते हैं। मुंबई का बांद्रा-वर्ली सी लिंक केबल स्टे ब्रिज है।

ये भी देखें : 

मौत का पुल: कहानी सैकड़ों जान लेने वाले मोरबी ब्रिज की, जानें सबसे पहले कब और किसने बनवाया था ये झूलता पुल

PHOTOS: दिवाली के 1 दिन बाद ही खुला था 765 फीट लंबा मोरबी ब्रिज, केबल टूटते ही नदी में समा गईं 400 जानें

7 सबसे बड़े पुल हादसे: कहीं ढह गया बनता हुआ ब्रिज तो कहीं पुल टूटने की वजह से नदी में समा गई पूरी ट्रेन

Share this Photo Gallery
click me!
Recommended Photos