निर्भया की मां की तरह इंसाफ के लिए लड़ती रही एक और मां, तोड़ा दम, बेटी के साथ बलात्कार के बाद की गई थी हत्या

Published : Mar 04, 2020, 03:47 PM ISTUpdated : Mar 04, 2020, 07:38 PM IST

नई दिल्ली. निर्भया की मां अपनी बेटी के लिए 7 साल से न्याय की लड़ाई लड़ रही हैं। लेकिन वह अकेली ऐसी मां नहीं हैं, जिन्होंने बेटी को न्याय दिलाने के लिए इतना संघर्ष किया। न्याय के लिए संघर्ष की ऐसी ही कहानी प्रियदर्शिनी मट्टू की मां रागेश्वरी मट्टू की है, जिन्होंने जम्मू में अंतिम सांस ली। बता दें कि 23 जनवरी 1996 के दिन प्रियदर्शिनी मट्टू का शव दिल्ली में उनके घर पर मिला था। पूर्व आईपीएस के बेटे संतोष कुमार पर बलात्कार और हत्या का आरोप लगा था। इस केस में हाईकोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास में बदल दिया।  

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निर्भया की मां की तरह इंसाफ के लिए लड़ती रही एक और मां, तोड़ा दम, बेटी के साथ बलात्कार के बाद की गई थी हत्या
निर्भया की मां आशा देवी की तरह ही प्रियदर्शिनी की मां भी सालों तक बेटी को न्याय दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। दोषी को फांसी देने की मांग करती रही। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
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प्रियदर्शिनी मट्टू (25 साल) कानून की छात्रा थी। 23 जनवरी 1996 के दिन नई दिल्ली में उनका शव मिला। बलात्कार के बाद उनकी हत्या की गई थी।
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कोर्ट में 10 साल तक मामला चला। 17 अक्टूबर 2006 में दिल्ली हाई कोर्ट ने संतोष कुमार सिंह नाम के शख्स को दोषी पाया। बलात्कार और हत्या के दोष में संतोष को मौत की सजा सुनाई। बाद में 6 अक्टूबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। (प्रियदर्शिनी की मां)
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यह तस्वीर प्रियदर्शिनी के घर की हैं। दीवारों पर प्रियदर्शिनी की तस्वीरें लगी हैं।
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संतोष कुमार, प्रियदर्शिनी का दीवाना था। वह अक्सर उसका पीछा किया करता था। कई बार तो उसने प्रियदर्शिनी को प्रपोज तक कर डाला लेकिन वह हर बार मना कर देती थी।
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प्रियदर्शिनी संतोष से इतना परेशान हो गई कि उसने पुलिस से भी शिकायत की। तब प्रियदर्शिनी को प्राइवेट बॉडी गार्ड के तौर पर कॉन्स्टेबल राजिंदर सिंह को तैनात किया गया।
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संतोष के पिता खुद उस समय जम्मू-कश्मीर में आईपीएस अफसर थे, जब प्रियदर्शिनी की हत्या हुई।
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23 जनवरी 1996 का दिन था। शाम के वक्त अंदर से घर का दरवाजा बंद था। प्रियदर्शिनी का गार्ड घर पहुंचा। घर की घंटी बजाने के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला। कुछ देर इंतजार कर जब वो पीछे के दरवाजे से अंदर जाने लगे तो देखा कि वह पहले से ही थोड़ा खुला था।
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अंदर गए तो घर का जो नजारा उन्होंने देखा उसे देख दंग रह गए। उन्होंने देखा प्रियदर्शिनी का शव कमरे में बेड के नीचे पड़ा था। मुंह से खून निकला हुआ था और चारों तरफ खून ही खून फैला हुआ था।
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प्रिया के पूरे शरीर पर 19 वार किए गए थे। संतोष के हेलमेट पर प्रियदर्शिनी का खून था। 6 अक्तूबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने संतोष की सजा को फांसी से घटाकर उम्रकैद कर दी। उस वक्त प्रियदर्शिनी के पिता चमनलाल मट्टू ने कहा था, कोर्ट से हमें ये उम्मीद नहीं थी।
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14 मई 2019 को आजीवन कारावास की सजा काट रहे संतोष सिंह को दिल्ली हाई कोर्ट ने एलएलएम परीक्षा देने के लिए पैरोल की मंजूरी दे दी है। संतोष को एलएलएम की परीक्षा के देने के लिए 3 हफ्ते का पैरोल मिला है।
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निर्भया की तरह ही प्रियदर्शिनी के दोषी को भी फांसी देने की मांग की गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी फांसी को आजीवन कारावास में बदल दिया।

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