चीन की खैर नहीं, भारत, अमेरिका और जापान ने मिलकर ड्रैगन को घेरा, बनाई रणनीति

नई दिल्ली. पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देश अफ्रीकी देशों में पकड़ बनाए रखने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। दरअसल, दोनों को अफ्रीकी देशों में भविष्य दिख रहा है। जिससे वो अपनी ताकत का परिचय दे सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि चीन ने यहां जाल बिछा रखा है। भारत, अमेरिका और जापान रणनीति के तहत मिलकर इन देशों में ड्रेगन का रास्ता रोकने में जुटे हैं। कोरोना से जूझते अफ्रीकी देशों की मदद के बहाने चीन ने 50 देशों में जरूरी वस्तुओं के साथ चिकित्सा क्षेत्रों के जानकारों को लगाया है। भारत भी 32 अफ्रीकी देशों में मेडिकल उपकरण और दवा आपूर्ति के साथ मैदान में है। दोनों मुल्क महामारी के बाद की नींव तैयार कर रहे हैं।
 

Asianet News Hindi | Published : Jul 12, 2020 7:22 AM IST
17
चीन की खैर नहीं, भारत, अमेरिका और जापान ने मिलकर ड्रैगन को घेरा, बनाई रणनीति

हालांकि, रिपोर्ट्स में विश्लेषकों के अनुसार कहा जा रहा है कि आपाधापी की जरूरत नहीं है, क्योंकि अफ्रीका में काम या मदद के लिए दोनों देशों के पास बराबर मौका है, लेकिन इसकी रणनीति क्या होती है ये मायने रखती है। हालांकि, भारत जिस रणनीति से काम कर रहा है, उससे स्पष्ट है कि वो आने वाले समय में अफ्रीकी देशों में अधिक प्रभावशाली होगा। 

27

रिपोर्ट्स में चाइनीज अकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के सीनियर रिसर्च फेलो झांग यॉनपेंग के अनुसार कहा जा रहा है कि अफ्रीका में भारत कोरोना के बहाने उत्पादों की बिक्री कर रहा है। भारत को बखूबी पता है कि उनकी अर्थव्यवस्था तेजी से मजबूत हो रही है। एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (एएजीसी) का सदस्य होने से उसे अफ्रीकी देशों में अपनी रुचि का पता है। अफ्रीका में मूलभूत सुविधाएं देकर खुद को मजबूत कर रहा है, जो वक्त की जरूरत है।

37

एएजीसी में भारत, जापान के साथ कुछ अफ्रीकी देश हैं। इनका लक्ष्य अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य, फॉर्मा, कृषि और आपदा प्रबंधन में खुद को मजबूत बनाना है। इसी तरह भारत-प्रशांत रणनीति के तहत अमेरिका भारत जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ वहां खुद को मजबूत करने और ड्रैगन का रास्ता रोकने में लगा है। इस तरह भारत चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव को चुनौती देकर मजबूत बनने में लगा है।

47

अफ्रीकी देशों में चीन के बढ़ते दखल को देख भारत एक्टिव हुआ है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के अफ्रीका दौरे से पहले 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दौरा किया और लोगों की मदद के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट की घोषणा की। इसमें खासतौर पर अफ्रीका के स्वास्थ्य, कृषि, निर्माण, शिक्षा के साथ रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र शामिल थे। बीजिंग भी इसमें पीछे नहीं है। मजबूत मौजूदगी के लिए समुद्र तक में दखल बढ़ा रहा है। भारत और चीन के बीच विवाद के साथ इसमें और तेजी आएगी, लेकिन भारत के पास कई तरीके हैं, जिससे वो चीन के दखल को सीमित कर सकता है।

57

येल यूनिवर्सिटी के जैक्सन इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल अफेयर्स के कोलिन कोलमैन बताते हैं कि अफ्रीका में दुनिया की 17 फीसदी आबादी रहती है, लेकिन वैश्विक जीडीपी का केवल तीन फीसदी हिस्सा ही उसके पास है। रिपोर्ट्स में अफ्रीकी डेवलपमेंट बैंक की रिपोर्ट के अनुसार कहा जा रहा है कि अफ्रीकी देशों की अत्यधिक गरीबी दर वर्ष 2030 तक 24.7 फीसदी रहेगी, जो साल 2018 में 33.4 फीसदी थी। इसके दायरे में कुल 42.1 करोड़ जनसंख्या थी। इन सभी चुनौतियों से निपटने के लिए भारत और चीन को उस हिस्से में पहुंचना होगा, जहां से दोनों देश अभी काफी दूर हैं।

67

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के प्रो. सरवन सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा कि बीआरआई से भारत व अफ्रीकी देशों के संबंधों पर असर तो पड़ेगा, लेकिन कई अफ्रीकी देशों में भारतवंशी राजनीति में मजबूत है। भारतवंशी 46 अफ्रीकी देशों में हैं। अफ्रीकी देशों में भारत का व्यापार 2001 में 5.3 अरब डॉलर था, जो 2018 में बढ़कर 62 अरब डॉलर हो गया है।

77

मीडिया रिपोर्ट्स में जानकारों के मुताबिक कहा जा रहा है कि अफ्रीका में भारत व चीन में प्रतिस्पर्धा नहीं है। चीन कर्ज देकर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। वहीं, भारत लोगों के कौशल विकास पर जोर देता है। भारत लोगों को आत्मनिर्भर बनाने में लगा है। लोग खुद का रोजगार शुरू करना चाहते हैं और यही दोनों देशों में अंतर है। भारत शासन करने का इच्छुक नहीं रहता और न ही ऐसी मंशा वाले लोगों के साथ चलता है।

Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos

Recommended Photos